Women And Pitru Paksha: मान्यता है कि पितरों के श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करने का अधिकार केवल पति, पुत्र, पोते या भाई को होता है।
अगर मरने वाले का ऐसा कोई संबंधी न हो तो बेटी का बेटा यानी नाती भी श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान कर सकता है।
ऐसे में ये सवाल उठता है कि क्या महिलाओं को श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करने का अधिकार नहीं होता।
और अगर कोई महिला ऐसा करती है तो वो सही होगा या नहीं।
आइए जानते हैं इन सभी सवालों के जवाब…
बेटे के न होने पर कौन कर सकता है श्राद्ध?
- शास्त्रों मे श्राद्ध की पूजा करने का अधिकार केवल पुरुषों को दिया गया है।
- पिता का श्राद्ध उसके पुत्र को ही करना चाहिए।
- पुत्र के न होने पर पौत्र, प्रपौत्र, पुत्री का पुत्र या भतीजा भी श्राद्ध कर सकता है।
- इसके अलावा सगा बेटा न होने पर गोद लिया पुत्र भी अपने पिता का श्राद्ध कर सकता है।
महिलाएं कब कर सकती हैं श्राद्ध? (When can women perform Shraddha)
- गरुड़ पुराण के अनुसार अगर किसी के परिवार में एक भी बेटा नहीं है, तो ऐसी स्थिति में घर की महिला श्राद्ध कर सकती है।
- क्योंकि, पितृपक्ष के दौरान किसी भी परिस्थिति में श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान इत्यादि रोकना शुभ नहीं माना जाता है।
- इसलिए घर की अकेली महिला भी पितरों का तर्पण, श्राद्ध आदि कर सकती है।
- जिनका आपको श्राद्ध करना है, अगर उनका अगर कोई बेटा नहीं है, तो ऐसे में पत्नी अपने पति के लिए श्राद्ध कर सकती है।
- इसके अलावा कुल की विधवा स्त्री भी पितरों की शांति के लिए श्राद्ध कर सकती है।
- लेकिन अविवाहित कन्याओं को श्राद्ध करने की मनाही है।
- जिन लोगों के पति या पुत्र की सेहत अच्छी नहीं है लेकिन वो जीवित हैं, तो ऐसी परिस्थिति में उनके हाथ को स्पर्श करके विवाहित महिलाएं श्राद्ध कर सकती हैं।
- घर की मुख्य महिलाओं को ही हमेशा श्राद्ध करना चाहिए।
सीता जी ने किया था ससुर राजा दशरथ का श्राद्ध (Sita ji perform raja dashrat pind daan)
वाल्मिकी रामायण के अनुसार वनवास के दौरान भगवान राम, सीता जी और लक्ष्मण पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध करने के लिए गया पहुंचे।
वहां ब्राह्मण ने उन्हें श्राद्ध के लिए आवश्यक सामग्री जुटाने के लिए कहा तो श्रीराम और लक्ष्मण जी सामग्री लेने चले गए।
बहुत देर बाद भी जब राम-लक्ष्मण नहीं आए तो ब्राह्मण देव ने माता सीता से पिंडदान करने का आग्रह किया।
रेत (बालू) का पिंड बनाकर किया पिंडदान
इतने में राजा दशरथ ने भी माता सीता को दर्शन दिए और उनसे पिंडादान की कामना की।
माता सीता ने समय के महत्व को समझते हुए अपने ससुर राजा दशरथ का पिंडदान करने का निर्णय लिया।
देवी सीता ने फल्गु नदी के किनारे बालू का पिंड बनाया और वटवृक्ष, केतकी फूल, नदी और गाय को साक्षी मानकर राजा दशरथ का पिंडदान किया।
राजा दशरथ की आत्मा इससे बहुत खुश हुई और देवी सीता को आशीर्वाद दिया।
बता दें कि साल 2024 में पितृपक्ष 17 सितंबर से 2 अक्टूबर तक है। इन 15 दिनों में पितरों के लिए श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान किया जाएगा।