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Pitru Paksha: पितृपक्ष में कौए को क्यों देते हैं भोजन? जानिए श्रीराम से जुड़ी ये प्राचीन कथा

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Nisha Rai
Nisha Rai
निशा राय, पिछले 12 सालों से मीडिया के क्षेत्र में सक्रिय हैं। इन्होंने दैनिक भास्कर डिजिटल (M.P.), लाइव हिंदुस्तान डिजिटल (दिल्ली), गृहशोभा-सरिता-मनोहर कहानियां डिजिटल (दिल्ली), बंसल न्यूज (M.P.) जैसे संस्थानों में काम किया है। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय (भोपाल) से पढ़ाई कर चुकीं निशा की एंटरटेनमेंट और लाइफस्टाइल बीट पर अच्छी पकड़ है। इन्होंने सोशल मीडिया (ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम) पर भी काफी काम किया है। इनके पास ब्रांड प्रमोशन और टीम मैनेजमेंट का काफी अच्छा अनुभव है।

Pitru Paksha Crow Story: पितृपक्ष में पितरों के नाम से भोजन का पहला हिस्सा निकाला जाता है जो अक्सर कौए को खिलाया जाता है।

कौए को भोजन कराए बिना पितरों का भोजन अधूरा माना जाता है।

ये प्रथा सदियों से चली आ रही है लेकिन क्या आपको इसके पीछे की प्राचीन कथा पता है जो रामायण काल से जुड़ी हुई है?

अगर नहीं तो चलिए हम आपको बताते हैं, इससे पहले जानते हैं पितृपक्ष में कौए का महत्व…

पितृपक्ष में कौए का महत्व

आपने देखा होगा कि पितृपक्ष के दौरान या फिर अमावस्या को या किसी के श्राद्ध कर्म में कि भोजन का कुछ हिस्सा निकालकर कौए को खिला देते हैं।

इसके पीछे ये मान्यता है कि अगर कौआ उस भोजन को ग्रहण कर लेता है तो आपके पितर तृप्त हो जाते हैं।

कहा जाता है कि कौआ के द्वारा खाया गया भोजन सीधे पितरों को प्राप्त होता है।

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पितरों को मिलता है भोजन

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जब किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है तो उसका जन्म कौआ योनि में होता है।

इसलिए ये भी माना जाता है कि कोआ के माध्यम से भोजन पितरों तक पहुंचता है।

अगर कौआ आपका दिया भोजन नहीं खाता है तो इसका अर्थ है कि आपके पितर आप से संतुष्ट और प्रसन्न नहीं हैं।

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कौवा देता है इस बात का संकेत

पितृपक्ष के दौरान अगर घर के आंगन कौवा आकर बैठ जाए तो यह अच्छा संकेत माना जाता है।

अगर कौवा आपका दिया हुआ भोजन कर ले तो यह बहुत शुभ होता है और इससे ये संकेत मिलता है कि आपके पितृ आपसे बेहद प्रसन्न हैं।

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श्रीराम के वरदान से जुड़ी है कौए की कथा

श्रीरामचरितमानस में तुलसीदास जी ने इस कथा के बारे में बताया है।

त्रेतायुग में इंद्र देव के पुत्र जयंत ने भगवान श्रीराम की शक्ति की परीक्षा लेने की सोची।

इसीलिए उन्होंने कौए का रूप धारण कर लिया और माता सीता के पास पहुंच गए और माता के पैर को अपने चोंच से घायल कर दिया और वहां से भाग गए।

जब भगवान श्रीराम ने माता के घायल पैर को देखा तो उन्हें काफी क्रोध आ गया और उन्होंने अपने धनुष पर तीर चढ़ाकर उस कौए पर निशाना लगा दिया।

ये देखकर कौए रूपी जयंत डर गए और अपनी जान बचाने के लिए भागते हुए पिता इन्द्र देव के पास गए।

इन्द्र देव ने जयंत से कहा कि उस बाण से तुम्हारी रक्षा सिर्फ स्वयं भगवान श्री राम ही कर सकते हैं।

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इसके बाद जयंत भगवान श्री राम के चरणों में आकर गिर गए और अपने किए की माफी मांगने लगे।

तब भगवान राम ने कहा कि वो इस बाण को वापस तो नहीं ले सकते हैं, लेकिन उससे कम चोट पहुंचा सकते हैं।

ऐसे में श्री राम ने अपने उस बाण से कौए के रूप में मौजूद जयंत की एक आंख फोड़ दी।

लेकिन क्योंकि कौए ने श्रीराम से अपनी गलती के लिए माफी मांग ली थी इसलिए प्रभु श्रीराम ने प्रसन्न होकर जयंत को ये वरदान दिया कि पितृपक्ष में कौए को दिया गया भोजन का अंश पितृ लोक में निवास करने वाले पितर देवों को प्राप्त होगा।

इसी घटना के बाद से हर साल पितृपक्ष में कौए को भोजन देने की परंपरा शुरू हो गई जो आज तक चल रही है।

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