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छत्तीसगढ़ में इस जगह नहीं मनाते नवरात्रि, करते हैं महिषासुर की पूजा, जानें कारण

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Nisha Rai
Nisha Rai
निशा राय, पिछले 12 सालों से मीडिया के क्षेत्र में सक्रिय हैं। इन्होंने दैनिक भास्कर डिजिटल (M.P.), लाइव हिंदुस्तान डिजिटल (दिल्ली), गृहशोभा-सरिता-मनोहर कहानियां डिजिटल (दिल्ली), बंसल न्यूज (M.P.) जैसे संस्थानों में काम किया है। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय (भोपाल) से पढ़ाई कर चुकीं निशा की एंटरटेनमेंट और लाइफस्टाइल बीट पर अच्छी पकड़ है। इन्होंने सोशल मीडिया (ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम) पर भी काफी काम किया है। इनके पास ब्रांड प्रमोशन और टीम मैनेजमेंट का काफी अच्छा अनुभव है।

Mahishasur Community Chhattisgarh: भारत में हर जगह देवी की आराधना की जाती है, खासकर नवरात्रि पर तो माता की विशेष पूजा होती है।

लेकिन हमारे देश में एक जगह ऐसी भी है जहां नवरात्रि नहीं मनाते हैं और न ही मां दुर्गा की आराधना करते हैं।

और तो और नवरात्रि पर यहां सन्नाटा रहता है। देवी पूजा न करने का कारण भी ऐसा है कि आप जानकर चौंक जाएंगे।

छत्तीसगढ़ के जशपुर में महिषासुर के वशंज

छत्तीसगढ़ राज्य का जशपुर जिला वो जगह है जहां नवरात्रि नहीं मनाई जाती।

यहां मनोरा विकाखंड के चार गांवों (जरहापाठ, बुर्जुपाठ, हाडिकोन, दौनापठा) में रहने वाले लोग खुद को महिषासुर का वशंज मानते हैं, जिसका वध मां दुर्गा ने किया था।

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बस्तर में कुछ जगहों पर भी लोग राक्षस को पूर्वज मानते हैं। इनका मानना है कि महिषासुर इनका पूर्वज है।

ये लोग महिषासुर की पूजा-अर्चना करते हैं और सदियों से इस परंपरा को विशेष तरीके से निभाया जाता है।

मौत के डर से नहीं करते दुर्गा पूजा

यह लोग नवरात्रि में दुर्गा पूजा में इसलिए शामिल नहीं होते हैं क्योंकि देवी के प्रकोप से इन्हें मृत्यु का डर रहता है।

ये लोग न सिर्फ देवी की पूजा से दूरी बनाए रखते हैं, बल्कि अपने खेत, खलिहान में महिषासुर को अपना आराध्य देव मानकर उसकी पूजा करते हैं।

इनके लिए महिषासुर राजा है और उसकी मृत्यु पर खुशी मनाना उनके लिए असंभव है।

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मां दुर्गा ने छल से किया था महिषासुर का वध

इस समुदाय के लोगों का मानना है कि महिषासुर का वध एक छल था और मां दुर्गा के साथ सभी देवी-देवताओं ने मिलकर महिषासुर की हत्या की थी।

इसी वजह से ये लोग दशहरे के दिन शोक मनाते हैं।

दिवाली और नवरात्रि पर होती है राक्षस की पूजा

यहां पर नवरात्रि और दिवाली पर लोग भैंसासुर की पूजा-अर्चना करते हैं।

स्थानीय ग्रामीण बताते हैं कि इस जनजाति के लोग नवरात्रि के दौरान किसी भी प्रकार के रीति-रिवाज या परंपरा का पालन नहीं करते हैं।

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वे अपने पूर्वजों की स्मृति में गहरे शोक में डूबे रहते हैं, जो उनके लिए एक महत्वपूर्ण भावना है।

इन लोगों को अपने पूर्वज महिषासुर पर काफी गर्व है और वह उसे अपनी सांस्कृतिक पहचान के रूप में मानता है।

राष्ट्रपति को सौंप चुके हैं ज्ञापन

इस समुदाय के लोगों ने मां दुर्गा की प्रतिमा के साथ महिषासुर की प्रतिमा न लगाने की मांग को लेकर राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन भी सौंपा था ताकि ये अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान को सुरक्षित रख सकें।

इनका मानना है कि महिषासुर की पूजा उनके लिए सम्मान का प्रतीक है।

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जब नवरात्र के दौरान देवी दुर्गा की पूजा की जाती है, तो इस समय महिषासुर के वध की कथा का संदर्भ दिया जाता है, जो इस समुदाय के लिए अपमान का कारण बनता है।

इसलिए, उन्होंने यह मांग की थी कि महिषासुर की प्रतिमा को पूजा में शामिल किया जाए ताकि उनकी धार्मिक आस्था का सम्मान हो सके।

मैसूर के चामुंडी पहाड़ी पर महिषासुर की प्रतिमा

वैसे छत्तीसगढ़ के अलावा दक्षिण भारत के भी कई इलाकों में महिषासुर की पूजा-अर्चना की जाती है और मैसूर में तो इस असुर की एक विशाल प्रतिमा भी है।

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मैसूर की चामुंडी पहाड़ी पर महिषासुर की एक विशाल प्रतिमा है जिसे देखने के लिए हर साल हजारों-लाखों पर्यटक यहां आते हैं।

यहां पर चामुंडेश्वरी माता का मंदिर है, जो माता दुर्गा का ही एक स्वरूप है।

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