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Ahoi Ashtami Vrat: अहोई अष्टमी के दिन न करें ये गलतियां, जान लें पूजा विधि और शुभ मुहूर्त

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Nisha Rai
Nisha Rai
निशा राय, पिछले 12 सालों से मीडिया के क्षेत्र में सक्रिय हैं। इन्होंने दैनिक भास्कर डिजिटल (M.P.), लाइव हिंदुस्तान डिजिटल (दिल्ली), गृहशोभा-सरिता-मनोहर कहानियां डिजिटल (दिल्ली), बंसल न्यूज (M.P.) जैसे संस्थानों में काम किया है। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय (भोपाल) से पढ़ाई कर चुकीं निशा की एंटरटेनमेंट और लाइफस्टाइल बीट पर अच्छी पकड़ है। इन्होंने सोशल मीडिया (ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम) पर भी काफी काम किया है। इनके पास ब्रांड प्रमोशन और टीम मैनेजमेंट का काफी अच्छा अनुभव है।

Ahoi Ashtami Syau Mala: अहोई अष्टमी का व्रत उत्तर भारत में काफी लोकप्रिय हैं। इस दिन माताएं अपने बच्चों के लिए व्रत करती हैं।

ये व्रत करवा चौथ के व्रत के 4 दिन के बाद आता है। इसे अहोई आठें के नाम से भी जाना जाता है।

इस दिन महिलाएं पूजा के दौरान स्याहू माला पहनती है।

आइए जानते हैं इस व्रत का और स्याहू माला पहनने का महत्व…

संतान की खुशहाली के लिए रखा जाता है व्रत

अहोई अष्टमी का व्रत कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी पर किया जाता है। इस बार यह व्रत गुरुवार, 24 अक्टूबर को मनाया जाएगा।

ये व्रत करने से संतान का जीवन बेहतर और सफल होता है।

इस दिन माताएं अपने पुत्रों की लंबी उम्र और उनके जीवन के अच्छे के लिए पूरे दिन का निर्जला उपवास करती हैं।

मान्यता है कि निसंतान महिलाएं अगर इस दिन व्रत करती हैं तो उन्हें संतान प्राप्ति होती हैं।

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तारों को देखकर तोड़ा जाता है व्रत

अहोई अष्टमी का व्रत निर्जला होता है और इस दिन माताएं स्याही माता और अहोई माता की पूजा करती हैं।

अहोई अष्टमी का व्रत शाम को तारों को देखने के बाद खोला जाता है। हालांकि, कुछ जगहों पर चंद्रमा को भी देखकर व्रत तोड़ते हैं।

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अहोई अष्टमी पर गुरु-पुष्य योग का निर्माण?

इस साल अहोई अष्टमी पर गुरु-पुष्य योग का निर्माण हो रहा है जिसे बहुत शुभ माना जाता है।

अहोई अष्टमी पूजा मुहूर्त: शाम 05:42 बजे से 06:59 बजे तक (अवधि – 01 घण्टा 17 मिनट्स)

तारों को देखने के लिए संध्या का समय: शाम 06:06 बजे

अहोई अष्टमी पर चन्द्रोदय समय: रात्रि 11:55 बजे, (24 अक्टूबर 2024)

अष्टमी तिथि प्रारम्भ – 24 अक्टूबर 2024 को रात्रि 01:18 बजे से

अष्टमी तिथि समाप्त – 25 अक्टूबर 2024 को रात्रि 01:58 बजे तक

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अहोई अष्टमी के दिन न करें ये काम?

अहोई अष्टमी के दिन महिलाओं को मिट्टी से जुड़े कार्य नहीं करने चाहिए और न ही खुरपी का प्रयोग करना चाहिए।

इस दिन महिलाओं को काले या गहरे नीले रंग के कपड़े भी नहीं पहनने चाहिए।

अहोई अष्टमी पर अर्घ्य देने के लिए कांसे के लोटे का प्रयोग ना करें।

इस व्रत की पूजा में पहले इस्तेमाल हुई पूजा सामग्री का प्रयोग दोबारा नहीं करना चाहिए।

इस दिन प्याज और लहसुन खाना खाने की मनाही होती है।

व्रत के दौरान महिलाओं को दिन में नहीं सोना चाहिए और बुजुर्गों का अपमान भी नहीं करना चाहिए।

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अहोई अष्टमी व्रत विधि

व्रत वाले दिन महिलाएं सुबह जल्दी उठकर स्नान करके पूजा के समय व्रत का संकल्प लें।

अहोई माता की पूजा के लिए गेरू से दीवाल पर अहोई माता का चित्र बनाएं, साथ ही स्याहू और उसके सात पुत्रों का चित्र भी बनाएं।

माता पार्वती भक्तों को अनहोनी से बचाने वाली हैं इसलिए इस व्रत में माता पर्वती की भी पूजा की जाती है।

अहोई माता की पूजा से पहले गणेश जी की पूजा करें।

शाम के समय पूजन के लिए अहोई माता के चित्र के सामने एक चौकी रखें। उस पर जल से भरा कलश रखें।

रोली-चावल से माता की पूजा करें और मीठे पुए या आटे के हलवे का भोग लगाएं।

कलश पर स्वास्तिक बना लें और हाथ में गेंहू के सात दाने लेकर अहोई माता की कथा सुनें।

इसके बाद तारों को, या चांद को अर्घ्य देकर अपने से बड़ों के चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लें।

कथा कहते समय जो चावल या गेहूं हाथ में लिए जाते हैं, उन्हें साड़ी या सूट के दुप्पटे में बांध लें।

अहोई पूजा में स्याहु का महत्व (Ahoi Ashtami Syau Mala Importance)

अहोई पूजा में एक अन्य विधान यह भी है कि चांदी की अहोई बनाई जाती है जिसे स्याहु कहते हैं।

इस स्याहु की पूजा रोली, अक्षत, दूध व भात से की जाती है।

पूजा चाहे आप जिस विधि से करें लेकिन दोनों में ही पूजा के लिए एक कलश में जल भर कर रख लें।

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स्याहु माला पहनने के नियम

स्याहु लॉकेट चांदी से निर्मित होता है और इसे अहोई अष्टमी के दिन रोली का टीका लगाकर पूजन करने के पश्चात ही धारण किया जाता है।

इसे कलावा या मौली में पिरोकर पहना जाता है। कहा जाता है कि यह धागा रक्षा सूत्र के समान कार्य करता है।

इसके अतिरिक्त, माला में हर वर्ष एक चांदी का मोती जोड़ने का नियम है, इस मोती को बच्चों की उम्र के अनुसार बढ़ाया जाता है।

मान्यता है कि ऐसा करने से संतान को लंबी उम्र का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

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स्याहु माला की पूजा का विधि

अहोई माता की तस्वीर पर स्याहु माला चढ़ाएं और पूजा करें।

इस पूजा में संतान को साथ बैठाना शुभ माना जाता है।

सबसे पहले अहोई माता को तिलक करें और फिर स्याहु माता के लॉकेट पर तिलक करें।

इसके बाद, वह माला अपने गले में पहन लें और दिनभर निर्जला व्रत रखने के बाद शाम को तारों को अर्घ्य देकर व्रत का पारण करें।

यह माला दिवाली तक पहनी जाती है और उसके बाद इसे सुरक्षित रख लिया जाता है।

पूजा में रखे गए मिट्टी के घड़े का पानी दिवाली के दिन संतान को स्नान कराने के लिए उपयोग किया जाता है।

कहा जाता है कि यह स्याहु माता का आशीर्वाद है, जो संतान को लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य का वरदान देता है।

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