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Who is Dhanvantari: धनतेरस पर ही क्यों होती है धन्वंतरि की पूजा, माता लक्ष्मी से है ये संबंध

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Nisha Rai
Nisha Rai
निशा राय, पिछले 12 सालों से मीडिया के क्षेत्र में सक्रिय हैं। इन्होंने दैनिक भास्कर डिजिटल (M.P.), लाइव हिंदुस्तान डिजिटल (दिल्ली), गृहशोभा-सरिता-मनोहर कहानियां डिजिटल (दिल्ली), बंसल न्यूज (M.P.) जैसे संस्थानों में काम किया है। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय (भोपाल) से पढ़ाई कर चुकीं निशा की एंटरटेनमेंट और लाइफस्टाइल बीट पर अच्छी पकड़ है। इन्होंने सोशल मीडिया (ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम) पर भी काफी काम किया है। इनके पास ब्रांड प्रमोशन और टीम मैनेजमेंट का काफी अच्छा अनुभव है।

Who is Dhanvantari: धनतेरस को धनत्रयोदशी भी कहा जाता है। हर साल दिवाली के 2 दिन पहले धनतेरस का पर्व मनाया जाता है।

इस दिन मां लक्ष्मी और कुबेर के साथ ही धन्वंतरि देव (Dhanvantari) की भी पूजा की जाती है।

धन्वंतरि को आरोग्य का देवता कहा जाता है। आइए जानते हैं कैसे हुई इनकी उत्पत्ति और इन्हें पूजे जाने की वजह

समुद्र मंथन से निकले धन्वंतरि (Who is Dhanvantari)

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार धन्वंतरि की उत्पत्ति समुद्र मंथन (Samudra Manthan) के दौरान हुई थी।

पौराणिक कथा के अनुसार जिस अमृत कलश के लिए समुद्र मंथन किया गया था, उसे धन्वंतरि ही हाथ में लेकर बाहर निकले थे।

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भगवान विष्णु के अवतार है धन्वंतरि

शास्त्रों के अनुसार धन्वंतरि भगवान विष्णु के 12वे अवतार हैं।

जब देवताओं और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया तो उसमें से कईं ऐरावत हाथी, कल्पवृक्ष और कौस्तुभ मणि जैसी अमूल्य चीजें निकलीं थी।

सबसे आखिर में भगवान धन्वंतरि अमृत का कलश लेकर समुद्र से बाहर निकले। इस अमृत को पाने के लिए देवताओं और असुरों में भयंकर युद्ध हुआ।

बाद में भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप लेकर ये अमृत कलेश भगवान धन्वंतरि से ले लिया और छल से देवताओं को पिला दिया।

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धनतेरस के दिन क्यों ही है धन्वंतरि की पूजा

समुद्र मंथन के दौरान जिस दिन धन्वंतरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे वह कार्तिक शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि थी, इसलिए धनतेरस के दिन इनकी पूजा की जाती है।

भगवान धन्वंतरि के प्रकट होने के दो दिन बाद ही देवी लक्ष्मी भी समुद्र में प्रकट हुईं। इसी कारण धनतेरस के दो दिन बाद दिवाली मनाई जाती है।

धनतेरस के दिन मनाते हैं धन्वंतरि जयंती (Dhanvantari Jayanti)

धन्वंतरि दुनिया में चिकित्सा विज्ञान के दिव्य प्रचारक है। पारंपरिक चिकित्सा पद्धति के चिकित्सक वैद्य समुदाय धनतेरस के दिन को धन्वंतरि जयंती के रूप में मनाते हैं।

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इनकी पूजा से मिलती है रोगों से मुक्ति

धन्वंतरि आरोग्यता प्रदान करने वाले देवता माने जाते हैं। मान्यता है कि धन्वंतरि की पूजा करने से असाध्य रोगों से मुक्ति मिलती है और आरोग्यता की प्राप्ति होती है।

आयुर्वेद के जनक

समुद्र मंथन के दौरान अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे, तो उनके हाथ में अमृत कलश के साथ ही एक औषधि पुस्तक भी थी।

कहते हैं, उनकी औषधि की इस पुस्तक में संसार में एक भी ऐसी वस्तु नहीं बची है, जिसका उल्लेख और रोग उपचार में उपयोग का जिक्र न हुआ हो।

आयुर्वेद में भगवान धन्वंतरि का अतुलनीय योगदान है। मान्यता है कि उन्होंने आयुर्वेद के मूल सिद्धांतों को स्थापित किया था।

यही कारण है कि उनको आयुर्वेद का जनक कहा जाता है।

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धनतेरस पर लोग खरीदारी क्यों करते हैं?

जब भगवान धन्वंतरि प्रकट हुए तो उनके हाथों में अमृत कलश था। यही कारण है कि धनतेरस के दिन बर्तन खरीदने की परंपरा है।

लोग दिवाली के बाद धनतेरस पर खरीदे गए बर्तनों को खाने-पीने की चीजों से भरकर रखते हैं।

इसके अलावा लोग धनिया खरीदकर भी इन बर्तनों में रखते हैं। मान्यता है कि धनतेरस के दिन खरीदे गए बर्तन में कुछ न कुछ रखने से अन्न और धन के भंडार हमेशा भरे रहते हैं।

धार्मिक मान्यता के अनुसार इस दिन खरीदी गई कोई भी वस्तु 13 गुना अधिक लाभ देती है। इसीलिए धनतेरस के दिन लोग पीतल और तांबे के बर्तनों के साथ-साथ सोने और चांदी की चीजें भी खरीदते हैं।

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धन्वंतरि पूजा मुहूर्त

कार्तिक कृष्ण पक्ष त्रयोदशी प्रारंभः 10.31 AM (29 अक्टूबर 2024, मंगलवार) से

कार्तिक कृष्ण पक्ष त्रयोदशी समाप्त 01.15 PM (30 अक्टूबर 2024, बुधवार) तक

उदया तिथि के अनुसार भगवान धन्वंतरि जयंती 30 अक्टूबर 2024 को मनाई जाएगी

भगवान धन्वंतरि की पूजा का शुभ मुहूर्त: सुबह 06.26 AM से 10.42 AM तक रहेगा

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