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Govardhan Puja: गोवर्धन पूजा को क्यों कहते हैं अन्नकूट, इस दिन क्यों लगाया जाता है 56 भोग?

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Nisha Rai
Nisha Rai
निशा राय, पिछले 12 सालों से मीडिया के क्षेत्र में सक्रिय हैं। इन्होंने दैनिक भास्कर डिजिटल (M.P.), लाइव हिंदुस्तान डिजिटल (दिल्ली), गृहशोभा-सरिता-मनोहर कहानियां डिजिटल (दिल्ली), बंसल न्यूज (M.P.) जैसे संस्थानों में काम किया है। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय (भोपाल) से पढ़ाई कर चुकीं निशा की एंटरटेनमेंट और लाइफस्टाइल बीट पर अच्छी पकड़ है। इन्होंने सोशल मीडिया (ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम) पर भी काफी काम किया है। इनके पास ब्रांड प्रमोशन और टीम मैनेजमेंट का काफी अच्छा अनुभव है।

Govardhan Puja 2024: हिंदू धर्म में गोवर्धन पूजा का विशेष महत्व है। ये पर्व दिवाली के दूसरे दिन मनाया जाता है।

मगर इस साल दो दिन तक कार्तिक अमावस्या होने की वजह से गोवर्धन पूजा दिवाली के तीसरे दिन यानी 2 नवंबर को की जाएगी।

गोवर्धन पूजा को अन्नकूट भी कहते हैं और इस दिन भगवान को 56 भोग अर्पित किए जाते हैं।

आइए जानते है इसका कारण, साथ ही जानेंगे गोवर्धन पूजा का महत्व और इसकी प्राचीन कथा…

कार्तिक मास की प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा

कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को गोवर्धन उत्सव मनाया जाता है।

इस दिन बलि पूजा, अन्न कूट, मार्गपाली आदि उत्सव भी सम्पन्न होते है।

इस दिन मथुरा स्थित गोवर्धन पर्वत की पूजा करने की परंपरा है।

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गोवर्धन पूजा में होती है प्रकृति की पूजा

गोवर्धन पूजा के दिन भगवान श्री कृष्ण के साथ प्रकृति और प्राकृतिक संसाधनों की पूजा की जाती है। जैसे गाय, गोबर और पहाड।

माना जाता है कि ऐसा करने से हमारी आने वाली पीढ़ी प्राकृतिक संसाधनों के महत्व को समझेगी और प्रकृति से जुड़ा हुआ महसूस करेगी।

इस दिन गोवर्धन पर्वत की पूजा और परिक्रमा का भी बहुत महत्व है।

गोवर्धन पूजा की प्राचीन कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार द्वापर युग में श्रीकृष्ण ने ब्रज के लोगों से इंद्र की नहीं, गोवर्धन पर्वत की पूजा करने के लिए कहा था, जिससे देवराज इंद्र नाराज हो गए और गुस्से में गोकुल में लगातार कई दिनों तक मूसलाधार वर्षा की जिससे गोकुल वासी परेशान हो गए।

तब भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपने हाथ की छोटी उंगली पर उठा लिया और सभी गोकुल वासी बारिश से बचने के लिए पर्वत के नीचे खड़े हो गए।

गोवर्धन पर्वत जो सालों से प्राकृतिक आपदाओं को झेलते हुए गोकुल वासियों की रक्षा कर रहा था, उसने एक बार फिर वर्षा से लोगों को बचाया।

इसके बाद इंद्रदेव को अपनी गलती का अहसास हुआ और उन्होंने श्रीकृष्ण से मांफी मांग ली।

तभी से हर साल गोवर्धन पूजा की परंपरा शुरू हुई।

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कैसे होती है गोवर्धन पूजा

गोवर्धन पूजा में गायों की सेवा का महत्व है।

इस दिन सूर्योदय से पहले उठकर नहाना चाहिए और फिर घर के आंगन पर गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाएं।

इस पर्वत के बीच में या पास में भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति रख दें। अब गोवर्धन पर्वत और श्री कृष्ण की पूजा करें और मिठाइयों का भोग लगाएं।

साथ ही देवराज इंद्र, वरुण, अग्नि और राजा बलि की भी पूजा करें।

गाय के गोबर से इसलिए पूजा होती है क्योंकि पुराणों में इसे पवित्र माना जाता है और इसमें मां लक्ष्मी का निवास होता है। इसलिए हर पूजा में गोबर के कंडे इस्तेमाल किए जाते हैं।

इस दिन गाय-बैल को स्नान कराके धूप-चंदन और फूल माला पहनाकर पूजा की जाती है, साथ ही मिठाई खिलाकर उनकी आरती भी उतारते हैं।

पूजा के बाद कथा सुनें। ब्राह्मण को भोजन करवाकर उसे दान-दक्षिणा दें।

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किस समय होती है गोवर्धन पूजा

गोवर्धन पूजा कुछ जगहों पर सुबह की जाती है, वहीं कुछ हिस्सों में इस पूजा के लिए प्रदोष काल को शुभ माना गया है।

क्यों मनाते हैं अन्नकूट

अन्नकूट इसलिए मनाया जाता है, क्योंकि इस दिन नए अनाज की शुरुआत भगवान को भोग लगाकर की जाती है।

कहते हैं कि अन्नकूट उतस्व मनाने से मनुष्य को लंबी आयु और आरोग्य की प्राप्ति होती है।

इस दिन भगवान को अन्नकूट और कढ़ी चावल का भोग लगाया जाता है। साथ ही छप्पन भोग का प्रसाद भी चढ़ाया जाता है।

अन्नकूट को “भोजन का पहाड़” कह सकते हैं। इसमें कई सारी सब्जियों को मिलाकर मिक्स सब्जी, कढ़ी चावल, पूड़ी, रोटी, खिचड़ी, बाजरे का हलवा आदि बनाकर अर्पित किया जाता है।

56 भोग के बिना अधूरा अन्नकूट, ऐसे शुरू हुई परंपरा

माना जाता है कि छप्पन भोग के बिना गोवर्धन पूजा पूरी नहीं होती है।

दरअसल, भगवान कृष्ण गोकुलवासियों को इंद्र के प्रकोप से बचाने के लिए गोवर्धन पर्वत को 7 दिनों तक अपनी उंगलियों पर लेकर खड़े थे, इस दौरान गोकुलवासियों ने हर दिन श्री कृष्ण को 8 व्यंजनों का भोग लगाया था।

गणित के अनुसार, 7 दिनों को 8 व्यंजनों से गुणा किया जाए तो कुल अंक 56 आता है।

तभी से भगवान को 56 भोग लगाने की परंपरा शुरू हुई।

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56 भोग में शामिल हैं ये चीजें

भक्त (भात), सूप (दाल), प्रलेह (चटनी), सदिका (कढ़ी), दधिशाकजा (दही शाक की कढ़ी), सिखरिणी (सिखरन), अवलेह (शरबत), बालका (बाटी), इक्षु खेरिणी (मुरब्बा),त्रिकोण (शर्करा युक्त), बटक (बड़ा), मधु शीर्षक (मठरी),फेणिका (फेनी), परिष्टश्च (पूरी), शतपत्र (खजला), सधिद्रक (घेवर), चक्राम (मालपुआ), चिल्डिका (चोला), सुधाकुंडलिका (जलेबी), धृतपूर (मेसू), वायुपूर (रसगुल्ला), चन्द्रकला (पगी हुई), दधि (महारायता), स्थूली (थूली), कर्पूरनाड़ी (लौंगपूरी), खंड मंडल (खुरमा), गोधूम (दलिया), परिखा, सुफलाढय़ा (सौंफ युक्त), दधिरूप (बिलसारू), मोदक (लड्डू), शाक (साग), सौधान (अधानौ अचार), मंडका (मोठ), पायस (खीर), दधि (दही), गोघृत (गाय का घी), हैयंगपीनम (मक्खन), मंडूरी (मलाई), कूपिका (रबड़ी), पर्पट (पापड़), शक्तिका (सीरा), लसिका (लस्सी), सुवत, संघाय (मोहन), सुफला (सुपारी), सिता (इलायची), फल, तांबूल, मोहन भोग, लवण, कषाय, मधुर, तिक्त, कटु, अम्ल

गोवर्धन पूजा मुहूर्त

गोवर्धन पूजा शनिवार 02 नवंबर को की जाएगी। 

गोवर्धन पूजा प्रातःकाल मुहूर्त – सुबह 06.34 बजे से सुबह 08.46 बजे तक

गोवर्धन पूजा सायाह्न काल मुहूर्त – दोपहर 03.23 बजे से शाम 05.35 बजे तक

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