MP First CM Story: देश का ‘दिल’ कहा जाने वाला मध्य प्रदेश अपना 69वां स्थापना दिवस मना रहा है।
मध्यप्रदेश का आजादी की लड़ाई में भी विशेष योगदान है।
1 नवंबर 1956 को एमपी का गठन हुआ था और देश को नया राज्य मध्यप्रदेश मिला था।
इसी तारीख को प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री ने शपथ ली थी।
लेकिन, 2 महीने बाद उनकी मौत हो गई थी।
आईए जानते हैं पहले सीएम की शपथ ग्रहण से जुड़े इस किस्से के बारे में –
अमावस्या की वो काली रात और पहले CM की मौत
राज्यों के पुनर्गठन के फलस्वरूप 1 नवंबर 1956 को नया राज्य मध्यप्रदेश अस्तित्व में आया।
इसके घटक राज्य मध्यप्रदेश, मध्यभारत, विन्ध्य प्रदेश और भोपाल थे, जिनकी अपनी विधानसभाएं थीं।
डॉ. पटटाभि सीतारामैया मध्यप्रदेश के पहले राज्यपाल हुए।
पहले मुख्यमंत्री के रूप में पंडित रविशंकर शुक्ल ने शपथ ली थी।
वहीं पंडित कुंजी लाल दुबे को मध्यप्रदेश का पहला अध्यक्ष बनाया गया।
पहले मंत्रिमंडल में 12 कैबिनेट और 11 उपयंत्री थे।
राज्य पुनर्गठन के बाद प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री के रूप में पंडित रविशंकर शुक्ल ने शपथ ली थी।
इस शपथ ग्रहण समारोह से जुड़ा एक किस्सा है।
प्रदेश के पहले सीएम जिस दिन शपथ ली थी उस दिन अमावस्या की काली रात थी।
लाल कोठी में शपथ समारोह के सारे इंतज़ाम हो चुके थे।
पंडित रविशंकर शुक्ल शपथ लेने के लिए मंच पर पहुंच गये थे।
तभी किसी ने याद दिलाया कि आज अमावस्या की काली रात है।
इतना सुनकर मंच पर सन्नाटा पसर गया सभी गणमान्यों की नजर पं. शुक्ल की तरफ गई।
पं. शुक्ल ने देखा कि सारा इंतजाम हो गया है, तो उन्होंने अंधेरी रात की वजह से शपथ को रोकना उन्हें उचित नहीं लगा।
पंडित रविशंकर शुक्ल ने प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली और इस तारीख को एमपी के इतिहास में अमर कर दिया।
इस बात का बतंगड़ 2 महीने बाद बना जब 31 दिसम्बर को रविशंकर शुक्ल की मौत हो गई।
हालांकि उनकी मौत बीमारी के चलते हुई थी, लेकिन लोगों ने इसका कारण अमावस्या की काली रात को ही माना।
बता दें 2 अगस्त 1877 को सागर में पंडित रविशंकर शुक्ल गांधीजी के असहयोग आंदोलन कई बार जेल जा चुके थे।
अंग्रेजों का भारत छोड़कर जाना तय हुआ तो 1946 में शुक्ल मध्य प्रांत के मुख्यमंत्री बन गए और 1956 तक रहे।
जब मध्यप्रदेश का गठन हुआ, उस वक्त रविशंकर शुक्ल चारों राज्यों- मध्यप्रांत, मध्यभारत, विंध्यप्रदेश और भोपाल में सबसे सीनियर नेता थे।
ऐसे में सर्व सहमति से उन्हें कांग्रेस विधायक दल का नेता चुना गया था।
नेहरू और पटेल चाहते थे कि भोपाल बने राजधानी
मध्य प्रदेश के गठन के साथ ही इसकी राजधानी और विधानसभा का चयन भी कर लिया गया था।
प्रदेश के राजधानी के रूप में भोपाल को चुना गया।
इस राज्य का निर्माण तत्कालीन सीपी एंड बरार, मध्य भारत, विंध्यप्रदेश, और भोपाल राज्य को मिलाकर हुआ।
ऐसा कहा जाता है कि भोपाल को राजधानी बनाए जाने में तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. शंकर दयाल शर्मा, भोपाल के आखिरी नवाब हमीदुल्ला खान की महत्वपूर्ण भूमिका रही।
राजधानी बनाए जाने के बाद 1972 में भोपाल जिला के रूप में घोषित हो गया।
वहीं कई लोगों का यहां तक मानना है कि जवाहरलाल नेहरू भोपाल को राजधानी बनाना चाहते थे।
बता दें कि ग्वालियर, इंदौर और जबलपुर ने नए राज्य की राजधानी बनने के लिए का दावा किया था।
दूसरी ओर भोपाल के नबाब भारत के साथ संबंध ही नहीं रखना चाहते थे।
वे हैदराबाद के निजाम के साथ मिलकर भारत का विरोध कर रहे थे।
लेकिन, केन्द्र सरकार नहीं चाहती थी कि देश के हृदय स्थल में राष्ट्र विरोधी गतिविधियां बढ़ें।
इसके चलते सरदार पटेल ने भोपाल पर पूरी नजर रखने के लिए उसे ही मध्य प्रदेश की राजधानी बनाने का निर्णय लिया।