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Tulsi Vivah: ऐसे शुरू हुई तुलसी विवाह की परंपरा, राक्षस कन्या वृंदा से जुड़ी है कथा

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Nisha Rai
Nisha Rai
निशा राय, पिछले 12 सालों से मीडिया के क्षेत्र में सक्रिय हैं। इन्होंने दैनिक भास्कर डिजिटल (M.P.), लाइव हिंदुस्तान डिजिटल (दिल्ली), गृहशोभा-सरिता-मनोहर कहानियां डिजिटल (दिल्ली), बंसल न्यूज (M.P.) जैसे संस्थानों में काम किया है। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय (भोपाल) से पढ़ाई कर चुकीं निशा की एंटरटेनमेंट और लाइफस्टाइल बीट पर अच्छी पकड़ है। इन्होंने सोशल मीडिया (ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम) पर भी काफी काम किया है। इनके पास ब्रांड प्रमोशन और टीम मैनेजमेंट का काफी अच्छा अनुभव है।

Tulsi Vivah Katha: देव उठनी एकादशी पर हर साल देश भर में तुलसी विवाह किया जाता है।

ये परंपरा सदियों से चली आ रही है। इस साल ये पर्व 12 नवंबर को मनाया जाएगा।

हिंदू धर्म में तुलसी को सबसे पवित्र माना जाता है और उनकी पत्तियों के बिना विष्णु जी की कोई भी पूजा अधूरी मानी जाती है।

तुलसी विवाह भी भगवान विष्णु के स्वरूप शालिग्राम से किया जाता है।

मगर क्या आप जानते हैं कि तुलसी भगवान विष्णु को अतिप्रिय कैसे हुई और उनका विवाह शालिग्राम के साथ क्यों होता है?

राक्षस कन्या वृंदा से जुड़ी है कथा

असुरराज कालनेमी की बेटी वृंदा का विवाह महाराक्षस जालंधर से हुआ। अहंकार में चूर जालधंर ने माता लक्ष्मी को पाने की कामना से युद्ध किया, परंतु समुद्र से ही उत्पन्न होने के कारण माता लक्ष्मी ने उसे अपना भाई मान लिया

इसके बाद वह देवी पार्वती को पाने की लालसा से भगवान शिव का रूप धारण करके कैलाश पर गया और लेकिन देवी ने अपने योगबल से उसे पहचान लिया और अंतर्ध्यान (गायब) हो गईं और फिर भगवान विष्णु को ये सारी बात बताई।

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लेकिन जालंधर को रोकना आसान नहीं था क्योंकि उसकी पत्नी वृंदा अत्यन्त पतिव्रता स्त्री थी और इसी पतिव्रता धर्म की शक्ति के कारण जालंधर न तो मारा जाता और न ही हारता था। इसलिए जालंधर का नाश करने के लिए वृंदा के पतिव्रता धर्म को भंग करना बहुत जरूरी था।

विष्णु जी ने किया वृंदा के साथ छल

ऐसे में भगवान विष्णु ऋषि का वेश धारण कर वन में जा पहुंचे, जहां वृंदा अकेली घूम रही थीं।

भगवान के साथ दो मायावी राक्षस भी थे, जिन्हें देखकर वृंदा डर गईं। ऋषि ने वृंदा के सामने ही दोनों को भस्म कर दिया।

उनकी शक्ति देखकर वृंदा ने कैलाश पर्वत पर महादेव के साथ युद्ध कर रहे अपने पति जालंधर के बारे में पूछा।

ऋषि ने अपने माया जाल से दो वानर प्रकट किए। एक वानर के हाथ में जालंधर का सिर था तथा दूसरे के हाथ में धड़।

अपने पति की यह हालत देखकर वृंदा बेहोश हो गई। होश में आने पर उन्होंने ऋषि से विनती की कि वह उसके पति को जीवित करें।

भगवान ने अपनी माया से पुन: जालंधर का सिर धड़ से जोड़ दिया और फिर खुद स्वयं भी उस शरीर में प्रवेश कर गए।

वृंदा को इस छल के बारे में कुछ भी नहीं पता था। जालंधर बने भगवान के साथ वृंदा पतिव्रता का व्यवहार करने लगी, जिससे उसका सतीत्व भंग हो गया। ऐसा होते ही वृंदा का पति जालंधर युद्ध में हार गया।

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वृंदा ने दिया विष्णु जी को पत्थर बनने का श्राप

जब वृंदा को सच पता चला, तो उसने गुस्से में भगवान विष्णु को पत्थर (शालिग्राम) हो जाने का श्राप दिया। वृंदा खुद भी भगवान विष्णु की बड़ी भक्त थी ऐसे में विष्णु जी ने अपने भक्त का श्राप स्वीकार किया और शालिग्राम पत्थर बन गए।

विष्णु जी के पत्थर बन जाने से पूरे ब्रह्मांड में हाहाकार मच गया। जिसके बाद सभी देवी देवताओ ने वृंदा से प्रार्थना की वह भगवान विष्णु को शाप से मुक्त कर दें।

वृंदा ने भगवान विष्णु को श्राप मुक्त तो कर दिया लेकिन पति की मौत से दुखी होकर खुद आत्मदाह कर लिया। जहां वृंदा भस्म हुईं, वहां तुलसी का पौधा उग गया।

Kamika Ekadashi

वृंदा बनी तुलसी, विष्णु जी ने दिया ये वर

तब भगवान विष्णु ने कहा- हे वृंदा। तुम अपने सतीत्व के कारण मुझे लक्ष्मी से भी अधिक प्रिय हो गई हो। अब तुम तुलसी के रूप में सदा मेरे साथ रहोगी।

जो मनुष्य भी मेरे शालिग्राम रूप के साथ तुलसी का विवाह करेगा उसे सुख-समृद्धि की प्राप्ति होगी और यम दूत उसके घर के आस-पास भी नहीं फटकेंगे।

माना जाता है कि तभी से कार्तिक माह की एकादशी पर तुलसी विवाह की परंपरा शुरू हुई।

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तुलसी विवाह का महत्व (Importance Of Tulsi Vivah)

माना जाता है कि, इस विवाह को कराने से भगवान विष्णु की कृपा मिलती है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है.

जिन युवक या युवतियों के विवाह में परेशानी आती है और वे जल्द विवाह करना चाहते हैं तो उन्हें तुलसी विवाह जरूर संपन्न कराना चाहिए. इससे विवाह में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं।

मृत्यु के समय जिस व्यक्ति के मुख में मंजरी रहित तुलसी और गंगा जल रखकर प्राण निकलते हैं, वह पापों से मुक्त होकर वैकुंठ धाम को प्राप्त होता है।

जो मनुष्य तुलसी व आंवलों की छाया में अपने पितरों का श्राद्ध करता है, उसके पितर मोक्ष को प्राप्त हो जाते हैं।

कहा जाता है कि तुलसी पूजन करने से सुख और शांति की प्राप्ति होती है।

साथ ही घर में सदैव के लिए धन की देवी मां लक्ष्मी का वास रहता है।

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तुलसी विवाह का शुभ मुहूर्त (Tulsi Vivah shubh muhurat)

तुलसी विवाह कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि के दिन प्रदोष काल में किया जाता है।

पंचांग के अनुसार इस साल 12 नवंबर को शाम 04.04 बजे से द्वादशी तिथि की शुरुआत होगी और 13 नवंबर को दोपहर 01.01 बजे
इसका समापन होगा।

तुलसी विवाह प्रदोष काल यानि शाम के समय में किया जाता है। ऐसे में द्वादशी तिथि का प्रदोष काल 12 नवंबर को देवउठनी एकादशी के दिन होगा।

तुलसी विवाह का शुभ मुहूर्त शाम 5.29 बजे से लेकर शाम 7.53 बजे तक रहेगा।

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कैसे करें तुलसी विवाह (Tulsi Vivah Vidhi)

इस दिन तुलसी के पौधे को दुल्हन की तरह सजाया जाता है और साड़ी या चुनरी ओढ़ाई जाती है। साथ ही उन्हें 16 श्रृंगार भी अर्पित किया जाता है।

विवाह के लिए गन्ने, केले के पत्तों, फूलों और रंगोली से मंडप तैयार किया जाता है।

विवाह में तुलसी के पौधे के साथ ही भगवान विष्णु के स्वरूप शालिग्राम को रखा जाता है और उनके द्वारा तुलसी माता को माला पहनाई जाती है।

विवाह की बाकी रस्में भी निभाई जाती हैं। इस दौरान मंत्रों का जाप कर दोनों का विवाह सम्पन्न किया जाता है।

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