Bhagwaan Dattatreya Jayanti: भगवान दत्तात्रेय जयंती हर साल मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है।
भगवान दत्तात्रेय को कलयुग का भगवान कहा जाता है।
ऐसी मान्यता है कि भगवान दत्तात्रेय की पूजा करने से व्यक्ति को पितृदोष से मुक्ति मिलती है।
लेकिन क्या आपको पता है कि इन्हें त्रिदेव का अवतार क्यों माना जाता है और इनका जन्म कैसे हुआ?
अगर नहीं तो आइए जानते हैं भगवान दत्तात्रेय के जन्म की अनोखी कथा…
बेहद अनोखी है जन्म कथा
प्राचीन काल में माता अनुसूया अपने पतिव्रत धर्म की वजह से तीनों देवियों से भी ज्यादा पूजनीय मानी जाने लगी थी।
ऐसे में तीनों देवियां सरस्वती, लक्ष्मी और पार्वती माता अनुसूया से जलने लगी थीं
तीनों ने माता का सतीत्व भंग करने के लिए अपने पति और तीनों देवों से कहा कि वे अनुसूया के पतिव्रत धर्म की परीक्षा लें।
इसके बाद माता अनुसूया की परीक्षा लेने के लिए ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों देवता ब्राह्मण के वेष में उनके आश्रम पहुंचे।
ब्राह्मणों ने अनुसूया की परीक्षा लेने के उद्देश्य से कहा कि हमें भिक्षा चाहिए, लेकिन आपको नग्न अवस्था में हमें भिक्षा देनी होगी।
अनुसूया ने अपने तप के बल से तीनों ब्राह्मणों को नवजात शिशु बना दिया और फिर तीनों शिशुओं को स्तनपान कराया।
जब काफी समय तीनों देव तीनों देवियों के पास नहीं पहुंचे तो सरस्वती, लक्ष्मी और पार्वती अनुसूया के आश्रम में पहुंच गईं।
वहां देवियों ने तीनों देवताओं को शिशु रूप में देखा तो देवियों ने अनुसूया से प्रार्थना की कि वे तीनों देवताओं को क्षमा करें और उनका स्वरूप लौटा दें।
अनुसूया ने कहा कि तीनों देवों को मैंने स्तनपान कराया है, इस वजह से ये तीनों मेरी संतान की तरह हैं, इसलिए इन्हें मेरी संतान के रूप में जन्म लेना होगा।
तीनों देवियों और तीनों देवों में अनुसूया की बात मान लीं। इसके बाद अत्रि मुनि और अनुसूया के यहां ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने दत्तात्रेय, दुर्वासा और चंद्र के रूप में जन्म लिया।
माना जाता है कि दत्तात्रेय भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश के संयुक्त अवतार हैं।
भगवान दत्तात्रेय के 24 गुरू
भगवान दत्तात्रेय को परब्रह्मामूर्ति, सद्गुरु और श्रीगुरुदेवदत्त भी कहा जाता है।
भगवान दत्तात्रेय ने अपने कई गुरु बनाए हैं। उन्हें कई गुरुओं का आश्रय लिया।
बताया जाता है कि इनके पूरे 24 गुरु थे। इनके गुरुओं में पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, समुद्र, चंद्रमा, आकाश, सूर्य सहित आठ प्राकृतिक तत्व हैं।
इसके अलावा उन्होंने कई जीव जंतुओं को भी अपने गुरु के रूप में स्वीकार किया था। जैसे पतंगा, मछली, कौआ, हिरण, सांप, हाथी, मकड़ी, सहित इनके 12 गुरु थे।
इसके अलावा इन्होंने बालक, लोहार, पिंगला नामक वेश्या और कन्या को भी अपने गुरु के रूप में स्वीकार किया था।
भगवान दत्तात्रेय मे कहा है कि हमें जिस किसी से भी ज्ञान मिले वह हमे विवेक के साथ हमे ग्रहण कर लेना चाहिए और जिसे भी ज्ञान की प्राप्ति हो उसे अपना गुरु मान लेना चाहिए।
दत्तात्रेय जयंती का महत्व
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान दत्तात्रेय का अवतरण मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा तिथि के दिन प्रदोष काल में हुआ है।
ऐसी मान्यता है कि इनका पूजन करने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।
साथ ही यदि किसी व्यक्ति पर पितृ दोष है तो उसे उनके मंत्रों का जप अवश्य करना चाहिए। ऐसा करने से व्यक्ति को पितृदोष से मुक्ति मिलती है।
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