हे हरिराम ये क्या हुआ??? हुआ यूं कि भोपाल के एक गोपी-किशन को सिर्फ सरकारी बगंले, फूलों के गुलदस्तों से बेइंतहा प्यार है, तभी तो गोपी-किशन चार इमली और 74 बंगले के बाहर ऐसे खड़े रहते हैं जैसे कि दोनों बंगले के मुख्य गार्ड ही हों।
कुछ अधिकारी इनकी मुस्कुराहट भरी शक्ल देखकर बुला लेते हैं तो कई इनको बाहर से ही रवाना कर देते हैं। इनके इतने चर्चे हैं कि कभी भी इनके ऑफिस का नाम बदल जाता है।
जैसे ही इनकी कंपनी ब्लैक लिस्टेड होती है, तुरंत ही यह नई कंपनी खोल लेते हैं। ब्लैक लिस्टेड होने के बाद भी इनकी सरकारी कामकाजों में अच्छी घुसपैठ है।
आजकल गोपी-किशन कहें या चंगू-मंगू, एक बड़े दलाल को अपना आका बनाये हुए हैं। गोपी-किशन को किसी नई जगह पर अपना खाता खुलवाना होता है तो यह बड़े शातिर तरीके से बड़े दलाल को अपना आका बना लेते हैं। ऐसा ही इन्होंने बीते तीन-चार सालों में किया।
गोपी-किशन ने एक सरकारी विभाग में बड़ा काम किया। हालांकि यह सरकारी विभागों में काम करते रहते हैं।
गोपी-किशन ने एक सरकारी विभाग में काम किया तो कम्प्यूटर और कई आइटम को इन्होंने इतने महंगे दामों में लगाया कि उनके पीछे प्रदेश के कुछ आरटीआई एक्टविस्ट पड़ गये।
अब दोनों का दिमाग डिस्टर्ब टाइप का हो गया है कि अब हम क्या करें, धीरे-धीरे पूरे मार्केट में घोटाले की जानकारी लगने लगी है।
जब-जब कोई एक्टविस्ट इनसे संपर्क करता है तो यह अपने आकाओं को बताते हैं। ऐसे में उस सरकारी विभाग में बैठे अधिकारी, उस समय के सेक्रेट्री सहित आला अधिकारियों का बीपी ऊपर-नीचे होने लगता है।
जो हम बता रहे हैं वह उदारहण नहीं है बल्कि हकीकत है कि गोपी-किशन ने एक सरकारी विभाग में काम किया तो कम्प्यूटर सहित सभी सामग्री मतलब हार्डवेयर में तकरीबन 50 करोड़ रुपये का घोटाला कर डाला।
हालांकि इतने बड़े कांड करने में गोपी-किशन अकेले नहीं हैं। इसमें मिलीभगत अधिकारियों की भी है। एक राजनैतिक पार्टी का कहना भी है कि जल्द से जल्द इस मामले में बड़ा खुलासा किया जायेगा।
खैर खुलासा अभी होना थोड़ा मुश्किल नजर आ रहा है क्योंकि घोटाले में शामिल लाट साहिब बड़े ओहदे पर बैठे हुए हैं।
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