Halma Tradition in Jhabua: जल संरक्षण और सामूहिक श्रमदान की ऐतिहासिक परंपरा ‘हलमा’ ने झाबुआ की सूखी पहाड़ियों पर नई उम्मीद जगा दी है।
शिवगंगा संगठन के नेतृत्व में आयोजित इस हलमा अभियान में लगभग 3 हजार ग्रामीणों ने श्रमदान किया।
इसके तहत हाथीपावा पहाड़ी के उत्तरी क्षेत्र में 100 हेक्टेयर जमीन पर जल संरक्षण के लिए 11 हजार कंटूर ट्रेंच बनाए गए और पुराने ट्रेंच की सफाई की गई।
यह सभी संरचनाएं बारिश के मौसम में कुल 11 करोड़ लीटर पानी को सीधे जमीन में पहुंचाएंगी।
जिससे क्षेत्र का भूजल स्तर बेहतर होगा और जल संकट से राहत मिलेगी।
हजारों हाथों ने पानी के लिए बहाया पसीना
3 मार्च सोमवार को सुबह 7 बजे ग्रामीण अपने साथ गैंती, फावड़े और तगारियां लेकर हाथीपावा पहाड़ी पर पहुंच गए।
पहले से चिह्नित 100 हेक्टेयर क्षेत्र में फैले इन ग्रामीणों ने पूर्व में बनाए गए कंटूर ट्रेंच की सफाई की और कई नए ट्रेंच भी बनाए।

पूरे अभियान के दौरान ‘हर-हर बम-बम’ और ‘भारत माता की जय’ के जयघोष गूंजते रहे।
श्रमदान के इस महापर्व में देशभर से आए जल संरक्षण कार्यकर्ता और सामाजिक संगठनों के लोग भी शामिल हुए।
श्रमदान के बाद पहाड़ी की तस्वीर ही बदल गई।
नजारा ऐसा हो गया मानों खाली हाथ पर किसी ने भाग्य रेखा खींच दी हो।
कोई सरकारी खर्च नहीं, 7 लाख की बचत की
दरअसल, शिवगंगा संगठन द्वारा गोपालपुरा हवाई पट्टी क्षेत्र में 28 फरवरी से ग्राम समृद्धि नवकुंभ का आयोजन किया जा रहा था।
इसी के अंतर्गत हलमा अभियान चलाया गया।
शिवगंगा के महेश शर्मा ने बताया कि तीन हजार ग्रामीणों ने यह पूरा काम बिना किसी सरकारी मदद के सिर्फ अपनी इच्छाशक्ति और हलमा परंपरा के तहत किया है।
अगर यही काम सरकारी स्तर पर किया जाता तो मनरेगा जैसी योजना के तहत करीब 7 लाख 29 हजार रुपये खर्च होते।

इस सामूहिक श्रमदान ने सरकारी खजाने को बड़ी राहत दी है।
वहीं, ग्रामीणों की हलमा परंपरा को करीब से जानने के लिए बाहर से भी कई लोग पहुंचे।
उन्होंने न केवल ग्रामीणों को प्रत्यक्ष रूप से सामूहिक श्रमदान करते देखा बल्कि उनके साथ काम में हाथ भी बंटाया।
31 दिनों तक के लिए जल की जरूरत पूरी
विशेषज्ञों के अनुसार बारिश के मौसम में प्रत्येक ट्रेंच लगभग 10 हजार लीटर पानी जमीन में पहुंचाएगा।
इस हिसाब से 11 हजार ट्रेंच से कुल 11 करोड़ लीटर पानी भूगर्भ में जाएगा।

झाबुआ की वर्तमान आबादी लगभग 50 हजार है।
जिनकी औसत जल आवश्यकता प्रतिदिन 70 लीटर प्रति व्यक्ति है।
इस हिसाब से इन ट्रेंचों में सहेजा गया पानी झाबुआ की पूरी आबादी की 31 दिनों की जल जरूरत को पूरा करने में सक्षम होगा।
आदिवासी परंपरा और शिक्षा का मेल
इस विशेष अभियान में देवी अहिल्या विश्वविद्यालय, इंदौर के कुलपति डॉ. राकेश सिंघई और उनकी पत्नी डॉ. ज्योति सिंघई भी शामिल हुए।
दोनों ने ग्रामीणों के साथ श्रमदान किया और हलमा परंपरा को करीब से समझा।

डॉ. सिंघई ने कहा कि विश्वविद्यालय में ट्राइबल स्टडी कोर्स शुरू किया गया है, जिसमें आदिवासी ज्ञान और परंपराओं का अध्ययन किया जाएगा।
उन्होंने कहा कि झाबुआ के ग्रामीणों ने यह दिखा दिया है कि जल संरक्षण सिर्फ योजनाओं से नहीं, बल्कि सामूहिक भागीदारी से संभव है।
हलमा परंपरा बनी जल संरक्षण की मिसाल
शिवगंगा संगठन का यह प्रयास दर्शाता है कि परंपरागत ज्ञान और आधुनिक जरूरतों का मेल किस तरह ग्रामीण भारत की समस्याओं का समाधान बन सकता है।

हलमा अभियान के तहत किया गया यह श्रमदान भविष्य में झाबुआ के जल संकट को काफी हद तक कम करने में मदद करेगा।
ग्रामीणों ने अपने पसीने की बूंदों से अपने क्षेत्र के लिए जल का भविष्य सुरक्षित करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम बढ़ा दिया है।