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इंदौर ‘शूर्पणखा दहन’ पर हाईकोर्ट ने लगाई रोक, सोनम रघुवंशी सहित 11 महिलाओं के पुतले जलाने थे

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Nisha Rai
Nisha Rai
निशा राय, पिछले 13 सालों से मीडिया के क्षेत्र में सक्रिय हैं। इन्होंने दैनिक भास्कर डिजिटल (M.P.), लाइव हिंदुस्तान डिजिटल (दिल्ली), गृहशोभा-सरिता-मनोहर कहानियां डिजिटल (दिल्ली), बंसल न्यूज (M.P.) जैसे संस्थानों में काम किया है। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय (भोपाल) से पढ़ाई कर चुकीं निशा की एंटरटेनमेंट और लाइफस्टाइल बीट पर अच्छी पकड़ है। इन्होंने सोशल मीडिया (ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम) पर भी काफी काम किया है। इनके पास ब्रांड प्रमोशन और टीम मैनेजमेंट का काफी अच्छा अनुभव है।

Indore Surpanakha Dahan: दशहरे के त्योहार पर रावण के पुतले का दहन समाज में बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। लेकिन इस बार इंदौर में एक नई परंपरा शुरू होने वाली थी।

इस बार सोनम रघुवंशी सहित उन 11 महिलाओं के पुतले जलाए जाने थे। जिन पर अपने पति या परिवार के सदस्यों की हत्या जैसे गंभीर आरोप लगे हैं।

मगर मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने शनिवार, 27 सितंबर को इंदौर दशहरे में होने वाले उस दहन पर रोक लगा दी है।

कोर्ट ने अपने फैसले में साफ कहा कि चाहे किसी पर कितने भी गंभीर आरोप हों, लेकिन उसका पुतला जलाना या उसकी छवि को सार्वजनिक रूप से नुकसान पहुंचाना संविधान और कानून के खिलाफ है।

क्या है पूरा मामला?

इस पूरे विवाद की शुरुआत तब हुई जब इंदौर की एक संस्था ‘पौरुष’ ने विजयादशमी पर ‘शूर्पणखा दहन’ नामक एक कार्यक्रम आयोजित करने की घोषणा की।

संस्था के प्रमुख अशोक दशोरा ने बताया कि उन्होंने रावण के अहंकार के साथ-साथ समाज में महिलाओं के एक विशेष ‘अपराधिक वर्ग’ द्वारा की जा रही ‘बुराई’ को प्रतीकात्मक रूप से जलाने का फैसला किया था।

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इसके लिए उन्होंने 11 सिरों वाला एक पुतला तैयार करवाया था, जिस पर उन सभी महिलाओं की तस्वीरें लगाई जानी थीं, जो पति, बच्चों या ससुराल वालों की हत्या की आरोपी हैं।

इनमें इंदौर की ही सोनम रघुवंशी का नाम भी शामिल था, जिस पर अपने पति राजा रघुवंशी की हत्या का आरोप है।

संस्था का तर्क था कि यह कार्यक्रम किसी व्यक्ति विशेष के खिलाफ नहीं, बल्कि एक सामाजिक बुराई के खिलाफ जागरूकता फैलाने के लिए है।

उनका मानना था कि जिस तरह रावण का पुतला जलाया जाता है, उसी तरह इन महिलाओं की कथित ‘दुष्ट प्रवृत्ति’ के प्रतीक के रूप में यह आयोजन किया जाना चाहिए।

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सोनम की मां ने की थी हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया

इस आयोजन की खबर मिलते ही सोनम रघुवंशी की मां, संगीता रघुवंशी, ने इसे अपनी बेटी और परिवार के सम्मान पर सीधा हमला बताया।

उन्होंने 25 सितंबर को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में एक याचिका दायर कर इस आयोजन पर तत्काल रोक लगाने की मांग की।

याचिका में उन्होंने दो प्रमुख तर्क दिए:

न्यायिक प्रक्रिया का उल्लंघन: 

उनका कहना था कि सोनम पर आरोप जरूर हैं, लेकिन अभी तक कोर्ट ने उसे दोषी नहीं ठहराया है।

भारतीय कानून का सिद्धांत है कि जब तक किसी व्यक्ति को अदालत द्वारा अपराधी साबित नहीं किया जाता, तब तक वह निर्दोष माना जाता है।

ऐसे में, बिना सुनवाई पूरी हुए ही उसका पुतला जलाना ‘मानसिक उत्पीड़न’ के समान है और न्यायिक प्रक्रिया में हस्तक्षेप है।

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महिला अपमान और सामाजिक सौहार्द को खतरा: 

उन्होंने यह भी कहा कि ‘शूर्पणखा’ जैसा नाम देना महिलाओं के प्रति एक नकारात्मक और भेदभावपूर्ण सोच को बढ़ावा देता है।

इस तरह के आयोजन से सामाजिक सौहार्द बिगड़ने का भी खतरा है।

सोनम के भाई, गोविंद रघुवंशी ने भी इसकी शिकायत इंदौर के कलेक्टर से की थी।

गोविंद का तर्क था कि यह आयोजन कानूनन गलत है और सोनम की छवि को बिना किसी वजह बदनाम कर रहा है।

हाईकोर्ट ने क्या कहा?

हाईकोर्ट ने 26 सितंबर को इस मामले की सुनवाई की और संस्था ‘पौरुष’ के आयोजन पर रोक लगाने का ऐतिहासिक फैसला सुनाया।

कोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट और मजबूत शब्दों में कहा:

“लोकतांत्रिक रूप से पूरी तरह से अस्वीकार्य”: 

अदालत ने कहा कि एक लोकतांत्रिक समाज में किसी व्यक्ति का पुतला जलाना पूरी तरह से अस्वीकार्य है।

“संविधान और कानून के खिलाफ”: 

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि भले ही किसी व्यक्ति पर कोई आपराधिक मामला चल रहा हो, लेकिन उसका पुतला जलाना या सार्वजनिक रूप से उसकी छवि को नुकसान पहुंचाना संविधान द्वारा दिए गए मौलिक अधिकारों और कानून के सिद्धांतों के विपरीत है।

यह फैसला केवल एक आयोजन पर रोक भर नहीं है, बल्कि यह एक स्पष्ट संदेश है कि कानून का शासन ‘आंख के बदले आंख’ की संस्कृति से ऊपर है।

कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि आरोपियों के साथ भी न्यायिक प्रक्रिया का पालन करते हुए ही व्यवहार किया जाना चाहिए।

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कौन हैं वे 11 महिलाएं?

संस्था ‘पौरुष’ द्वारा जिन 11 महिलाओं के पुतले जलाने की योजना थी, उन सभी पर बेहद जघन्य अपराधों के आरोप हैं। इनमें शामिल हैं:

  1. शशि (फिरोजाबाद, यूपी): पति की हत्या ऑनलाइन मंगवाए गए जहर से करने का आरोप।

  2. रविता (मेरठ, यूपी): प्रेमी के साथ मिलकर पति को जहरीले सांप से कटवाने का आरोप।

  3. मुस्कान (मेरठ, यूपी): पति की हत्या कर शव के 35 टुकड़े करने का आरोप।

  4. हर्षा (कुचामन, राजस्थान): पति को परिवार के साथ अपमानित करने का आरोप, जिसके बाद पति ने आत्महत्या की।

  5. सूचना सेठ (बेंगलुरु): अपने 4 साल के बेटे की हत्या का आरोप।

  6. सोनम रघुवंशी (इंदौर): प्रेमी के साथ मिलकर पति की हत्या का आरोप।

  7. निकिता सिंघानिया (जौनपुर, यूपी): पति को प्रताड़ित करने का आरोप, जिससे उन्होंने आत्महत्या की।

  8. हंसा (देवास): पति की एसिड से हत्या का आरोप।

  9. सुष्मिता (द्वारका, दिल्ली): पति को नींद की गोलियां खिलाकर करंट लगाकर हत्या का आरोप।

  10. चमन उर्फ गुड़िया (नालासोपारा, मुंबई): प्रेमी के साथ मिलकर पति की हत्या का आरोप।

  11. प्रियंका (औरैया, यूपी): अपने ही चार बच्चों की नदी में डूबाकर हत्या का आरोप।

इन सभी केसों की गंभीरता को देखते हुए समाज में गुस्सा और नाराजगी स्वाभाविक है।

लेकिन, हाईकोर्ट के फैसले ने यह स्थापित किया है कि अपराध की निंदा करने के तरीके भी कानून की सीमाओं के भीतर होने चाहिए।

कानून बना रहना चाहिए

इंदौर का यह मामला सिर्फ एक पुतले को जलाने या न जलाने का विवाद नहीं है।

यह एक बड़े सवाल को उठाता है: क्या समाज को अपने हाथों में न्याय लेना चाहिए?

हाईकोर्ट के फैसले ने इस सवाल का जवाब ‘नहीं’ में दिया है।

इस फैसले ने व्यक्ति की गरिमा, कानून के शासन और ‘निर्दोष तब तक है जब तक दोषी साबित न हो’ के सिद्धांत की रक्षा की है।

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