Khandwa Child Death: मध्य प्रदेश के खंडवा जिले के गांधवा गांव में एक झोलाछाप डॉक्टर की लापरवाही के कारण एक डेढ़ साल के मासूम बच्चे की दर्दनाक मौत हो गई।
बच्चे को पेट दर्द की शिकायत पर ले जाया गया था, लेकिन डॉक्टर ने उसे निमोनिया बताकर पांच इंजेक्शन का भारी डोज दे दिया, जिसके बाद बच्चे की हालत बिगड़ गई और उसकी मौत हो गई।
हैरानी की बात यह है कि यह डॉक्टर यूक्रेन से अपनी मेडिकल पढ़ाई अधूरी छोड़कर आया था और इससे पहले भी उसके गलत इलाज से एक युवती की जान जा चुकी है।
पेट दर्द की शिकायत थी, इलाज के बाद बिगड़ी तबीयत
बच्चे के पिता लाबु बारेला ने बताया कि गुरुवार को उनके बच्चे को पेट में दर्द की शिकायत थी।
एक रिश्तेदार के कहने पर वे उसे गांधवा गांव में डॉक्टर हिमांशु यादव के क्लिनिक पर ले गए।
यह क्लिनिक एक छोटी सी दुकान में चल रहा था।

झोलाछाप डॉक्टर ने बच्चे का सामान्य चेकअप किया और दावा किया कि बच्चे को निमोनिया है और इलाज में पांच दिन लगेंगे।
इसके बाद उसने पहले बच्चे को एक छोटी सलाइन लगाई और फिर एक बड़ी सलाइन में पांच इंजेक्शन एक साथ मिलाकर दे दिए।
इलाज के कुछ ही देर बाद बच्चे की तबीयत बिगड़ने लगी।
जब परिवार वालों ने डॉक्टर को बुलाया, तो वह मौके पर नहीं था।
उल्टे डॉक्टर की पत्नी ने परिजनों को धमकी देते हुए कहा कि बच्चे को वहां से ले जाओ, नहीं तो पुलिस को बुला लेंगे।
पुलिस और प्रशासन की लापरवाही भी जिम्मेदार
मामला तब और गंभीर हो गया जब बच्चे के पिता शिकायत लेकर पहले स्थानीय चौकी पहुंचे, लेकिन पुलिस ने उनकी सुनवाई नहीं की।
बाद में उन्हें पिपलोद थाने जाकर शिकायत दर्ज करानी पड़ी।
बच्चे को जिला अस्पताल ले जाया गया, जहां शुक्रवार को पोस्टमॉर्टम हुआ।
दूसरी ओर, ब्लॉक मेडिकल ऑफिसर (बीएमओ) ने माना कि इलाके में कई झोलाछाप डॉक्टर practice कर रहे हैं और उन्हें एक-एक कर नोटिस भेजे जा रहे हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि हिमांशु के पास क्लिनिक चलाने का कोई रजिस्ट्रेशन नहीं है।
डॉक्टर ने पहले भी ली थी एक जान
पता चला है कि यह घटना इस झोलाछाप डॉक्टर का पहला अपराध नहीं है।
हिमांशु यादव लॉकडाउन के बाद से ही बिना किसी मान्यता के प्रैक्टिस कर रहा था।
करीब तीन साल पहले उसने गांव की एक युवती को गलत इंजेक्शन दे दिया था, जिससे उसकी मौत हो गई थी।
उस मामले में भी परिवार और डॉक्टर के बीच समझौता हो गया था और कोई कानूनी कार्रवाई नहीं हुई।
हिमांशु के पिता गणेश यादव सरकारी डिस्पेंसरी में ड्रेसर हैं।
कैसे करते हैं ऐसे झोलाछाप धंधा?
यह मामला एक बार फिर सवाल खड़ा करता है कि बिना उचित योग्यता और लाइसेंस के ऐसे झोलाछाप कैसे खुलेआम मरीजों का इलाज कर रहे हैं।
निमोनिया जैसी गंभीर बीमारी की पुष्टि के लिए एक्स-रे जैसी जांच जरूरी होती है, लेकिन झोलाछाप डॉक्टरों के पास न तो जांच के साधन होते हैं और न ही ज्ञान।
वे सिर्फ स्टेथोस्कोप से सुनकर ही गंभीर बीमारी का निदान कर देते हैं और मरीजों की जान से खिलवाड़ करते हैं।


