Chhath Puja Nahay Khay: लोक आस्था के सबसे महत्वपूर्ण और अनूठे पर्वों में से एक, छठ पूजा 25 अक्टूबर से 28 अक्टूबर तक चार दिनों तक बहुत ही श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाई जाएगी।
यह पर्व मुख्य रूप से सूर्य देव और छठी मैया की उपासना को समर्पित है।
इस लेख में हम आपको महापर्व के चारों दिनों का धार्मिक एवं सामाजिक महत्व, और आवश्यक पूजन सामग्री के बारे में पूरी जानकारी देंगे…

छठ पूजा 2025: चार दिनों का महत्व
छठ पूजा का पर्व चार दिनों तक चलने वाला एक सख्त अनुशासन और श्रद्धा का अनुष्ठान है।
इसमें व्रती 36 घंटे का निर्जला व्रत रखते हैं।
आइए जानते हैं प्रत्येक दिन की रस्मों और उनके महत्व के बारे में:
1. पहला दिन: नहाय-खाय (25 अक्टूबर, शनिवार)
पर्व की शुरुआत ‘नहाय-खाय’ से होती है।
इस दिन व्रत रखने वाले लोग (व्रती) सुबह स्नान करके अपने घर और आस-पास के वातावरण की शुद्धि करते हैं।
इसके बाद शुद्ध शाकाहारी भोजन तैयार किया जाता है।
इस दिन कद्दू-चना दाल और चावल का भोजन प्रमुख रूप से ग्रहण किया जाता है।
यह दिन शारीरिक और मानसिक शुद्धता को दर्शाता है, जो कठोर व्रत के लिए पहला कदम है।

2. दूसरा दिन: खरना या लोहंडा (26 अक्टूबर, रविवार)
दूसरे दिन को ‘खरना’ या ‘लोहंडा’ कहा जाता है। इस दिन व्रती पूरे दिन निर्जला व्रत रखते हैं।
शाम के समय गुड़ की खीर (गुड़ के साथ बनी चावल की खीर), घर का बना पूरी (रोटी) और केले का प्रसाद तैयार किया जाता है।
इस प्रसाद को पहले सूर्य देव और छठी मैया को अर्पित किया जाता है, उसके बाद इसे व्रती ग्रहण करते हैं और परिवार के सदस्यों एवं पड़ोसियों में बांटा जाता है।
इस रस्म के बाद ही 36 घंटे के कठिन निर्जला व्रत की शुरुआत हो जाती है।

3. तीसरा दिन: संध्या अर्घ्य (27 अक्टूबर, सोमवार)
यह छठ पूजा का सबसे महत्वपूर्ण दिन होता है। इसे ‘संध्या अर्घ्य’ के नाम से जाना जाता है।
इस दिन व्रती शाम के समय नदी, तालाब या घर पर बने अस्थाई घाटों पर जाते हैं।
वे डूबते हुए सूर्य (अस्ताचलगामी सूर्य) को अर्घ्य देते हैं।
इस दौरान बांस की डलिया में ठेकुआ, मौसमी फल, नारियल, गन्ना आदि चढ़ाया जाता है।
घाटों पर छठ के पारंपरिक गीतों की गूंज और दीयों की रोशनी एक अद्भुत और आध्यात्मिक माहौल बनाती है।

4. चौथा दिन: उषा अर्घ्य (28 अक्टूबर, मंगलवार)
पर्व का समापन चौथे दिन ‘उषा अर्घ्य’ के साथ होता है।
व्रती सुबह बहुत जल्दी उठकर उगते हुए सूर्य (उदयीमान सूर्य) को अर्घ्य देने के लिए फिर से घाट पर पहुंचते हैं।
उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद व्रती अपना 36 घंटे का कठिन निर्जला व्रत पूरा करते हैं।
इसके बाद छठी मैया की कथा सुनकर प्रसाद बांटा जाता है और सभी लोग प्रसाद ग्रहण करके पर्व की शुभ समाप्ति मनाते हैं।

छठ पूजा का धार्मिक और सामाजिक महत्व
छठ पूजा सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान ही नहीं, बल्कि प्रकृति की पूजा का भी प्रतीक है।
सूर्य, जो जीवन के मूल आधार हैं, उनकी उपासना करके लोग उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं।
यह पर्व परिवार की सुख-समृद्धि, संतान की लंबी उम्र और मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए मनाया जाता है।
सामाजिक रूप से, यह पर्व समानता और एकजुटता का संदेश देता है, क्योंकि इसमें सभी जाति और वर्ग के लोग बिना किसी भेदभाव के शामिल होते हैं।
छठ पूजा के लिए आवश्यक पूजन सामग्री
छठ पूजा के प्रसाद और अनुष्ठान के लिए निम्नलिखित सामग्री की आवश्यकता होती है:
- बांस या पीपल के पत्तों से बना सूप और डलिया।
- पानी वाला नारियल।
- गन्ना, सुथनी, शकरकंद।
- विभिन्न प्रकार के मौसमी फल जैसे केला, नाशपाती, नींबू आदि।
- पारंपरिक मिठाइयाँ जैसे ठेकुआ (जिसे कुछ क्षेत्रों में ‘ठेकवा’ या ‘खस्ता’ भी कहते हैं), पुआ, चावल के लड्डू।
- चावल, सिंदूर, कपूर, पान के पत्ते और दीपक।


