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छठ पूजा में संध्या अर्घ्य के बाद क्यों भरते हैं कोसी? जानें इसका मतलब और पूरी विधि

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Nisha Rai
Nisha Rai
निशा राय, पिछले 13 सालों से मीडिया के क्षेत्र में सक्रिय हैं। इन्होंने दैनिक भास्कर डिजिटल (M.P.), लाइव हिंदुस्तान डिजिटल (दिल्ली), गृहशोभा-सरिता-मनोहर कहानियां डिजिटल (दिल्ली), बंसल न्यूज (M.P.) जैसे संस्थानों में काम किया है। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय (भोपाल) से पढ़ाई कर चुकीं निशा की एंटरटेनमेंट और लाइफस्टाइल बीट पर अच्छी पकड़ है। इन्होंने सोशल मीडिया (ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम) पर भी काफी काम किया है। इनके पास ब्रांड प्रमोशन और टीम मैनेजमेंट का काफी अच्छा अनुभव है।

What Is Kosi: छठ पूजा लोक आस्था का एक ऐसा महापर्व है, जहां हर रस्म, हर परंपरा का अपना एक गहरा अर्थ और महत्व होता है।

इसी कड़ी में एक बेहद खास रस्म है “कोसी भरना”।

यह वह पावन अनुष्ठान छठ के तीसरे दिन, यानी संध्या अर्घ्य के बाद, व्रतियों के घरों के आंगन या छत में किया जाता है।

आइए, जानते हैं कि आखिर कोसी क्या है, इसे भरने की विधि और इसके पीछे छठी मइया के कौन से आशीवार्द छिपे हैं…

कोसी क्या है? गन्नों से बना एक पवित्र मंडप

साधारण शब्दों में कहें तो, कोसी गन्नों से बनी एक छतरीनुमा या मंडप जैसी संरचना होती है।

इसे बनाने के लिए 5, 7 या इसी तरह की विषम संख्या में गन्नों को एक साथ खड़ा करके उनके ऊपरी सिरों को बांध दिया जाता है, जिससे एक छोटा सा शामियाना बन जाता है।

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इस गन्ने के मंडप के नीचे एक विशेष पूजन की व्यवस्था की जाती है:

  1. मिट्टी का हाथी: इसे समृद्धि, बल और ऐश्वर्य का प्रतीक माना जाता है।
  2. मिट्टी का कलश या घड़ा: यह संपूर्ण सृष्टि का प्रतीक है और इसमें देवताओं का वास माना जाता है।
  3. छठ प्रसाद: ठेकुआ, केला, नारियल, मूली, अदरक, गन्ना आदि सभी प्रसाद इसके अंदर रखे जाते हैं।
  4. जलते हुए दीपक: घड़े के ऊपर या आस-पास कई दीपक जलाए जाते हैं, जो ज्ञान और ऊर्जा का प्रतीक हैं।

गन्नों और दीपकों की ज्योति से सजा ये मंडप कोसी कहलाता है।

संध्या अर्घ्य के बाद क्यों होती है कोसी की पूजा? 

कोसी भरने और उसकी पूजा करने के पीछे कई गहरी मान्यताएं और कारण हैं:

1. मनोकामना पूर्ति और कृतज्ञता का प्रतीक:

यह कोसी परंपरा का सबसे प्रमुख कारण है। मान्यता है कि जब कोई भक्त छठी मइया से कोई मन्नत मांगता है, जैसे संतान प्राप्ति, नौकरी में सफलता, या किसी बीमारी से मुक्ति, और उसकी वह मनोकामना पूरी हो जाती है, तो वह छठी मइया के प्रति आभार और कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए कोसी भरता है। यह उनका “धन्यवाद” होता है।

2. संतान की दीर्घायु और सुख-समृद्धि की कामना:

कोसी को परिवार, विशेषकर संतानों की रक्षा के प्रतीक के रूप में भी देखा जाता है।

गन्नों का घेरा एक सुरक्षा कवच का काम करता है और मिट्टी का हाथी शक्ति व समृद्धि लाता है।

इसकी पूजा से छठी मइया परिवार पर अपनी कृपा बनाए रखती हैं।

3. पंचतत्वों का प्रतिनिधित्व:

गन्ने जमीन से पैदा होते हैं, उनमें जल का तत्व समाहित होता है।

दीपक अग्नि का प्रतीक है और गन्नों के बीच का स्थान वायु और आकाश तत्व को दर्शाता है।

इस तरह, कोसी प्रकृति के पंचतत्वों का एक प्रतिनिधि है और इसकी पूजा प्रकृति की पूजा के समान मानी जाती है।

4. सौभाग्य में वृद्धि:

ऐसी मान्यता है कि कोसी भरने और उसका पूजन करने से व्रतधारी का सौभाग्य चमक उठता है और घर-परिवार में सुख-शांति का वास होता है।

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कोसी भरने और पूजन की संपूर्ण विधि (Koshi Bharne ki Vidhi)

कोसी भरने की रस्म बेहद पवित्र और निश्चित नियमों के तहत की जाती है:

1. संध्या अर्घ्य की समाप्ति

कोसी का पूजन संध्या अर्घ्य देने के बाद ही किया जाता है।

जब व्रती घाट से सूर्य देव को अर्घ्य देकर घर लौटते हैं, तब यह अनुष्ठान शुरू होता है।

2. कोसी का निर्माण

घर के आंगन या छत पर एक साफ-सुथरे स्थान पर गन्नों से एक मंडप बनाया जाता है।

इस मंडप के नीचे एक चौकी या जमीन पर एक सूप रखा जाता है।

3. प्रतीकों की स्थापना

सूप के बीच में मिट्टी के हाथी की स्थापना की जाती है। उस हाथी पर सिंदूर चढ़ाया जाता है।

हाथी के ऊपर एक मिट्टी का कलश (घड़ा) रखा जाता है।

इस घड़े में पानी, दूध, फल, सुपारी और सिक्के आदि रखे जा सकते हैं।

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4. प्रसाद और दीपों से सज्जा

अब इस सूप को छठ के सभी पारंपरिक प्रसाद जैसे ठेकुआ, फल, मूली आदि से सजाया जाता है।

इसके बाद, घड़े के ऊपर या आस-पास 12 या 24 दीपक जलाए जाते हैं।

ये दीपक साल के 12 महीनों या दिन के 24 घंटों का प्रतीक माने जाते हैं, जो छठी मइया से सालभर अपने परिवार पर कृपा बनाए रखने की प्रार्थना करते हैं।

5. पूजन और आरती

कोसी को सजाने के बाद, व्रती और परिवार के सदस्य मिलकर इसकी पूजा करते हैं।

धूप-दीप जलाकर, छठ मइया के लोकगीत गाए जाते हैं और आरती की जाती है।

कई परिवारों में इस दौरान हवन भी किया जाता है।

6. मन्नत उतारने की रस्म

जिसकी मनोकामना पूरी हुई है, वह व्रती एक गमछे या चुनरी की सहायता से उस व्यक्ति (जैसे बच्चे) का हाथ कोसी के अंदर गन्ने से बांध देती हैं।

मान्यता है कि अगर छठी मइया प्रसन्न होती हैं, तो यह गांठ अपने आप खुल जाती है, जो मन्नत के पूर्ण होने का संकेत देती है।

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कोसी कोई साधारण सजावट नहीं है। यह छठ व्रतियों की अटूट आस्था, छठी मइया के प्रति उनकी कृतज्ञता और परिवार के प्रति उनके असीम प्रेम का प्रतीक है।

गन्नों की इस छतरी के नीचे जो दीपक जलते हैं, वे सिर्फ घी के नहीं, बल्कि श्रद्धा और विश्वास की ज्योति होते हैं।

यह परंपरा बताती है कि छठ पूजा सिर्फ नदी किनारे की ही पूजा नहीं, बल्कि घर-आंगन में बसी एक दिव्य ऊर्जा है, जो छठी मइया का आशीर्वाद लेकर आती है और हर भक्त के जीवन को प्रकाशमय बना देती है।

डिस्क्लेमर: यह लेख सामान्य जानकारी और लोक मान्यताओं पर आधारित है। विस्तृत और स्थानीय रीति-रिवाजों के लिए किसी जानकार व्यक्ति या धर्मगुरु की सलाह अवश्य लें।

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