MP Foundation Day: हर साल 1 नवंबर को मध्य प्रदेश अपना स्थापना दिवस मनाता है।
इस बार 2025 में यह राज्य अपने गठन के 70 साल पूरे कर रहा है, यानी यह सात दशकों का एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है।
‘भारत का दिल’ कहलाने वाले इस राज्य के बनने की कहानी बेहद दिलचस्प है, जिसमें चार अलग-अलग राज्यों का एकीकरण, राजधानी को लेकर बहस और फिर 45 साल बाद विभाजन तक शामिल है।

आइए, जानते हैं कैसे अस्तित्व में आया मध्य प्रदेश।
भाषा और संस्कृति के आधार पर कैसे जड़ें जमाईं मध्य प्रदेश ने
भारत को 1947 में आजादी तो मिल गई, लेकिन देश के अंदर राज्यों की सीमाएं एक बड़ा सवाल बनी हुई थीं।
अंग्रेजों ने अपनी प्रशासनिक सुविधा के हिसाब से राज्य बनाए थे, जो अक्सर भाषाई और सांस्कृतिक एकरूपता पर खरे नहीं उतरते थे।
इस समस्या को सुलझाने के लिए 1956 में ‘राज्य पुनर्गठन अधिनियम’ लागू किया गया।
इस अधिनियम का मुख्य आधार भाषा और सांस्कृति थी, ताकि एक ही भाषा बोलने और साझा संस्कृति वाले लोग एक ही राज्य के अंतर्गत आ सकें।
इसी अधिनियम के तहत 1 नवंबर, 1956 को देश में 14 नए राज्यों का गठन हुआ, जिनमें से एक था – मध्य प्रदेश।
लेकिन यह राज्य किसी एक क्षेत्र को मिलाकर नहीं, बल्कि चार अलग-अलग राज्यों के विलय से बना था।
इन चार हिस्सों ने मिलकर आज के मध्य प्रदेश की नींव रखी।

चार टुकड़ों से जुड़कर बना एक विशाल राज्य
आजादी के बाद के शुरुआती वर्षों में भारत के राज्यों को ‘पार्ट ए’, ‘पार्ट बी’, ‘पार्ट सी’ और ‘पार्ट डी’ में बांटा गया था।
मध्य प्रदेश के गठन में इन्हीं श्रेणियों के चार क्षेत्रों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई:
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मध्य प्रांत और बरार (सेंट्रल प्रोविंसेज एंड बरार): यह सबसे बड़ा हिस्सा था, जो एक ‘पार्ट ए’ राज्य था। इसकी राजधानी नागपुर थी। हालांकि, राज्य पुनर्गठन के दौरान इसके मराठी भाषी इलाकों (जैसे विदर्भ) को अलग करके बॉम्बे राज्य (बाद का महाराष्ट्र) में मिला दिया गया। बचा हुआ हिस्सा नए मध्य प्रदेश में शामिल हो गया।
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मध्य भारत (मध्य भारत): यह एक ‘पार्ट बी’ राज्य था, जो मुख्य रूप से ग्वालियर और इंदौर जैसी पूर्व रियासतों को मिलाकर बना था। इसकी राजधानी ग्वालियर और इंदौर दोनों थीं (शासन ग्वालियर से और उच्च न्यायालय इंदौर से चलता था)। इसे पूरी तरह से नए मध्य प्रदेश में मिला दिया गया।
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विंध्य प्रदेश: यह एक ‘पार्ट सी’ राज्य था, जिसकी राजधानी रीवा थी। इसे भी नए मध्य प्रदेश का हिस्सा बनाया गया।
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भोपाल राज्य: यह भी एक ‘पार्ट सी’ राज्य था, जो भोपाल रियासत पर आधारित था। इसे भी नए राज्य में शामिल किया गया।
इस तरह, इन चार विविधताओं भरे क्षेत्रों को एक सूत्र में पिरोकर 1 नवंबर, 1956 को एक विशाल मध्य प्रदेश का गठन हुआ, जो क्षेत्रफल के हिसाब से उस समय भारत का सबसे बड़ा राज्य बना।

राजधानी की जंग: भोपाल ने कैसे मारी बाजी?
किसी भी नए राज्य के लिए उसकी राजधानी का चुनाव सबसे अहम और अक्सर विवादास्पद फैसला होता है।
मध्य प्रदेश के साथ भी ऐसा ही हुआ। राजधानी बनने के लिए कई शहरों ने जोरदार दावेदारी पेश की।
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इंदौर और ग्वालियर: ये दोनों शहर आर्थिक और ऐतिहासिक रूप से मजबूत स्थिति में थे। इंदौर व्यापार और उद्योग का केंद्र था, तो ग्वालियर एक बड़ी रियासत की राजधानी रह चुका था।
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जबलपुर: हैरानी की बात यह है कि राज्य पुनर्गठन आयोग ने खुद जबलपुर को राजधानी बनाने का सुझाव दिया था, क्योंकि यह भौगोलिक रूप से केंद्र में था।
लेकिन आखिरकार भोपाल को चुना गया। इसके पीछे कई ठोस कारण थे:
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सरकारी भवनों की उपलब्धता: भोपाल, भोपाल रियासत की राजधानी होने के नाते, पहले से ही कई सरकारी भवनों, विधानसभा भवन और शासकीय आवासों से लैस था। नई राजधानी बनाने के लिए जमीन अधिग्रहण और निर्माण पर होने वाले खर्च और समय से बचा जा सका।
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केंद्रीय स्थान: भोपाल नए बने राज्य के भौगोलिक केंद्र के करीब था, जिससे प्रशासनिक कार्यों में सुविधा होती। यह राज्य के सभी कोनों से कनेक्टिविटी के लिहाज से अच्छी स्थिति में था।
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राजनीतिक सूझबूझ: कहा जाता है कि तत्कालीन केंद्र सरकार चाहती थी कि भोपाल के नवाब का प्रभाव कम हो और प्रशासन पर केंद्र का नियंत्रण मजबूत हो। राजधानी बनने से भोपाल का पुराना राजशाही ढांचा कमजोर पड़ेगा, यह एक रणनीतिक फैसला भी था।
इस प्रकार, सभी दावेदारों को पीछे छोड़ते हुए भोपाल मध्य प्रदेश की राजधानी बनकर उभरा और 1972 में इसे अलग जिले का दर्जा भी मिल गया।

सफर की शुरुआत और आंधी का दौर: पहला मुख्यमंत्री और भोपाल गैस त्रासदी
नए राज्य के पहले मुख्यमंत्री के रूप में पंडित रविशंकर शुक्ल ने 1 नवंबर, 1956 को ही शपथ ली। वह एक अनुभवी राजनेता और स्वतंत्रता सेनानी थे।
दुर्भाग्य से, शपथ लेने के महज दो महीने बाद ही जनवरी 1957 में उनका निधन हो गया। लेकिन उन्होंने अपने छोटे से कार्यकाल में ही राज्य की नींव को मजबूती प्रदान की।
लेकिन इस सफर में एक काले अध्याय से भी राज्य का सामना हुआ। 2-3 दिसंबर, 1984 की रात, राजधानी भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड कारखाने से जहरीली मिथाइल आइसोसाइनेट (MIC) गैस का रिसाव हुआ।
यह भोपाल गैस कांड दुनिया की अब तक की सबसे भयावह औद्योगिक त्रासदी बन गई। एक ही रात में हजारों लोगों की मौत हो गई और लाखों लोग उस गैस के दुष्प्रभावों से आजीवन पीड़ित हो गए।
यह घटना न सिर्फ मध्य प्रदेश, बल्कि पूरे देश और दुनिया के लिए एक सबक बनकर रह गई।

2000 का विभाजन: मध्य प्रदेश से अलग हुआ छत्तीसगढ़
70 साल के सफर में मध्य प्रदेश ने एक और बड़ा बदलाव देखा। लंबे समय से चले आ रहे अलग राज्य के आंदोलनों के बाद, 1 नवंबर, 2000 को मध्य प्रदेश के पूर्वी हिस्से को अलग करके एक नया राज्य छत्तीसगढ़ बनाया गया।
इस विभाजन के साथ ही मध्य प्रदेश का क्षेत्रफल कम हो गया और यह अब भारत का सबसे बड़ा राज्य नहीं रहा।
फिर भी, इसने अपनी ‘भारत का दिल’ वाली पहचान बरकरार रखी।
विभाजन के समय मध्य प्रदेश में 43 जिले थे, जबकि आज यह संख्या बढ़कर 52 हो चुकी है।

क्यों खास है ‘भारत का दिल’ मध्य प्रदेश?
मध्य प्रदेश सिर्फ एक राज्य नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर का जीवंत संग्रहालय है।
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ऐतिहासिक विरासत: यहां खजुराहो के कामुक शिल्प वाले मंदिर, सांची का विश्व प्रसिद्ध बौद्ध स्तूप और भीमबेटका की 30,000 साल पुरानी गुफाएं हैं।
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धार्मिक महत्व: उज्जैन में महाकालेश्वर और ओंकारेश्वर में दो ज्योतिर्लिंग स्थित हैं। हर 12 साल में उज्जैन में सिंहस्थ कुंभ मेले का आयोजन होता है।
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प्राकृतिक सम्पदा: यह राज्य नर्मदा और ताप्ती जैसी नदियों का उद्गम स्थल है। कान्हा, बांधवगढ़ और पेंच जैसे राष्ट्रीय उद्यान यहां के वन्यजीवन की शान हैं।
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सांस्कृतिक विविधता: यहां के आदिवासी समुदाय (भील, गोंड) अपनी अनूठी कला, लोक नृत्य और शिल्प के लिए जाने जाते हैं।

मध्य प्रदेश के 70 साल के इस सफर में उतार-चढ़ाव, त्रासदियां और सफलताएं सभी शामिल हैं।
चार अलग-अलग इकाइयों से शुरू हुआ यह सफर आज एक सशक्त और विकासशील राज्य के रूप में हमारे सामने है।
1 नवंबर का दिन सिर्फ स्थापना दिवस ही नहीं, बल्कि इसके गौरवशाली इतिहास, लचीलेपन और भविष्य की असीम संभावनाओं को याद करने का दिन है।
भारत का यह दिल आज भी गर्व से धड़क रहा है।


