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MP सरकार ने लैंड-पूलिंग एक्ट में संशोधन किया, किसान संघ ने फिर दी आंदोलन की चेतावनी

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Nisha Rai
Nisha Rai
निशा राय, पिछले 13 सालों से मीडिया के क्षेत्र में सक्रिय हैं। इन्होंने दैनिक भास्कर डिजिटल (M.P.), लाइव हिंदुस्तान डिजिटल (दिल्ली), गृहशोभा-सरिता-मनोहर कहानियां डिजिटल (दिल्ली), बंसल न्यूज (M.P.) जैसे संस्थानों में काम किया है। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय (भोपाल) से पढ़ाई कर चुकीं निशा की एंटरटेनमेंट और लाइफस्टाइल बीट पर अच्छी पकड़ है। इन्होंने सोशल मीडिया (ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम) पर भी काफी काम किया है। इनके पास ब्रांड प्रमोशन और टीम मैनेजमेंट का काफी अच्छा अनुभव है।

Land Pooling Act-Farmers Protest: मध्य प्रदेश सरकार ने बुधवार, 19 नवंबर को विवादास्पद लैंड-पूलिंग एक्ट में संशोधन का आदेश जारी किया है।

भारतीय किसान संघ इस संशोधन से खुश नहीं है और इसे “गोलमोल” करार देते हुए सरकार को फिर से आंदोलन की चेतावनी दे डाली है।

किसान संघ का आरोप है कि सरकार ने वार्ता के दौरान किए गए वादे से मुकरते हुए एक्ट को पूरी तरह से रद्द करने की बजाय सिर्फ उसमें बदलाव किया है।

उनका कहना है कि यदि दो दिनों के भीतर उनकी मांगें नहीं मानी गईं, तो वे फिर से आंदोलन के रास्ते पर चल पड़ेंगे।

क्या है पूरा मामला? लैंड-पूलिंग एक्ट और किसानों की चिंता

लैंड-पूलिंग एक्ट के तहत, सरकार किसानों से उनकी जमीन लेती थी, उस पर पक्का निर्माण (जैसे सड़क, बिजली के खंभे) करवाती थी, और फिर विकसित जमीन का लगभग आधा हिस्सा किसानों को वापस लौटा देती थी।

इसमें जमीन के लिए सीधे मुआवजे का कोई प्रावधान नहीं था।

इसी बात से किसान लंबे समय से नाराज चल रहे थे।

इस बार सिंहस्थ के लिए, सरकार ने उज्जैन के आस-पास टीडीएस-8, 9, 10 और 11 नामक चार क्षेत्रों में करीब 2344 हेक्टेयर जमीन पर एक ‘स्पिरिचुअल सिटी’ बनाने की योजना बनाई थी।

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किसान संघ इस पूरी योजना और लैंड-पूलिंग एक्ट के खिलाफ खड़े हो गए।

उनकी मांग थी कि इस एक्ट को पूरी तरह से रद्द किया जाए ताकि सिंहस्थ पहले की तरह परंपरागत ढंग से आयोजित हो सके।

संशोधन में क्या बदलाव हुए? सरकार और किसानों के बीच अटकी कहां बात?

सरकार और किसान नेताओं के बीच हुई वार्ता के बाद एक समझौता हुआ था। किसानों को लगा कि एक्ट पूरी तरह खत्म हो जाएगा।

लेकिन, जारी हुए आदेश में सिर्फ धारा 52(1) ख में संशोधन किया गया है, पूरे एक्ट को रद्द नहीं किया गया।

संशोधन के मुख्य बिंदु:

  • जमीन पर अधिकार: लैंड-पूलिंग लागू होने के कारण टीडीएस 8,9,10,11 की जमीन पर उज्जैन विकास प्राधिकरण (UDA) का अधिकार था। संशोधन के बाद अब यह जमीन दोबारा किसानों को वापस मिल जाएगी।
  • जमीन अधिग्रहण अब नए तरीके से: अब सरकार जमीन के विकास के लिए भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 का सहारा लेगी। इसके तहत किसानों को उनकी जमीन का मुआवजा मिलेगा। पहले मुआवजे का कोई प्रावधान नहीं था।
  • कम जमीन की जरूरत: पहले 2344 हेक्टेयर जमीन की जरूरत थी, अब सिर्फ 70 हेक्टेयर जमीन ही इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए चाहिए। इसमें से 23 हेक्टेयर पहले से सरकारी जमीन है, बाकी की निजी जमीन अधिग्रहण कानून के तहत ली जाएगी।
  • मुआवजे का फॉर्मूला: अगर सरकार कच्चा निर्माण (जैसे अस्थायी सड़क) करती है, तो कम मुआवजा मिलेगा। लेकिन अगर पक्का निर्माण (स्थायी सड़क, नाली) होता है, तो जमीन का स्थायी अधिग्रहण होगा और किसानों को दोगुना मुआवजा दिया जाएगा।

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किसान संघ की चिंताएं और मांगें:

भारतीय किसान संघ के प्रदेश अध्यक्ष कमल सिंह आंजना का कहना है कि सरकार ने वार्ता में एक्ट को “समाप्त” करने की बात कही थी, लेकिन अब सिर्फ “संशोधन” किया गया है।

उन्हें लगता है कि धारा 50 और 12(क) जैसे प्रावधान अभी भी मौजूद हैं, जिससे सरकार की मंशा साफ नहीं दिख रही।

उनकी मुख्य मांगें हैं:

  1. सिंहस्थ क्षेत्र के लिए लैंड-पूलिंग एक्ट को पूर्ण रूप से रद्द किया जाए।
  2. टीडीएस-8,9,10,11 के लिए जारी गजट नोटिफिकेशन को वापस लिया जाए।
  3. उज्जैन में सिंहस्थ आंदोलन के दौरान किसानों पर दर्ज सभी मुकदमे वापस लिए जाएं।
  4. सिंहस्थ क्षेत्र में कोई भी स्थायी निर्माण न हो।

What is Land Pooling Act

सिंहस्थ के लिए सरकार की नई रणनीति और भविष्य की योजनाएं

इस पूरे विवाद के बीच, मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने दावा किया है कि सिंहस्थ का वैभव पूरा विश्व देखेगा।

सरकार की ओर से यह भी स्पष्ट किया गया है कि पक्का निर्माण ज्यादा से ज्यादा सरकारी जमीन पर ही किया जाएगा।

साथ ही, सिंहस्थ 2028 से पहले सरकार एक नया कानून लाने की भी तैयारी कर रही है, जो मौजूदा ‘मध्यभारत सिंहस्थ मेला एक्ट 1955’ की जगह लेगा।

इस नए अधिनियम में मेला क्षेत्र में अतिक्रमण रोकने के लिए सख्त दंड और भारी जुर्माने का प्रावधान होगा।

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अभी स्थिति तनावपूर्ण बनी हुई है। एक तरफ सरकार का कहना है कि उसने किसानों की चिंताओं को दूर करते हुए संशोधन किया है और जमीन का अधिकार वापस दिया है।

वहीं, दूसरी तरफ किसान संघ इसे अपनी जीत नहीं मान रहा और एक्ट के पूर्ण रद्दीकरण पर अड़ा हुआ है।

अगले दो दिन इस मामले में निर्णायक साबित होंगे।

यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या सरकार और किसान नेता किसी सहमति पर पहुंच पाते हैं या फिर उज्जैन एक बार फिर किसान आंदोलन का गवाह बनेगा।

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