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क्या है संचार साथी ऐप? जिस पर छिड़ा विवाद, साइबर सुरक्षा के लिए जरूरी या प्राइवेसी पर हमला?

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Nisha Rai
Nisha Rai
निशा राय, पिछले 13 सालों से मीडिया के क्षेत्र में सक्रिय हैं। इन्होंने दैनिक भास्कर डिजिटल (M.P.), लाइव हिंदुस्तान डिजिटल (दिल्ली), गृहशोभा-सरिता-मनोहर कहानियां डिजिटल (दिल्ली), बंसल न्यूज (M.P.) जैसे संस्थानों में काम किया है। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय (भोपाल) से पढ़ाई कर चुकीं निशा की एंटरटेनमेंट और लाइफस्टाइल बीट पर अच्छी पकड़ है। इन्होंने सोशल मीडिया (ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम) पर भी काफी काम किया है। इनके पास ब्रांड प्रमोशन और टीम मैनेजमेंट का काफी अच्छा अनुभव है।

What is Sanchar Saathi App: डिजिटल युग में स्मार्टफोन हमारे पूरे डिजिटल लाइफ की चाबी बन चुका है।

यह हमारा बैंक, पहचान पत्र, फोटो एल्बम, और संचार का केंद्र है।

लेकिन जिस डिवाइस पर हम इतना भरोसा करते हैं, वही साइबर ठगी, फोन चोरी और फर्जीवाड़े का निशाना भी बन सकता है।

इन्हीं खतरों से निपटने के लिए केंद्र सरकार के दूरसंचार विभाग (DoT) ने ‘संचार साथी’ (Sanchar Saathi) नामक एक ऐप लॉन्च किया था।

लेकिन इस ऐप को भारत में बिकने वाले हर नए स्मार्टफोन में पहले से इंस्टॉल (प्री-लोडेड) करने के आदेश ने एक बड़ा राजनीतिक विवाद खड़ा कर दिया है।

जहां विपक्ष इसे नागरिकों की निजता पर हमला बता रहा है, तो सरकार इसे सुरक्षा की जरूरी ढाल कहती है।

आइए, इस पूरे मामले को और दोनों पक्षों के तर्कों को विस्तार से समझते हैं।

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विवाद की जड़: क्या है प्री-इंस्टॉलेशन का आदेश?

दूरसंचार विभाग ने 28 नवंबर को एक आदेश जारी कर सभी स्मार्टफोन निर्माता कंपनियों को निर्देश दिया कि भारत में बेचे जाने वाले हर नए स्मार्टफोन में ‘संचार साथी’ ऐप पहले से इंस्टॉल किया जाए।

कंपनियों को इस नियम को लागू करने के लिए 90 दिन (मार्च 2025 तक) का समय दिया गया।

साथ ही, पहले से बिक चुके फोन में भी सॉफ्टवेयर अपडेट के जरिए इस ऐप को पहुंचाने को कहा गया।

सरकार का तर्क है कि इससे ऐप की पहुंच हर उपयोगकर्ता तक आसानी से होगी और साइबर सुरक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ेगी।

हालांकि, इस आदेश ने ‘जबरदस्ती’ और ‘निगरानी’ के आरोपों को जन्म दे दिया।

विपक्ष की आपत्ति: “यह जासूसी ऐप है, प्राइवेसी पर हमला”

इस आदेश के बाद विपक्षी दलों, खासकर कांग्रेस, ने जोरदार विरोध शुरू कर दिया।

उनका कहना है कि यह कदम नागरिकों के ‘निजता के अधिकार’ का हनन है।

  • प्रियंका गांधी वाड्रा: कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी ने सबसे तीखा हमला बोलते हुए इसे एक “जासूसी ऐप” करार दिया। उन्होंने कहा, “सरकार हर नागरिक की निगरानी करना चाहती है। लोगों को प्राइवेट मैसेज भेजने का अधिकार है। यह कदम हास्यास्पद और निंदनीय है।” उन्होंने धोखाधड़ी रोकने के मजबूत सिस्टम के साथ-साथ साइबर सुरक्षा पर चर्चा की जरूरत भी जताई।
  • शशि थरूर: कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने कहा कि ऐप उपयोगी हो सकता है, लेकिन इसे “स्वैच्छिक” होना चाहिए, न कि जबरन थोपा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में किसी भी चीज को जबरन लागू करना चिंता का विषय है।
  • केसी वेणुगोपाल: कांग्रेस नेता वेणुगोपाल ने इसे “आम लोगों की प्राइवेसी पर सीधा हमला” बताया और पेगासस जैसे मामलों का हवाला दिया।
  • रेणुका चौधरी एवं अन्य: रेणुका चौधरी ने इसे संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता) के खिलाफ बताया। सीपीआई-एम के जॉन ब्रिटास ने सुप्रीम कोर्ट के पुट्टास्वामी फैसले (जिसने निजता को मौलिक अधिकार माना) का उल्लेख किया।

सरकार का पक्ष: “सुरक्षा के लिए जरूरी, हटाया जा सकता है”

विरोध के बढ़ने पर केंद्र सरकार ने सफाई दी है।

केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया:

संचार मंत्री सिंधिया ने स्पष्ट किया कि ऐप को प्री-इंस्टॉल करना कंपलसरी (अनिवार्य) नहीं है। उन्होंने कहा कि उपयोगकर्ता चाहें तो इस ऐप को डिलीट कर सकते हैं।

सरकार का उद्देश्य सिर्फ इसे आसानी से उपलब्ध कराना है ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग इसके फायदे ले सकें।

सुरक्षा का दावा:

सरकार लगातार इस बात पर जोर दे रही है कि ‘संचार साथी’ एक साइबर सुरक्षा और नागरिक-केंद्रित ऐप है।

इसका मकसद आम आदमी को फोन चोरी, फर्जी सिम, फिशिंग और ऑनलाइन ठगी से बचाना है।

क्या है ‘संचार साथी’ ऐप, कैसे करता है काम?

आइए जानते हैं आखिर यह ऐप करता क्या है।

इसे 2023 में लॉन्च किया गया था और यह एक वेब पोर्टल और मोबाइल ऐप दोनों के रूप में काम करता है।

1. खोया या चोरी हुआ फोन ब्लॉक/ट्रेस करना (CEIR सिस्टम से जुड़ाव):

यह ऐप का सबसे शक्तिशाली फीचर है।

इसे DoT के ‘सेंट्रल इक्विपमेंट आइडेंटिटी रजिस्टर’ (CEIR) डेटाबेस से जोड़ा गया है।

अगर आपका फोन खो जाता है या चोरी हो जाता है, तो आप इस ऐप के जरिए तुरंत उसके IMEI नंबर को ब्लैकलिस्ट करा सकते हैं।

एक बार ब्लॉक होने के बाद वह फोन भारत के किसी भी नेटवर्क पर काम नहीं करेगा, भले ही उसकी सिम बदल दी जाए।

इससे आपके बैंकिंग ऐप, सोशल मीडिया और निजी डेटा की सुरक्षा होती है।

2. ‘चक्षु’ (Chakshu) फीचर – फ्रॉड की रिपोर्टिंग:

यह फीचर फिशिंग लिंक, फर्जी कॉल (जैसे खुद को बैंक अधिकारी या कूरियर कंपनी बताना), स्पैम एसएमएस, व्हाट्सऐप/टेलीग्राम पर आए संदिग्ध मैसेज और मैलवेयर लिंक की रिपोर्ट करने के लिए है।

यह रिपोर्ट सीधे DoT के पास जाती है, जो उस नंबर या लिंक पर कार्रवाई कर सकता है।

3. अपने नाम पर चल रहे मोबाइल कनेक्शन जांचना:

कई बार ठग आपके दस्तावेजों की नकल कर फर्जी सिम निकाल लेते हैं।

इस ऐप के ‘ताना’ (TAFCOP) फीचर से आप देख सकते हैं कि आपके नाम और पहचान पर कुल कितने मोबाइल नंबर चल रहे हैं।

अगर कोई अज्ञात या फर्जी नंबर दिखे, तो उसे ब्लॉक कराने का अनुरोध किया जा सकता है।

सरकार के मुताबिक, इसी सुविधा से अब तक 3 करोड़ से ज्यादा फर्जी कनेक्शन बंद किए जा चुके हैं।

4. मोबाइल फोन की प्रामाणिकता जांच:

कोई सेकंड-हैंड फोन खरीदने जा रहे हैं?

ऐप में उसका IMEI नंबर डालकर चेक कर सकते हैं कि कहीं वह फोन चोरी का तो नहीं है या ब्लैकलिस्टेड तो नहीं है।

5. वेरिफाइड कॉन्टैक्ट्स:

ऐप में बैंकों, वित्तीय संस्थानों और सरकारी विभागों के वेरिफाइड कॉन्टैक्ट नंबर भी उपलब्ध हैं, ताकि आप असली और फर्जी कॉल में अंतर कर सकें।

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निजता का सवाल: कितना वाजिब, कितना नहीं?

विपक्ष के आरोपों के बीच सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या यह ऐप वाकई निजता का उल्लंघन करता है?

सरकार का दावा:

सरकार का कहना है कि ऐप डेटा सुरक्षा और गोपनीयता का पूरा ध्यान रखता है।

यह ऐप उपयोगकर्ता की मर्जी से ही काम करता है।

इसे एक्टिवेट करने के लिए उपयोगकर्ता को अपना मोबाइल नंबर और OTP दर्ज करना पड़ता है।

ऐप आपके कॉल रिकॉर्ड, मैसेज या किसी अन्य निजी डेटा तक नहीं पहुंचता।

इसका काम सिर्फ शिकायत दर्ज कराना और CEIR जैसे सार्वजनिक डेटाबेस से जानकारी मिलाना है।

परेशानी की वजह:

विपक्ष और डेटा गोपनीयता के पक्षधरों का मानना है कि किसी भी सरकारी ऐप को मजबूरन इंस्टॉल करना एक खतरनाक प्रीसेडेंट है।

भविष्य में इसी रास्ते से अन्य ऐप्स को भी थोपा जा सकता है।

उन्हें डर है कि अगर ऐप में कोई सुरक्षा चूक हुई या दुरुपयोग हुआ, तो बड़े पैमाने पर नागरिकों का डेटा लीक हो सकता है।

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