Dattatreya Jayanti 2025: भगवान दत्तात्रेय हिंदू धर्म के एक महत्वपूर्ण देवता हैं, जिन्हें ब्रह्मा, विष्णु और महेश (शिव) त्रिदेव का संयुक्त अवतार माना जाता है।
उनकी जयंती मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है।
इस साल 2025 में यह पर्व 04 दिसंबर, बुधवार को है।
मान्यता है कि कलयुग में भगवान दत्तात्रेय की पूजा और स्मरण विशेष फलदायी है तथा यह पितृदोष से मुक्ति दिलाती है।

दत्तात्रेय की अनोखी जन्म कथा: त्रिदेवों का एक शरीर में अवतरण
भगवान दत्तात्रेय के जन्म की कथा अत्यंत रोचक और प्रेरणादायक है।
प्राचीन काल में महर्षि अत्रि और उनकी पत्नी माता अनुसूया थीं।
माता अनुसूया अपने पतिव्रत धर्म के लिए प्रसिद्ध थीं, जिससे स्वर्ग की तीनों देवियों लक्ष्मी, सरस्वती और पार्वती के मन में ईर्ष्या उत्पन्न हुई।
तीनों देवियों ने अपने पतियों ब्रह्मा, विष्णु और महेश से अनुसूया के पतिव्रत धर्म की परीक्षा लेने का अनुरोध किया।
तीनों देवता ब्राह्मण के वेश में अनुसूया के आश्रम पहुंचे और उनसे भिक्षा मांगी, लेकिन एक शर्त रखी कि भिक्षा वे नग्न अवस्था में दें।
तपस्विनी अनुसूया ने अपने पतिव्रत के बल से तीनों देवताओं को नवजात शिशु बना दिया और फिर स्तनपान कराया।

जब देवताओं के लौटने में देर हुई, तो देवियां चिंतित होकर आश्रम पहुंचीं और सब कुछ देखा।
उन्होंने अनुसूया से क्षमा मांगी और अपने पतियों को वापस मांगा।
अनुसूया ने कहा कि जिन्हें मैंने स्तनपान कराया है, वे अब मेरे पुत्र हैं। अतः उन्हें मेरे पुत्र रूप में जन्म लेना होगा।
इस प्रकार, तीनों देवताओं ने महर्षि अत्रि और अनुसूया के यहां पुत्र रूप में जन्म लिया: विष्णु ने दत्तात्रेय, शिव ने दुर्वासा और ब्रह्मा ने चंद्रदेव के रूप में अवतार लिया।
इसीलिए दत्तात्रेय को त्रिदेव का अवतार कहा जाता है उनके तीन सिर तीनों देवताओं का प्रतीक हैं।

24 गुरुओं से सीखा प्रकृति और जीवन का सरल सबक
बताया जाता है कि इनके पूरे 24 गुरु थे।
इनके गुरुओं में पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, समुद्र, चंद्रमा, आकाश, सूर्य सहित आठ प्राकृतिक तत्व हैं।
इसके अलावा उन्होंने कई जीव जंतुओं को भी अपने गुरु के रूप में स्वीकार किया था।
जैसे पतंगा, मछली, कौआ, हिरण, सांप, हाथी, मकड़ी, सहित इनके 12 गुरु थे।
इसके अलावा इन्होंने बालक, लोहार, पिंगला नामक वेश्या और कन्या को भी अपने गुरु के रूप में स्वीकार किया था।
उनके गुरुओं की प्रमुख सीख इस तरह हैं:
- पृथ्वी – सहनशीलता सीखी।
- वायु – निर्लिप्त रहना सीखा।
- आकाश – विशालता और शून्यता का ज्ञान।
- जल – शुद्धता और स्वच्छता का गुण।
- अग्नि – सबको समान रूप से प्रभावित करने की क्षमता।
- चंद्रमा – परिवर्तनशील होते हुए भी अटल रहना।
- सूर्य – अपने तेज से अंधकार मिटाना।
- कबूतर – मोह में फंसने से होने वाली हानि का ज्ञान।
- मधुमक्खी – परिश्रम से संग्रह करना।
- हाथी – कामवासना में फंसने का खतरा।
- मछली – लालच में फंसने की शिक्षा।
- पिंगला वेश्या – निराशा के बाद आया आत्मबल।
- बालक – सरलता और निश्चिंतता।
इनसे उन्होंने यह शिक्षा ली कि ज्ञान कहीं से भी मिल सकता है, बस हमारी दृष्टि सीखने वाली होनी चाहिए।

दत्तात्रेय जयंती 2025: पूजन विधि और शुभ मुहूर्त
इस वर्ष मार्गशीर्ष पूर्णिमा 04 दिसंबर, बुधवार की सुबह 08:37 बजे से शुरू होकर 05 दिसंबर, गुरुवार की सुबह 04:43 बजे तक रहेगी।
अतः जयंती 04 दिसंबर को मनाई जाएगी।
पूजन विधि:
- सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें।
- स्वच्छ वस्त्र पहनकर घर के मंदिर या पूजा स्थल पर भगवान दत्तात्रेय की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
- उन पर गंगाजल अर्पित करें।
- फिर चंदन, पुष्प, धूप, दीप, फल और मिष्ठान्न अर्पित करें।
- इस मंत्र का जप विशेष रूप से करें:
“ॐ द्रां दत्तात्रेयाय नमः” या “ॐ श्री गुरुदेव दत्त” - इस दिन व्रत रखकर भजन-कीर्तन करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
दत्तात्रेय पूजा के लाभ और महत्व
- पितृदोष से मुक्ति: ऐसी मान्यता है कि दत्तात्रेय जयंती पर उनका पूजन करने और मंत्र जप से पितृदोष शांत होता है।
- सद्गुरु की प्राप्ति: भगवान दत्तात्रेय को सद्गुरु का प्रतीक माना जाता है। उनकी कृपा से आध्यात्मिक मार्गदर्शन मिलता है।
- मनोकामना पूर्ति: श्रद्धापूर्वक पूजा करने से भक्तों की इच्छाएं पूरी होती हैं।
- ज्ञान की प्राप्ति: विद्या और ज्ञान के लिए भी दत्तात्रेय जयंती का पूजन फलदायी है।
- संन्यासियों के आराध्य: विशेष रूप से जूना अखाड़ा सहित अनेक संन्यासी परंपराओं में भगवान दत्तात्रेय प्रमुख आराध्य देव हैं।

भगवान दत्तात्रेय का व्यक्तित्व बहुआयामी है। वे कलयुग के ऐसे सद्गुरु हैं जो भक्त की स्मरण मात्र से प्रसन्न होकर कृपा बरसाते हैं।
उनकी जयंती हमें यह संदेश देती है कि ज्ञान सर्वत्र है और गुरु कोई भी हो सकता है, आवश्यकता है तो बस सीखने की दृष्टि की।


