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“SC/ST के बच्चों को सिविल जज नहीं बनने दे रहा हाईकोर्ट”, IAS संतोष वर्मा ने फिर दिया विवादित बयान

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Nisha Rai
Nisha Rai
निशा राय, पिछले 13 सालों से मीडिया के क्षेत्र में सक्रिय हैं। इन्होंने दैनिक भास्कर डिजिटल (M.P.), लाइव हिंदुस्तान डिजिटल (दिल्ली), गृहशोभा-सरिता-मनोहर कहानियां डिजिटल (दिल्ली), बंसल न्यूज (M.P.) जैसे संस्थानों में काम किया है। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय (भोपाल) से पढ़ाई कर चुकीं निशा की एंटरटेनमेंट और लाइफस्टाइल बीट पर अच्छी पकड़ है। इन्होंने सोशल मीडिया (ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम) पर भी काफी काम किया है। इनके पास ब्रांड प्रमोशन और टीम मैनेजमेंट का काफी अच्छा अनुभव है।

IAS Santosh Verma Controversy: मध्य प्रदेश के वरिष्ठ आईएएस अधिकारी और ‘अनुसूचित जाति-जनजाति अधिकारी एवं कर्मचारी संघ’ (अजाक्स) के अध्यक्ष संतोष वर्मा ने एक बार फिर विवादित बयान दिया है।

ब्राह्मण समुदाय की बेटियों के खिलाफ पहले दिए गए विवादास्पद बयान के बाद अब उन्होंने राज्य के हाईकोर्ट पर गंभीर आरोप लगाए हैं।

सोशल मीडिया पर वायरल एक नए वीडियो में वर्मा ने दावा किया है कि हाईकोर्ट ही अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) वर्ग के बच्चों को सिविल जज बनने से रोक रहा है।

इस बयान ने राज्य की राजनीति और प्रशासनिक हलकों में तूफान ला दिया है।

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क्या कहा संतोष वर्मा ने?

वर्मा ने अजाक्स के एक सम्मेलन में भाषण देते हुए कहा, “एसटी वर्ग के बच्चों को सिविल जज कोई और नहीं, बल्कि हाईकोर्ट नहीं बनने दे रहा है। यही हाईकोर्ट है, जिससे हम बाबा साहब (डॉ. भीमराव अंबेडकर) के संविधान के हिसाब से चलने की गारंटी मांगते हैं।”

उन्होंने अपने तर्क को आगे बढ़ाते हुए कहा कि एससी-एसटी समुदाय के युवा आईएएस, आईपीएस, डिप्टी कलेक्टर और डीएसपी जैसे उच्च पद हासिल कर लेते हैं, लेकिन सिविल जज नहीं बन पाते।

उन्होंने सवाल उठाया, “हमारा बच्चा क्लैट (कॉमन लॉ एडमिशन टेस्ट) क्लियर करके एलएलबी-एलएलएम करता है, दूसरी बड़ी सेवाओं में चयनित होता है, उसके 75% से अधिक अंक आते हैं, फिर सिविल जज की परीक्षा में वह 50% अंक भी क्यों नहीं ला पाता?”

वर्मा ने गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि जानबूझकर ऐसा किया जा रहा है।

“आपने कट-ऑफ 50% रखा है और तय कर लिया है कि उसे 49.95 ही देना है, 50 नहीं देना है। इंटरव्यू में 20 की जगह 19.5 अंक देना है। तो फिर कौन सिविल जज बनाएगा हमारे बच्चों को?”

‘न्यायपालिका में बीज समाप्त किया जा रहा’

संतोष वर्मा ने अपने भाषण में कहा, “जिस तरह से न्यायपालिका से हमारे बच्चों का ‘बीज’ समाप्त किया जा रहा है… जब हमारा बेटा सिविल जज बनेगा, तभी तो हाईकोर्ट का जज बनेगा। अगर हमारा बीज ही खत्म कर दिया गया, तो फिर न्याय की उम्मीद किससे करेंगे?”

उन्होंने इसे समुदाय के लिए एक निर्णायक लड़ाई बताते हुए कहा कि यह आखिरी पीढ़ी है और इससे लड़ना उनका दायित्व है।

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पहले से चल रहा है विवाद

यह संतोष वर्मा का पहला विवाद नहीं है। इससे पहले, नवंबर में अजाक्स के अध्यक्ष चुने जाने के बाद, उन्होंने कहा था कि “जब तक कोई ब्राह्मण मेरे बेटे को अपनी बेटी दान नहीं कर देता या उससे संबंध नहीं बनाता, तब तक आरक्षण जारी रहना चाहिए।”

इस टिप्पणी ने ब्राह्मण समाज और सवर्ण संगठनों में भारी रोष पैदा किया था।

उसके बाद एक और वीडियो में उन्होंने कहा था, “कितने संतोष वर्मा को तुम मारोगे… अब हर घर से एक संतोष वर्मा निकलेगा।”

सवर्ण समाज का विरोध और घेराव की तैयारी

संतोष वर्मा के इन लगातार बयानों से सवर्ण समाज के गुस्से को और हवा मिली है।

विरोध कर रहे संगठनों का आरोप है कि एक आईएएस अधिकारी होने के नाते वर्मा संवैधानिक मर्यादा का उल्लंघन कर रहे हैं और सरकार उनके खिलाफ कार्रवाई से बच रही है।

इसी विरोध के चलते, सवर्ण समाज ने 14 दिसंबर को भोपाल स्थित मुख्यमंत्री निवास (सीएम हाउस) का घेराव करने की योजना बनाई है।

इसे ‘ऑपरेशन बगावत’ या ‘ऑपरेशन अस्मिता’ नाम दिया गया है।

सोशल मीडिया पर जारी अपील में कहा गया है कि “धर्म, संस्कृति और अस्मिता पर हो रही छींटाकशी अब सहन नहीं करेंगे।”

उनकी मांगों में संतोष वर्मा के खिलाफ कठोर कार्रवाई, एससी-एसटी एक्ट जैसे “काले कानून” को समाप्त करना और धर्मांतरण पर कार्रवाई शामिल हैं।

इस रणनीति पर चर्चा के लिए 11 दिसंबर को भोपाल में एक बैठक भी हुई।

न्यायपालिका में प्रतिनिधित्व का गंभीर सवाल

संतोष वर्मा के बयान ने न्यायपालिका, विशेषकर निचली अदालतों में एससी-एसटी समुदाय के प्रतिनिधित्व के एक गंभीर और पुराने सवाल को फिर से उछाल दिया है।

आरक्षण का लाभ उच्च न्यायपालिका तक सीमित नहीं है, और न्यायिक सेवाओं की भर्ती प्रक्रिया में सामाजिक विविधता सुनिश्चित करना एक चुनौती रही है।

हालांकि, किसी भी संवैधानिक संस्था, विशेष रूप से न्यायपालिका पर सीधे आरोप लगाना गंभीर विवाद पैदा करता है।

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आईएएस संतोष वर्मा के विवादित बयानों ने मध्य प्रदेश में सामाजिक और राजनीतिक स्थिति को गर्म कर दिया है।

एक तरफ, वह एससी-एसटी समुदाय में न्यायिक व्यवस्था में उचित प्रतिनिधित्व न मिलने की भावनात्मक बहस छेड़ रहे हैं।

दूसरी तरफ, उनकी पिछली टिप्पणियों और हाईकोर्ट पर सीधे आरोपों ने सवर्ण समाज में रोष पैदा किया है, जो अब सड़कों पर उतरने की तैयारी कर रहा है।

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