Bhishma Pitamah Death Kharmas: खरमास, जिसे अधिकमास या मलमास भी कहते हैं, हिंदू धर्म में एक विशेष अवधि मानी जाती है।
इस दौरान शुभ कार्य जैसे शादी, गृहप्रवेश आदि वर्जित होते हैं।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस महीने में मृत्यु होना भी अशुभ माना जाता है?
आइए, इसके पीछे की मान्यताओं और महाभारत की प्रसिद्ध घटना को समझते हैं।

क्या है खरमास?
खरमास हिंदू पंचांग का वह महीना है जब सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण की ओर प्रवेश करते हैं।
इसे “मलमास” या “अधिकमास” भी कहा जाता है।
साल 2025 में यह 16 दिसंबर से शुरू होकर 14 जनवरी 2026 (मकर संक्रांति) तक रहेगा। इस अवधि में सभी मांगलिक कार्य रोक दिए जाते हैं।

खरमास में मृत्यु क्यों है अशुभ?
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, खरमास में मृत्यु को अशुभ मानने के पीछे कई कारण हैं:
- ब्रह्म पुराण की मान्यता:
ब्रह्म पुराण के अनुसार, खरमास में मृत्यु होने का अर्थ है कि व्यक्ति ने जीवन में पुण्य कर्म कम किए हैं। ऐसी मान्यता है कि इस अवधि में देह त्यागने वाले को मोक्ष नहीं मिलता और उसे नर्क या पुनर्जन्म का सामना करना पड़ता है। - दक्षिणायन का प्रभाव:
खरमास के दौरान सूर्य दक्षिणायन में होते हैं। हिंदू मान्यताओं के अनुसार, दक्षिणायन में मृत्यु होने पर व्यक्ति को नर्क की प्राप्ति होती है, जबकि उत्तरायण (मकर संक्रांति के बाद) में मृत्यु होने पर स्वर्ग या मोक्ष मिलता है। - छोटा पितृ पक्ष:
खरमास को “छोटा पितृ पक्ष” भी कहा जाता है। इस समय पितरों की शांति और तर्पण पर जोर दिया जाता है। ऐसे में मृत्यु को पितृ दोष से जोड़कर देखा जाता है।

भीष्म पितामह ने क्यों रोके थे प्राण?
महाभारत की प्रसिद्ध कथा के अनुसार, भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था।
कुरुक्षेत्र युद्ध के दौरान, पौष मास (खरमास) में अर्जुन के बाणों से घायल होने के बाद भी उन्होंने अपने प्राण नहीं त्यागे।
वह 58 दिनों तक बाणों की शैय्या पर लेटे रहे और सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा करते रहे।
जब माघ मास में मकर संक्रांति आई, तब उन्होंने शुक्ल पक्ष की एकादशी को अपने प्राण त्यागे।
इससे यह सिद्ध होता है कि उत्तरायण में मृत्यु को मोक्षप्रद माना जाता है।

खरमास में क्या करें और क्या न करें?
- वर्जित कार्य:
शादी, मुंडन, गृहप्रवेश, नए कार्य की शुरुआत आदि शुभ कार्य न करें। - शुभ कार्य:
इस अवधि में पूजा-पाठ, दान, तर्पण और सूर्य उपासना को विशेष महत्व दिया जाता है। पितरों की शांति के लिए श्राद्ध कर्म भी किए जा सकते हैं।
खरमास में मृत्यु को अशुभ माना जाता है, क्योंकि धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दौरान देह त्यागने वाले को मोक्ष नहीं मिलता।
भीष्म पितामह ने भी इसी कारण उत्तरायण की प्रतीक्षा की थी।
हालांकि, यह मान्यताएं धर्मग्रंथों पर आधारित हैं और इनका पालन व्यक्ति की आस्था से जुड़ा है।


