Funeral of Living Daughter: मध्य प्रदेश के विदिशा से एक ऐसी घटना सामने आई है जो सामाजिक मान्यताओं, पारिवारिक अहंकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के बीच के टकराव की कड़वी कहानी कहती है।
यहां एक परिवार ने अपनी ही जिंदा बेटी का अंतिम संस्कार कर उसे ‘सामाजिक रूप से मृत’ घोषित कर दिया।
इसकी इकलौती वजह थी बेटी का अपनी पसंद से और दूसरी जाति के युवक से शादी करना।
लव मैरिज का फैसला, परिवार को झटका
घटना विदिशा शहर के चूना वाली गली में रहने वाले कुशवाहा परिवार से जुड़ी है।
परिवार की सबसे छोटी बेटी, 23 वर्षीया सविता जो स्नातक की पढ़ाई पूरी कर चुकी थी, ने कुछ दिन पहले अचानक घर छोड़ दिया।
परिवार ने उसे ढूंढ़ने की कोशिश की और पुलिस में गुमशुदगी दर्ज कराई।

पुलिस ने सविता को ढूंढ़ निकाला और परिवार के सामने पेश किया। लेकिन, यहां सब कुछ बदल गया।
सविता ने परिवार के सामने खुलकर कहा कि उसने अपने भाई के एक परिचित और पड़ोस में रहने वाले युवक संजू मालवीय से प्रेम विवाह कर लिया है और अब वह उसी के साथ रहना चाहती है।
चूंकि संजू अलग जाति (मालवीय) से ताल्लुक रखते थे, इसलिए यह बात कुशवाहा परिवार के लिए सहन करने के लायक नहीं थी।
परिवार इससे सदमे में आ गया।
आटे से बनाया बेटी का शव
सविता के फैसले से आहत परिवार ने एक चौंकाने वाला कदम उठाने का फैसला किया।
उन्होंने बेटी को अपने लिए मरा हुआ मान लिया। शुक्रवार को उन्होंने रिश्तेदारों और पड़ोसियों को इकट्ठा किया।
आटे से सविता का एक पुतला बनाया गया, उसे फूलमालाओं से सजाया गया और एक छोटी चिता पर लिटा दिया गया।

इसके बाद, पारंपरिक शव यात्रा की तरह ही गाजे-बाजे और ढोल-नगाड़ों के साथ यह प्रतीकात्मक अर्थी शहर के चौक-चौराहों से होती हुई श्मशान घाट तक पहुंची।
वहां जाकर पुतले का दहन कर दिया गया। यह किसी वास्तविक अंतिम संस्कार से कम नहीं था।
परिवार बोला- ‘अरमानों की अर्थी’
परिवार के सदस्यों ने शोक मनाया और औपचारिक रूप से सविता से सभी रिश्ते तोड़ने की घोषणा कर दी।
सविता के भाई राजेश कुशवाहा ने इस घटना को ‘अपने अरमानों की अर्थी’ बताया।
उन्होंने कहा, “हमने उसे बहुत लाड़-प्यार से पाला, पढ़ाया-लिखाया, बड़े सपने देखे। लेकिन उसने सबको ठुकराकर अपनी मर्जी की। इसलिए आज हमने अपने उन्हीं अरमानों की अर्थी निकाली है। अब से उसका हमारे परिवार से कोई लेना-देना नहीं है।”

सामाजिक प्रतिक्रिया
यह घटना सामाजिक मीडिया और स्थानीय स्तर पर चर्चा का विषय बनी हुई है।
कई लोग इसे भावनात्मक रूप से प्रताड़ित करने वाला और महिला के व्यक्तिगत अधिकारों का हनन बता रहे हैं।
वहीं, कुछ लोग परिवार के ‘दर्द’ और ‘सम्मान’ को समझने की बात भी कर रहे हैं।
कानूनी दृष्टिकोण
कानूनी नजरिए से देखें तो भारतीय कानून व्यस्कों (18 वर्ष से अधिक उम्र) को अपना जीवनसाथी चुनने का पूरा अधिकार देता है।
अंतरजातीय विवाह को विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के तहत कानूनी मान्यता प्राप्त है।
परिवार द्वारा की गई यह कार्रवाई भले ही प्रतीकात्मक हो, लेकिन यह महिला पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने और उसे सामाजिक बहिष्कार की धमकी देने जैसी प्रतीत होती है।

घटना ने पैदा किए कई सवाल
विदिशा की यह घटना हमारे समाज के सामने एक गंभीर सवाल खड़ा करती है।
क्या जाति और सामाजिक मान्यताएं रिश्तों की मर्यादा और संवेदनाओं से ऊपर हैं?
क्या माता-पिता की इच्छा का आदर करवाने के लिए बच्चे के निजी फैसले को इस हद तक कुचलना उचित है?
सविता ने अपने प्यार और अपने फैसले के लिए एक बड़ी कीमत चुकाई है – अपना पूरा परिवार।
वहीं, परिवार ने भी एक बेटी को ‘खोने’ की कीमत चुकाई है।

यह टकराव न सिर्फ दो पीढ़ियों के बीच बल्कि पुरानी सामाजिक संरचना और नए व्यक्तिगत स्वतंत्रता के बीच का संघर्ष दिखाता है।
यह घटना समाज को यह सोचने पर मजबूर करती है कि क्या रिश्तों की डोर इतनी कमजोर होती है कि एक फैसले से टूट जाए, या फिर इसे प्यार और समझदारी से और मजबूत बनाया जा सकता है।


