International Tiger Day 2024 : हम हैं टाइगर स्टेट … जी हां एमपी ने फिर से टाइगर स्टेट का तमगा हासिल किया है। इंटरनेशनल टाइगर डे पर मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने एक बार फिर टाइगर स्टेट बनने की शुभकामनाएं देते हुए कहा कि यह हमारा सौभाग्य है कि मध्य प्रदेश सर्वाधिक बाघ वाला प्रदेश है।
मध्य प्रदेश को बाघों का घर कहा जाए तो गलत नहीं होगा। यहां बाघों की आबादी 526 से बढ़कर 785 पहुंच गई है, जो देश में सबसे ज्यादा है। प्रदेश में पिछले चार-पांच सालों में 259 बाघ बढ़े हैं।
हालांकि मध्यप्रदेश यूं ही टाइगर स्टेट नहीं बन गया। इसके पीछे स्पष्ट नीति, ठोस कदम, सख्त नियम के साथ जन भागीदारी से भी बाघों का कुनबा बढ़ा है। आइए देखते हैं मध्यप्रदेश के टाइगर स्टेट बनने की वजह
ऐसे टाइगर स्टेट बना मध्यप्रदेश
एमपी में बाघों को बचाने के लिए बहुत मेहनत की गई है। बाघों को बचाने और उनके साथ होने वाले संघर्षों को कम करने के लिए हर जिले में रेस्क्यू टीम बनाई गई है।
शिकारियों को पकड़ने के लिए 16 टीमें कुत्तों के साथ काम करती हैं। चीता, गौर और बारहसिंगा जैसे जानवरों को उन जगहों पर फिर से बसाया गया है, जहां से वे गायब हो गए थे।
जंगल के पास से गांव हटाए
सतपुड़ा टाइगर रिज़र्व में 42 गांवों को दूसरी जगह बसाया गया है। यहां बिजली के लिए सौर ऊर्जा का इस्तेमाल किया जाता है।
वहीं कान्हा, पेंच और कूनो पालपुर के आस-पास के सभी गांवों को हटा दिया गया है, जिससे जंगली जानवरों को रहने के लिए ज्यादा जगह मिली है।
घास के मैदानों को बेहतर बनाया जा रहा है ताकि हिरण जैसे जानवरों को साल भर खाना मिलता रहे। इसके साथ ही चीतल, जो बाघ का मुख्य भोजन है, को कम संख्या वाले इलाकों में भेजा जा रहा है ताकि उनकी संख्या बढ़े और बाघों को आसानी से शिकार मिल सके।
सतपुड़ा यूनेस्को की सूची के लिए भेजा
सतपुड़ा टाइगर रिज़र्व को यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल की सूची में शामिल करने के लिए भेजा गया है। पेंच टाइगर रिजर्व को पूरे देश में सबसे अच्छा माना गया है।
जबकि बांधवगढ़, कान्हा, संजय और सतपुड़ा टाइगर रिजर्व को भी बेहतरीन प्रबंधन के लिए जाना जाता है।
अपराधियों को दिलाई सख्त सजा
पिछले 8 सालों में वन्यजीवों का शिकार करने वाले 550 से ज्यादा लोगों को पकड़ा गया है, जिनमें से तीन विदेशी थे। वहीं बाघों और इंसानों या दूसरे जानवरों के बीच संघर्ष होने पर पीड़ितों को तुरंत आर्थिक मदद दी जाती है।
लोगों पर होता है पर्यटकों से हुई कमाई का खर्च
बांधवगढ़ टाइगर रिज़र्व में पर्यटन से होने वाली कमाई का इस्तेमाल स्थानीय लोगों की मदद के लिए किया जाता है। यहां पानी के स्रोत बनाए गए हैं और घास के मैदानों को बेहतर बनाया गया है। ताकि जानवरों को रहने के लिए अच्छी जगह मिल सके।
कान्हा टाइगर रिज़र्व में कई अनोखे काम किए गए हैं। यहां कान्हा पेंच वन्यजीव विचरण कॉरिडोर है, जो भारत का पहला ऐसा कॉरिडोर है, जिसका प्रबंधन स्थानीय लोग, सरकारी विभाग, शोध संस्थान और गैर-सरकारी संगठन मिलकर करते हैं।
14 सालों में तीन गुना हुए बाघ
इन कोशिशों की वजह से 2010 में बाघों की संख्या 257 थी जो बढ़कर अब 785 हो गई है। 2006 से 2010 के बीच बाघों की संख्या में 21% की बढ़ोतरी हुई थी, जबकि 2010 से 2014 के बीच यह बढ़ोतरी 30% थी।
2014 से 2018 के बीच बाघों की संख्या में 33% की बढ़ोतरी दर्ज की गई है, जो अब तक की सबसे ज्यादा है।
मध्यप्रदेश ने बाघों की रक्षा और उनके संरक्षण के लिए जो काम किया है वह वाकई काबिले तारीफ़ है। इससे न सिर्फ बाघों की संख्या बढ़ी है, बल्कि दूसरे वन्यजीवों को भी फायदा हुआ है।
मध्यप्रदेश की इस कामयाबी से दूसरे राज्यों को भी सीख लेनी चाहिए।
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