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राम नवमीः अंतर्मन को प्रकाशित करने का पर्व, दुल्हन की तरह सजी अयोध्या

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राम, जो भारत के रोम-रोम में बसे हैं। दुनिया भर के करोड़ों सनातनधर्मियों के आराध्य हैं राम। त्रेता युग में राम नवमी के पावन दिन भारत की इस धरा पर प्रभु श्रीराम ने जन्म लिया था और यही कारण है कि राम नवमी का दिन सबसे विशेष दिन माना गया है जिनकी किलकारियों से कभी अयोध्या गूंजा करती थी।

आज प्रभुराम की जन्मस्थली अयोध्या उनके दर्शन से धन्य हो रही है क्योंकि अयोध्या में भगवान राम विराजमान हो चुके हैं। रामनवमी के पुण्य पर्व के लिए पूरी अयोध्या दुल्हन की तरह सजी हुई है और देश के कोने-कोने से राम भक्त अपने प्रभु के दर्शनों के लिए यहां जमा हो रहे हैं।

बहरहाल जिक्र राम नवमी के पावन पर्व का है तो हम सबके लिए ये जानना बेहद जरूरी है कि राम नवमी क्यों है इतनी महत्वपूर्ण और क्यों है हिन्दू धर्मावलंबियों के लिए ये खास दिन।

जैसा कि हम सब जानते हैं कि भगवान श्रीराम के जन्म दिवस के रूप में हम सब राम नवमी का पर्व मनाते हैं। इस दो अक्षर के नाम राम में सारे संसार का सार छिपा है। राम का अर्थ है स्वयं का प्रकाश और जो भी मनुष्य अपने भीतर के प्रकाश को जान गया वो राम को जान गया क्योंकि राम ही हमारी आत्मा के प्रकाश हैं।

कहते हैं जो राम नाम का जाप करता है प्रभु हमेशा उनके साथ होते हैं और उनके जीवन से विघ्न,बाधाओं और क्लेश का नाश होता है। इसलिए राम नवमी को मनाने का उद्देश्य है कि हमारे भीतर ज्ञान के प्रकाश का उदय हो।

हम सदमार्ग पर चलें। राम नवमी का त्यौहार हर साल चैत्र माह की नवमी के दिन मनाया जाता है। इसी दिन राजा दशरथ और रानी कौशल्या के घर पुत्र के रूप में प्रभु श्रीराम का जन्म हुआ था।

शास्त्रों के अनुसार भगवान विष्णु ने त्रेतायुग में आसुरी शक्तियों और रावण के अत्याचारों को समाप्त करने के लिए राम के रूप में अवतार लिया था। भगवान राम ने भारत में धर्म और सत्य की स्थापना ही नहीं की बल्कि ऐसे उच्च आदर्शों की नींव रखी जिसका अनुसरण कर साधु, संत, महात्मा और ऋषि भवसागर को पार कर सके।

यही वजह है कि श्रीराम को मर्यादा पुरूषोत्तम कहा जाता है। प्रभु श्रीराम का जैसा नाम वैसी उनकी महिमा। उनका जीवन दर्शन ही हमारी आस्था है और उनकी भक्ति ही जीवन को धन्य बनाने का जरिया।

सदियों बाद प्रभु श्रीराम अयोध्या में विराजे हैं तो ये राम नवमी पूरे देश के लिए उत्सव, उल्लास और संकल्प का है। संकल्प का इसलिए कि हम भी अपने आचार, विचार और आत्मा में प्रभु श्रीराम को समाहित करें। उनके जीवन दर्शन और आदर्शों का अनुसरण कर अपने जीवन को धन्य कर सकें।

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