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अमरनाथ यात्रा: कैसे बनता है बर्फ का शिवलिंग, किसने किए थे सबसे पहले दर्शन, जानें सबकुछ

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Nisha Rai
Nisha Rai
निशा राय, पिछले 13 सालों से मीडिया के क्षेत्र में सक्रिय हैं। इन्होंने दैनिक भास्कर डिजिटल (M.P.), लाइव हिंदुस्तान डिजिटल (दिल्ली), गृहशोभा-सरिता-मनोहर कहानियां डिजिटल (दिल्ली), बंसल न्यूज (M.P.) जैसे संस्थानों में काम किया है। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय (भोपाल) से पढ़ाई कर चुकीं निशा की एंटरटेनमेंट और लाइफस्टाइल बीट पर अच्छी पकड़ है। इन्होंने सोशल मीडिया (ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम) पर भी काफी काम किया है। इनके पास ब्रांड प्रमोशन और टीम मैनेजमेंट का काफी अच्छा अनुभव है।

Amarnath Yatra 2025: हिंदू धर्म की सबसे पवित्र तीर्थयात्राओं में से एक, अमरनाथ यात्रा की शुरुआत 3 July 2025 से हो चुकी है, जो 9 अगस्त तक चलेगी।

यह यात्रा कश्मीर की हिमालय पर्वतमाला में स्थित 3,888 मीटर की ऊंचाई पर स्थित अमरनाथ गुफा तक की जाती है, जहां प्राकृतिक रूप से बर्फ का शिवलिंग बनता है।

लाखों श्रद्धालु इस दौरान बाबा बर्फानी के दर्शन करने पहुंचते हैं।

लेकिन क्या आप जानते हैं कि अमरनाथ गुफा का इतिहास क्या है?

भगवान शिव ने यहां क्यों चुना था यह स्थान?

कैसे बनता है यह बर्फ का शिवलिंग?

आइए, जानते हैं अमरनाथ यात्रा से जुड़ी पौराणिक कथा, इतिहास और रोचक तथ्य।

अमरनाथ यात्रा का धार्मिक महत्व

अमरनाथ गुफा हिंदुओं के सबसे पवित्र तीर्थस्थलों में से एक है। इसे “अमरेश्वर” के नाम से भी जाना जाता है। यहां प्राकृतिक रूप से बनने वाले बर्फ के शिवलिंग को “बाबा बर्फानी” कहा जाता है।

मान्यताएं और पौराणिक महत्व

  • मान्यता है कि भगवान शिव ने इसी गुफा में माता पार्वती को अमरत्व का रहस्य बताया था।

  • श्रद्धालुओं का विश्वास है कि सच्चे मन से दर्शन करने वाले को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

  • पुराणों के अनुसार, अमरनाथ के दर्शन का पुण्य काशी से दस गुना, प्रयाग से सौ गुना और नैमिषारण्य से हजार गुना अधिक है।

  • यह गुफा 51 शक्तिपीठों में से एक है, जहां माता पार्वती का शक्तिपीठ स्थित है।

  • गुफा के ऊपर श्री राम कुंड भी है, जिसका धार्मिक महत्व है।

अमरनाथ गुफा की पौराणिक कथा

भगवान शिव ने यहां बताया था अमरत्व का रहस्य

पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार माता पार्वती ने भगवान शिव से पूछा कि वे अमर क्यों हैं, जबकि सभी देवता और मनुष्य जन्म-मृत्यु के चक्र में बंधे हैं। तब शिवजी ने उन्हें अमरत्व का रहस्य बताने का निर्णय लिया।

लेकिन, शिव चाहते थे कि यह रहस्य केवल माता पार्वती तक ही सीमित रहे। इसलिए, उन्होंने एक एकांत स्थान की तलाश की और अमरनाथ गुफा को चुना।

रास्ते में त्यागे गए पांच तत्व

अमरनाथ गुफा जाते समय भगवान शिव ने पांच तत्वों (पंचभूत) का त्याग किया, ताकि कोई भी उनके रहस्य को न सुन सके:

  1. पहलगाम – यहां उन्होंने नंदी (बैल) को छोड़ा।

  2. चंदनवाड़ी – यहां उन्होंने चंद्रमा को अपनी जटाओं से अलग किया।

  3. शेषनाग झील – यहां उन्होंने गले से सर्पों को उतार दिया।

  4. महागुनस पर्वत – यहां उन्होंने भगवान गणेश को छोड़ा।

  5. पंचतरणी – यहां उन्होंने पंच तत्व (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश) का त्याग किया।

इसके बाद, शिवजी ने अमरनाथ गुफा में प्रवेश किया और माता पार्वती को अमरत्व का रहस्य बताने लगे।

कबूतरों का जोड़ा बना अमर

कहा जाता है कि एक कबूतर का जोड़ा गुफा में मौजूद था, जिसने यह रहस्य सुन लिया और अमर हो गया।

मान्यता है कि आज भी श्रद्धालुओं को यह कबूतर जोड़ा दिखाई देता है।

कैसे बनता है अमरनाथ का बर्फानी शिवलिंग?

अमरनाथ गुफा में प्राकृतिक रूप से बर्फ का शिवलिंग बनता है, जिसे “बाबा बर्फानी” कहा जाता है।

रहस्यमयी तरीके से बनता है शिवलिंग

  • गुफा की छत से पानी की बूंदें टपकती हैं, जो ठंड के कारण जमकर शिवलिंग का आकार ले लेती हैं।

  • शिवलिंग के साथ ही दो छोटे बर्फ के लिंग भी बनते हैं, जिन्हें माता पार्वती और भगवान गणेश का प्रतीक माना जाता है।

  • यह शिवलिंग चंद्रमा के घटने-बढ़ने के साथ आकार बदलता है। श्रावण पूर्णिमा को यह पूर्ण आकार में होता है और अमावस्या तक धीरे-धीरे घटने लगता है।

अमरनाथ यात्रा का इतिहास

महर्षि भृगु थे पहले दर्शनार्थी

  • श्री अमरनाथ जी श्राइन बोर्ड के अनुसार, महर्षि भृगु अमरनाथ गुफा के पहले दर्शनार्थी थे।

  • जब कश्मीर घाटी जलमग्न हुई थी, तब महर्षि कश्यप ने नदियों का जल बाहर निकाला था। उसी दौरान ऋषि भृगु ने इस गुफा की खोज की।

300 साल तक बंद रही यात्रा

  • 14वीं शताब्दी में करीब 300 साल तक यह यात्रा बंद रही।

  • 18वीं शताब्दी में फिर से शुरू हुई, लेकिन 1991 और 1995 में आतंकवाद के कारण इसे रोकना पड़ा।

बूटा मलिक ने की थी पुनर्खोज

एक कथा के अनुसार, 1850 में बूटा मलिक नाम के एक चरवाहे को एक साधु ने कोयले से भरा थैला दिया। घर जाकर जब उसने थैला खोला, तो वह सोने के सिक्कों से भरा था।

जब वह साधु को धन्यवाद देने लौटा, तो साधु गायब था, लेकिन उसे अमरनाथ गुफा और बर्फ के शिवलिंग के दर्शन हुए। इसके बाद से यह स्थान तीर्थयात्रा का केंद्र बन गया।

स्वामी विवेकानंद ने भी किए थे दर्शन

126 साल पहले स्वामी विवेकानंद ने अमरनाथ गुफा के दर्शन किए थे। भगिनी निवेदिता ने लिखा है कि स्वामीजी ने कहा था – “आज भगवान शिव ने मुझे साक्षात दर्शन दिए।”

अमरनाथ यात्रा 2025: जरूरी जानकारी

  • यात्रा तिथियां: 3 July से 9 अगस्त 2025

  • मार्ग: पहलगाम और बालटाल से शुरू होती है यात्रा

  • यात्रा की अवधि: लगभग 5-6 दिन (पैदल यात्रा)

  • रजिस्ट्रेशन: श्री अमरनाथ जी श्राइन बोर्ड की आधिकारिक वेबसाइट पर करना अनिवार्य

यात्रा के नियम

  • मेडिकल फिटनेस सर्टिफिकेट जरूरी

  • अनुमति पत्र (यात्रा पंजीकरण) लेना अनिवार्य

  • ठंड से बचाव के लिए गर्म कपड़े ले जाएं

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