Amarnath Yatra History: 29 जून से हिंदू धर्म की पवित्र अमरनाथ यात्रा की शुरुआत हो चुकी है। ये यात्रा 19 अगस्त तक चलने वाली है। बाबा बर्फानी की ये गुफा कश्मीर में लगभग 3,888 मीटर की ऊंचाई पर हिमालय में स्थित है। इस दौरान देश भर के लाखों श्रद्धालु बाबा बर्फानी के प्राकृतिक शिवलिंग के दर्शन करने वाले हैं।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि बाबा बर्फानी यहां कैसे प्रगट हुए थे और उन्हें किसने ढूंढा था। और बाबा अमरनाथ से जुड़ी पौराणिक कथा क्या है। इन सारे सवालों के जवाब हम आपको बताने जा रहे हैं।
अमरनाथ यात्रा का महत्व
अमरनाथ गुफा हिंदुओं का पवित्र तीर्थस्थल है, जो हिमालय की पर्वत शृंखलाओं के बीच है।
प्राचीन काल में इस गुफा को ‘अमरेश्वर’ कहा जाता था। बर्फ से शिवलिंग बनने के चलते इसे ‘बाबा बर्फानी’ भी कहा जाता है।
मान्यता यह है कि जो भी श्रद्धालु सच्चे मन से इस पवित्र गुफा में बने शिवलिंग का दर्शन करता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।
पुराणों के अनुसार, काशी में लिंग दर्शन और पूजन से दस गुना, प्रयाग से सौ गुना और नैमिषारण्य तीर्थ से हजार गुना अधिक पुण्य बाबा अमरनाथ के दर्शन करने से मिलता है।
मान्यता यह भी है कि अमरनाथ गुफा के ऊपर पर्वत पर श्री राम कुंड है। अमरनाथ गुफा में स्थित पार्वती शक्तिपीठ 51 शक्तिपीठों में से एक हैं।
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अमरनाथ की पौराणिक कथा
पौराणिक मान्यता है कि भगवान शिव ने इसी गुफा में माता पार्वती को अमरत्व का रहस्य बताया था और वो आज भी साक्षात अमरनाथ गुफा में विराजमान रहते हैं।
जब माता पार्वती ने भगवान शिव से उनके अमरत्व का कारण जानना चाहा, तो भगवान शिव ने ऐसे स्थान की तलाश शुरू की, जहां कोई और इस अमर कथा को नहीं सुन सकता था। इसके लिए उन्होंने अमरनाथ की गुफा को चुना।
अमरनाथ गुफा जाते वक्त उन्होंने सबसे पहले रास्ते में पहलगाम में नंदी (जिस बैल की सवारी करते थे) का त्याग किया।
इसके बाद, चंदनवाड़ी में अपने बालों (जटाओं) से चंद्रमा को मुक्त किया।
शेषनाग झील के तट पर उन्होंने अपने गले से सांपों को निकाल दिया और पुत्र गणेश को महागुनस पर्वत पर छोड़ा।
पंचतरणी नामक स्थान पर भगवान शिव ने पंच तत्वों (पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश) का भी त्याग कर दिया। (अमरनाथ यात्रा के दौरान ये सभी स्थान अभी भी रास्ते में दिखाई देते हैं।)
इन सब को पीछे छोड़कर भगवान शिव ने माता पार्वती के साथ अमरनाथ गुफा में प्रवेश किया और वहां पर समाधि ले ली।
इसके बाद, भगवान शिव ने कालाग्नि बनाई और गुफा के आसपास मौजूद हर जीवित प्राणी को नष्ट करने के लिए उसे आग फैलाने का आदेश दिया, ताकि माता पार्वती को छोड़कर कोई भी अमर कथा न सुन सके।
फिर भगवान शिव माता पार्वती को अमरत्व का रहस्य बताने लगे। लेकिन, अचानक कबूतरों का एक जोड़ा वहां पर पहुंचा और उन्होंने अमरत्व के रहस्य को सुन लिया।
इसके साथ ही कबूतरों का यह जोड़ा शुकदेव ऋषि के रूप में अमरत्व को प्राप्त हो गया।
कहा जाता है कि गुफा में आज भी श्रद्धालुओं को कबूतरों का वो जोड़ा दिखाई देता है।
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कैसे बनता है बाबा अमरनाथ का शिवलिंग
- अमरनाथ की पवित्र गुफा गर्मी के कुछ दिनों को छोड़कर साल के अधिकांश समय बर्फ से ढंकी रहती है। पवित्र गुफा में हर साल बर्फ का शिवलिंग प्राकृतिक रूप से बनता है।
- कहा जाता है कि इस गुफा की छत की एक दरार से पानी की बूंदें टपकती हैं, जिससे बर्फ का शिवलिंग बनता है। क्योंकि, ठंड की वजह से पानी जम जाता है और बर्फ शिवलिंग का आकार ले लेता है।
- इस शिवलिंग के बगल में दो छोटे और आकर्षक बर्फ के शिवलिंग भी बनते हैं, जिन्हें माता पार्वती और भगवान गणेश का प्रतीक माना जाता है।
- यह दुनिया का एकमात्र ऐसा शिवलिंग है, जो चंद्रमा की रोशनी के चक्र के साथ बढ़ता और घटता है।
- यह शिवलिंग श्रावण शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को पूरे आकार में रहता है और अमावस्या तक इसका आकार घटने लगता है। ऐसा हर साल होता है।
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अमरनाथ यात्रा का इतिहास?
श्री अमरनाथ जी श्राइन बोर्ड की वेबसाइट के अनुसार महर्षि भृगु पवित्र अमरनाथ गुफा के दर्शन करने वाले पहले व्यक्ति थे।
मान्यता यह है कि जब एक बार कश्मीर घाटी पानी में डूब गई थी, तो महर्षि कश्यप ने नदियों और नालों के माध्यम से पानी को बाहर निकाला था।
उन दिनों ऋषि भृगु हिमालय की यात्रा पर उसी रास्ते से आए थे और तपस्या के लिए एकांतवास की खोज में थे।
तभी उन्हें बाबा अमरनाथ की पवित्र गुफा के दर्शन हुए।
तब से लाखों भक्त श्रावण (जुलाई-अगस्त) के महीने में इस पवित्र गुफा के दर्शन करने लगे।
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300 साल तक बंद रही अमरनाथ यात्रा
14वीं शताब्दी के मध्य में करीब 300 साल तक अमरनाथ यात्रा बंद रही।
18वीं शताब्दी में फिर से इस यात्रा की शुरूआत हुई।
1991 और 1995 में आतंकी हमलों की आशंका के चलते इस यात्रा को फिर से रोका गया था।
बूटा मलिक ने की थी खोज
कहते हैं साल 1850 में बूटा मलिक नाम के एक चरवाहे ने अमरनाथ गुफा की दोबारा खोजा था।
कहानियां हैं कि एक साधु ने बूटा मलिक को कोयला से भरा थैला दिया।
घर पहुंचने पर जब उसने उस थैले को खोला, तो थैला सोने के सिक्कों से भरा हुआ था।
इससे वह बहुत खुश हुआ और साधु को धन्यवाद देने के लिए वह घर से बाहर निकला। लेकिन, साधु वहां से गायब हो गए थे।
फिर इस चरवाहे ने वहां पर पवित्र गुफा और बर्फ से बने शिवलिंग को देखा।
इसके बाद उसने इस खोज के बारे में ग्रामीणों को बताया। तभी से यह तीर्थयात्रा का एक पवित्र स्थल बन गया।
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स्वामी विवेकानंद ने भी किए थे दर्शन
करीब 126 साल पहले स्वामी विवेकानंद ने बाबा अमरनाथ के दर्शन किए थे।
भगिनी निवेदिता ने अपनी पुस्तक ‘नोट्स ऑफ सम वांडरिंग विद स्वामी विवेकानंद’ में लिखा है कि जब स्वामीजी पवित्र अमरनाथ गुफा पहुंचे, तो उन्होंने कहा कि आज भगवान शिव ने मुझे साक्षात दर्शन दिए हैं।
मैने ऐसी सुंदर और प्रेरणादायक कोई चीज नहीं देखी और न ही किसी धार्मिक स्थल का इतना आनंद लिया।
2000 में हुआ था श्राइन बोर्ड का गठन
साल 2000 में जम्मू-कश्मीर सरकार ने श्रीअमरनाथ जी श्राइन बोर्ड का गठन किया और इसका अध्यक्ष राज्यपाल को बनाया गया।
तब से अमरनाथ यात्रा के प्रबंधन की जिम्मेवारी श्रीअमरनाथ जी श्राइन बोर्ड के हाथों में है।
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