Bhadra on Holika Dahan: इस साल 13 मार्च को होलिका दहन पर भद्रा का साया रहने वाला है।
इस वजह से लोगों में होलिका दहन के मुहूर्त को लेकर कन्फयूजन हैं।
दरअसल, हिंदू धर्म में भद्राकाल के दौरान कोई भी शुभ कार्य नहीं होता है।
भद्राकाल खत्म होने के बाद ही कोई भी शुभ कार्य किया जाता है।
इसलिए इस बार भी भद्राकाल समाप्त होने के बाद ही होलिका दहन किया जाएगा।
होलिका दहन पर 12 घंटे 51 मिनट तक भद्रा का साया
भद्रा काल – 13 मार्च, सुबह 10.35 मिनट से रात 11.26 मिनट तक
भद्रा की पूंछ – शाम 6.57 मिनट से रात 8.14 मिनट तक
भद्रा का मुख – रात 8.14 मिनट से रात 10.22 मिनट तक
13 मार्च को चंद्रमा सिंह राशि में संचार करेंगे, जिसकी वजह से भद्रा का साया मृत्यु लोक में रहेगा।
शास्त्रों के अनुसार, जब भद्रा मृत्यु लोक में होती है, तब सबसे ज्यादा हानिकारक मानी जाती है।
होलिका दहन पर भद्रा करीब 12 घंटे 51 मिनट तक रहेगी।

होलिका दहन 2025 पूजा मुहूर्त
भद्रा समाप्त होने के बाद होलिका दहन के लिए 13 मार्च की रात करीब 1 घंटे और 4 मिनट का समय मिलेगा।
इसलिए होलिका दहन रात 11.27 मिनट से मध्य रात्रि 12.30 मिनट तक किया जा सकेगा।
शास्त्रों के अनुसार, भद्राकाल में कुछ कामों को करना वर्जित माना गया है।
आइए जानते हैं भद्राकाल में क्या करें क्या न करें…
भद्राकाल में क्या न करें
- भद्राकाल में यात्रा नहीं करनी चाहिए। इस दौरान अपनी किसी धार्मिक यात्रा या कामकाज के सिलसिले में कोई भी यात्रा की शुरुआत न करें।
- भद्राकाल में किसी भी प्रकार का आर्थिक लेनदेन नहीं करना चाहिए।
- भद्राकाल में इस बात का विशेष ध्यान रखें की नया वाहन नया मकान या जमीन आदि न खरीदें।
- भद्राकाल को अशुभ समय माना गया है। ऐसे में इस दिन नए घर का निर्माण नहीं कराना चाहिए और न ही छत डालने का काम करना चाहिए।
- भद्राकाल में शादी और कोई भी शुभ कार्य न तो तय करना चाहिए और न ही किसी शुभ कार्य का आयोजन करना चाहिए।
- व्यापार वर्ग के लोगों को इस दिन कोई भी नई डील नहीं करनी चाहिए और न ही इस दिशा में कोई योजना बनानी चाहिए।
भद्राकाल में क्या करें
- भद्राकाल के दौरान भगवान विष्णु की पूजा मंत्रों का जप करना उत्तम माना जाता है।
- भद्राकाल में कुल देवी-देवता और गुरु मंत्र का जप भी कर सकते हैं।
- इसके अलावा महामृत्युंजय मंत्र का जप या शनि मंत्र का जप भी करना विशेष लाभकारी होता है।
- भद्राकाल में अगर किसी का अंतिम संस्कार करना पड़े तो शास्त्रीय विधान यह है कि कुश के पांच पुतले बनाकर उनका भी साथ में अंतिम संस्कार कर देना चाहिए। इससे भद्रा का दोष कट जाता है।

कौन है भद्रा? (Who is Bhadra)
पुराणों के अनुसार, भद्रा न्याय के देवता शनि देव की बहन और सूर्यदेव की पुत्री है। कहा जाता है कि भद्रा का स्वभाव क्रोधी है।
भद्रा के स्वभाव को काबू में करने के लिए भगवान ब्रह्मा ने उन्हें पंचांग के एक प्रमुख अंग विष्टि करण में स्थान दिया था।
भद्राकाल के दौरान शुभ और मांगलिक कार्य करना वर्जित है।
भद्राकाल के समापन के बाद शुभ कार्य किए जा सकते हैं।
क्या है भद्रा वास और इसका प्रभाव
भद्रा का वास अलग-अलग लोकों में होने पर वह अलग-अलग प्रभाव डालती है।
हिंदू पंचांग के पांच प्रमुख अंग होते हैं, पहला तिथि, फिर नक्षत्र, वार, योग और करण। इसमें भी करण को तिथि का आधा भाग माना जाता है।
करण कुल 11 होते हैं। इसमें से 7 स्थिर चर होते हैं और 4 करण स्थिर होते हैं। 7वें कर करण का नाम ही वष्टि या भद्रा है।
भद्रा का विचार इन 4 स्थिति पर होता हैं
- पहला स्वर्ग या पाताल में भद्रा का वास
- प्रतिकूल काल वाली भद्रा
- दिनार्द्ध के अंतर वाली भद्रा
- भद्रा का पुच्छ काल
भद्रा के शुभ-अशुभ परिणाम का पता लगाने के लिए इन सभी का विचार किया जाता है।
भद्रा का वास कब कहां होगा इसका पता चंद्रमा के गोचर से चलता है।
जब भद्राकाल के दौरान चंद्रमा मेष, वृषभ, मिथुन और वृश्चिक राशि में होते हैं तो उस समय भद्रा का वास स्वर्ग में माना जाता है।
वहीं, जिस समय चंद्रमा कन्या, तुला, धनु और मकर राशियों में हो तो भद्रा पाताल में वास करती है।
जिस समय चंद्रमा कर्क, सिंह, कुंभ और मीन राशि में होते हैं तो उस समय भद्रा का वास मृत्यु लोक यानी धरती पर होता है।
भद्रा जिस लोक में होती है वहां पर ही अशुभ परिणाम देती हैं। धरती पर भद्रा का होने दोषकारक माना गया है।
जबकि भद्रा के स्वर्ग और पाताल में होने पर यह शुभ रहती है।
इसलिए भद्राकाल का समय जब भी चंद्रमा मेष, वृष, मिथुन, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु और मकर राशि में हो तो भद्रा स्वर्ग या पाताल में रहेगी और ऐसे में मांगलिक कार्यों करना शुभ है।
साथ ही भद्रा पुच्छ में भी शुभ कार्य किए जा सकते हैं। जो अलग-अलग तिथियों में अलग तरह से निर्धारित किए जाते हैं।