Diwali And Maa Lakshmi Story: हिंदू धर्म का सबसे बड़ा त्यौहार दिवाली को माना जाता है। लोग साल भर इस त्यौहार का का इंतजार करते हैं और महीनों पहले से इस पर्व की तैयारी शुरू कर देते हैं।
इस दिन खासतौर पर माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है लेकिन क्या आपको इसका कारण पता है और दिवाली मनाने की परंपरा कब से शुरू हुई?
आइए जानते हैं इन सभी सवालों के जवाब…
मां लक्ष्मी की उत्पत्ति और दिवाली
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार देवताओं और राक्षसों ने अमृत पाने के लिए समुद्र मंथन किया था। इस प्रक्रिया में समुद्र से 14 रत्न निकले थे जिनमें से एक माता लक्ष्मी थीं।
कहते हैं जिस दिन देवी लक्ष्मी समुद्र से बाहर आई थीं वो दिन कार्तिक अमावस्या यानी दिवाली का ही दिन था। इसलिए हर साल इस दिन को माता लक्ष्मी का जन्मोत्सव मनाया जाता है।
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देवी लक्ष्मी ने विष्णु जी को चुना पति
देवी लक्ष्मी का स्वरुप इतना सुंदर था कि सभी देवता और राक्षस उनकी तरफ आर्कषित हो गए। ऐसे में लक्ष्मी ने स्वयं की सुरक्षा के लिए खुद को पालनहार भगवान विष्णु को सौंप दिया।
उसी समय से लक्ष्मी जी भगवान विष्णु के साथ उनकी अर्धांगिनी के रूप में विराजमान हैं।
समुद्र मंथन के दौरान निकलने की वजह से माता लक्ष्मी को दूध के समुद्र की पुत्री क्षीरब्धितान्या भी कहा जाता है। क्योंकि माता लक्ष्मी का स्थान भगवान विष्णु के ह्रदय में है इसलिए उन्हें श्रीनिवास नाम से भी जाना जाता है।
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मां लक्ष्मी का स्वरूप
लक्ष्मी जी को अक्सर कमल के फूल पर बैठी या खड़ी एक सुंदर स्त्री के रूप में चित्रित किया जाता है, जो पवित्रता और ज्ञान का प्रतीक हैं।
उनके एक हाथ में कमल का फूल और दूसरे हाथ में सोने का सामान लिए दिखाया जाता है, जो धन और समृद्धि का प्रतीक है।
हिंदू धर्म में, लक्ष्मी को धन और सौभाग्य की देवी के रूप में पूजा जाता है, और उन्हें अपने भक्तों के लिए समृद्धि, सफलता और खुशी लाने वाली देवी माना जाता है।
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धन, सौभाग्य और सुंदरता की देवी
माता लक्ष्मी को धन, सौभाग्य, यौवन और सुंदरता की देवी माना जाता हैं। वो भगवान विष्णु की पत्नी हैं, इसी वजह से उनकी जोड़ी को लक्ष्मी-नारायण के रूप में पूजा जाता है।
गृहस्थ भी हर तरह की सुख-समृद्धि पाने के लिए दिवाली के दिन माता लक्ष्मी की पूजा करते हैं।
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दिवाली पर अयोध्या लौटे थे श्रीराम
दिवाली के दिन ही भगवान श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण 14 वर्षों के वनवास के बाद अयोध्या वापस आए थे।
उनके आने की खुशी में पूरी अयोध्या को दुल्हन की तरह सजाया गया था और नगरवासियों ने सारे शहर में दीपक जलाए थे।
माना जाता है तभी से हर साल इस दिन दीप जलाने की परंपरा शुरू हो गई जो आज तक चली आ रही हैं।
2024 में कब है दीवाली? (Diwali 2024 Date and Time)
पंचांग के अनुसार, कार्तिक अमावस्या तिथि की शुरुआत 31 अक्टूबर को दोपहर 03.52 मिनट से शुरू होगी और इसका समापन 01 नवंबर को शाम को 06.16 मिनट पर होगा। इसके बाद 06 बजकर 16 मिनट के बाद कार्तिक माह की प्रतिपदा शुरू हो जाएगी।
ऐसे में 31 अक्टूबर को लक्ष्मी पूजा का शुभ संयोग दोपहर बाद से रात्रि तक का है।
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लक्ष्मी पूजा 2024 शुभ मुहूर्त
ब्रह्म मुहूर्त- सुबह 04 बजकर 49 मिनट से लेकर से 05 बजकर 41 मिनट तक।
विजय मुहूर्त- दोपहर 01 बजकर 55 मिनट से लेकर 02 बजकर 39 मिनट तक।
प्रदोष काल- शाम 05 बजकर 36 मिनट से लेकर 08 बजकर 11 मिनट तक।
लक्ष्मी पूजा का समय- शाम 06 बजकर 25 मिनट से लेकर रात 8 बजकर 20 मिनट तक।