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चंपा षष्ठी व्रत: इस दिन होती है भगवान भोलेनाथ के खंडोबा स्वरूप की पूजा, जानें पूरी कथा

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Nisha Rai
Nisha Rai
निशा राय, पिछले 12 सालों से मीडिया के क्षेत्र में सक्रिय हैं। इन्होंने दैनिक भास्कर डिजिटल (M.P.), लाइव हिंदुस्तान डिजिटल (दिल्ली), गृहशोभा-सरिता-मनोहर कहानियां डिजिटल (दिल्ली), बंसल न्यूज (M.P.) जैसे संस्थानों में काम किया है। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय (भोपाल) से पढ़ाई कर चुकीं निशा की एंटरटेनमेंट और लाइफस्टाइल बीट पर अच्छी पकड़ है। इन्होंने सोशल मीडिया (ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम) पर भी काफी काम किया है। इनके पास ब्रांड प्रमोशन और टीम मैनेजमेंट का काफी अच्छा अनुभव है।

Champa Shashti Khandoba: मार्गशीर्ष मास शुक्ल पक्ष की छठे दिन चंपा षष्ठी का व्रत रखा जाता है। इस दिन भगवान शिव के खंडोबा स्वरूप की पूजा होती है।

स्कंद पुराण के अनुसार, इस दिन भगवान शिव के पुत्र भगवान कार्तिकेय की भी पूजा की जाती है इसलिए इस व्रत और पर्व को स्कंद षष्ठी भी कहा जाता है।

6 दिन तक चलने वाला ये पर्व इस साल 07 दिसंबर 2024, शनिवार से शुरू हो रहा है।

यह पर्व मुख्य रूप से दक्षिण भारत और महाराष्ट्र में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।

आइए जानते हैं चंपा षष्ठी पर्व का महत्व, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि…

चंपा षष्ठी पर्व की प्राचीन कथा

चंपा षष्ठी का पर्व भगवान शिव के मार्तंडाय-मल्लहारी स्वरूप को समर्पित माना गया है।

हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार प्राचीन काल में मल्ल और मणि नाम के दो राक्षस भाईयों का अत्याचार काफी बढ़ गया था, जिसे खत्म करने के लिए भगवान शिव ने मार्तंड भैरव का अवतार लिया था।

कहते हैं कि भगवान ने मल्ला का सिर काट कर मंदिर की सीढ़ियों पर छोड़ दिया था जबकि मणि ने मानव जाति की भलाई का वरदान भगवान से मांगा था, इसलिए उसे उन्होंने छोड़ दिया। इस पौराणिक कथा का उल्लेख ब्रह्माण्ड पुराण में मिलता है।

भगवान शिव ने खंडोबा नामक स्थान पर मणि और मल्ल से 6 दिनों तक लगातार युद्ध करते हुए चंपा षष्ठी के दिन ही उनका वध किया था।

ये भी मान्यता है कि इसी स्थान पर भगवान भोलेनाथ शिवलिंग के रूप में प्रकट हुए थे।

शिवजी भैरव और देवी पार्वती शक्ति रूप में यहां प्रकट हुए थे, इसलिए महाराष्ट्र में रुद्रावतार भैरव को मार्तंड-मल्लहारी और खंडोबा के नाम से पुकारा जाता है।

चंपा षष्ठी की तिथि

मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष षष्ठी आरंभ: 12.07 PM (06 दिसम्बर 2024)

मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष षष्ठी समाप्त: 11.05 AM (08 दिसम्बर 2024)

उदया तिथि के अनुसार चंपा षष्ठी का व्रत 07 दिसंबर को मनाया जाएगा।

चंपा षष्ठी पूजा विधि

मार्गशीर्ष षष्ठी को ब्रह्ममुहूर्त से पहले स्नान करके भगवान सूर्य को जल अर्पित करें।

अब भगवान शिव, भगवान मार्तण्ड और स्वामी कार्तिकेय की पूजा का संकल्प लें।

शिवलिंग पर गंगाजल, कच्चा दूध से अभिषेक करें, बेल पत्र और चंपा का फूल अर्पित करें।

चंपा षष्टी पर लगता है बैंगन का भोग

इस दिन शिवलिंग पर बाजरा, बैंगन, खांड, अबीर आदि भी चढ़ाते हैं इसलिए कुछ स्थानों पर इसे बैंगन छठ पर्व भी कहते हैं।

चंपा षष्टी व्रत के कड़े नियम

भगवान खंडोबा को एक उग्र देवता के रूप में माना जाता है, इसलिए इनकी पूजा के नियम बेहद ही कड़े हैं।

चंपा षष्ठी का व्रत करने वाले लोगों को इस दिन भूमि पर ही सोना चाहिए।

मान्यता है कि इस दिन सारे नियमों का पालन करते हुए पूजा-अनुष्ठान करने सभी पाप नष्ट होते हैं और जीवन में खुशियां-शांति आती है।

इस दिन देश के सभी खंडोबा मंदिर में हवन, पूजन और कीर्तन का आयोजन होता है, तथा खंडोबा देव को हल्दी, फल एवं सब्जियां आदि भी चढ़ाई जाती है।

किसी साधारण पूजा की तरह उन्हें हल्दी और फूल तो चढ़ाया ही जाता है, लेकिन कभी-कभी बकरी का मांस भी मंदिर के बाहर भगवान को चढ़ाया जाता है।

कहां है ये मंदिर

वर्तमान में खंडोबा का ये मंदिर महाराष्ट्र राज्य के पुणे जिले के जेजुरी (Jejuri) में स्थित है।

मराठी में इसे ‘खंडोबाची जेजुरी’ (“खंडोबा की जेजुरी”) के नाम से जाना जाता है।

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