Food Rules After Chaturmas: हिंदू धर्म में चातुर्मास का विशेष महत्व है। इस दौरान खाने-पीने की कई चीजों की मनाही होती है।
चातुर्मास खत्म होने के बाद सभी तरह के शुभ और मांगलिक कार्य फिर से शुरू हो गए हैं।
इसके साथ ही धार्मिक और सामाजिक जीवन में एक नए चरण की शुरुआत होगी।
इस वर्ष 2025 में, चातुर्मास की शुरुआत 8 जुलाई, 2025 (आषाढ़ शुक्ल एकादशी) से हुई थी और इसका समापन 1 नवंबर, 2025 को देवोत्थान एकादशी (जिसे प्रबोधिनी एकादशी भी कहते हैं) के दिन हुआ।

आइए जानते हैं चातुर्मास खत्म होने के बाद खान-पान से लेकर मांगलिक कार्यों तक क्या-क्या बदलाव आएंगे…
चातुर्मास के बाद इन 6 चीजों का सेवन फिर से होगा शुरू
चातुर्मास के दौरान संयम और सात्त्विकता बनाए रखने के लिए कई प्रकार के खाद्य पदार्थों का सेवन वर्जित माना गया है।
लेकिन एकादशी के बाद इन पर लगा प्रतिबंध हट जाएगा।
आइए जानते हैं कौन-सी हैं वे चीजें:
1. दही और छाछ: चातुर्मास में दही खाने और छाछ पीने की मनाही होती है। मान्यता है कि इससे बारिश के मौसम में स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं।
समापन के बाद आप इन्हें अपने आहार में फिर से शामिल कर सकते हैं।

2. हरी पत्तेदार सब्जियां: पालक, मेथी, सरसों का साग जैसी हरी सब्जियों को भी इस दौरान नहीं खाया जाता।
ऐसा माना जाता है कि बारिश में इन पर कीट-पतंगे अधिक लगते हैं।
अब इनका सेवन स्वस्थ और सुरक्षित माना जाएगा।

3. बैंगन, भिंडी, करेला: इन सब्जियों को भी चातुर्मास में त्याग दिया जाता है।
कार्तिक महीने की एकादशी के बाद इन्हें बनाना और खाना फिर से शुरू किया जा सकता है।

4. प्याज और लहसुन: जो लोग सात्त्विक भोजन का पालन करते हैं, वे इन दिनों प्याज-लहसुन से परहेज करते हैं।
चातुर्मास समाप्त होते ही इस तामसिक प्रवृत्ति वाले भोजन पर लगी पाबंदी हट जाती है।

5. दालें और कुछ अनाज: कुछ क्षेत्रों और परंपराओं में विशेष दालों और अनाजों का सेवन भी वर्जित होता है। अब इन्हें भी पूरी तरह से खाने की इजाजत होगी।
6. तला हुआ भोजन और अचार: भारी और तले हुए खाद्य पदार्थों को भी इस दौरान कम खाने की सलाह दी जाती है।
नए मौसम के साथ पाचन तंत्र मजबूत होता है, इसलिए इन्हें सीमित मात्रा में खाया जा सकता है।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण: सेहत के लिहाज से क्यों है जरूरी?
चातुर्मास में खान-पान पर लगे इन नियमों के पीछे सदियों पुराना वैज्ञानिक आधार छिपा है।
यह समय वर्षा ऋतु का होता है, जब वातावरण में नमी अधिक रहती है।
इस नमी के कारण बैक्टीरिया और फंगस तेजी से पनपते हैं।
दही और दूध से बने उत्पाद इस मौसम में जल्दी खराब होते हैं और संक्रमण का कारण बन सकते हैं।
इसी तरह, हरी सब्जियों पर कीड़े लगने और उनके सड़ने का खतरा अधिक होता है।

चातुर्मास में कमजोर होता है पाचन तंत्र
साथ ही, बारिश के मौसम में शरीर की पाचन तंत्र (मेटाबॉलिज्म) कमजोर हो जाता है, इसलिए भारी, तला हुआ और गरिष्ठ भोजन पचाना मुश्किल हो जाता है।
जब चातुर्मास समाप्त होता है, तब तक वर्षा ऋतु जा चुकी होती है और ठंड का मौसम शुरू होने लगता है।
यह मौसम स्वास्थ्यवर्धक और रोगमुक्त होता है, जिसमें शरीर का पाचन तंत्र फिर से मजबूत हो जाता है।
इसलिए, इन खाद्य पदार्थों को दोबारा आहार में शामिल करना स्वास्थ्य की दृष्टि से भी सुरक्षित हो जाता है।

धार्मिक और सामाजिक जीवन में आएंगे ये बड़े बदलाव
चातुर्मास का समापन सिर्फ खान-पान में बदलाव का ही नहीं, बल्कि पूरे जीवनशैली में उल्लास लेकर आता है।
- मांगलिक कार्यों की हरी झंडी: देवोत्थान एकादशी के दिन भगवान विष्णु योग निद्रा से जागते हैं। इस दिन से शुभ कार्यों जैसे विवाह, मुंडन, गृहप्रवेश, नए व्यवसाय की शुरुआत आदि का बंधन खुल जाता है।
- त्योहारों का सिलसिला: इसके बाद त्योहारों का दौर शुरू हो जाता है। देव दिवाली, कार्तिक पूर्णिमा और तुलसी विवाह जैसे महत्वपूर्ण पर्व मनाए जाते हैं।
- आध्यात्मिक से सक्रिय जीवन की ओर: चातुर्मास आत्मचिंतन, साधना और संयम का समय होता है। इसके बाद लोग इस संयम से मिली नई ऊर्जा के साथ अपने दैनिक कार्यों और सामाजिक जीवन में पूरी तरह सक्रिय हो जाते हैं।
- मौसम में बदलाव: बारिश की ऊमस भरी गर्मी के बाद मौसम सुहावना और खुशनुमा हो जाता है। यह समय यात्राओं और बाहरी गतिविधियों के लिए भी उपयुक्त माना जाता है।

चातुर्मास का समापन एक उत्सव की तरह है, जो हमें संयम के महत्व का बोध कराकर नई शुरुआत का संदेश देता है।


