History of Chhath Puja: छठ महापर्व सूर्य देव और छठी मैया की आराधना का एक अनूठा और कठोर त्योहार है।
यह पर्व विशेष रूप से बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश के क्षेत्रों में बेहद धूमधाम और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है।
लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इस पर्व की शुरुआत कब और कैसे हुई और पहला छठ व्रत किसने रखा था?
इस लेख में हम छठ पूजा के इतिहास, इससे जुड़ी पौराणिक कथाओं और व्रत की कठिनाइयों के बारे में जानते हैं…
माता सीता ने की थी पहली छठ पूजा
छठ पूजा की शुरुआत का सबसे प्रमुख और व्यापक रूप से मान्य स्रोत रामायण काल से जुड़ा हुआ है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान राम और माता सीता ने सबसे पहले छठ पूजा की थी।
कहानी कुछ यूं है जब भगवान राम 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटे, तो उन्होंने रावण वध के पाप से मुक्ति पाने के लिए एक राजसूय यज्ञ करने का निर्णय लिया।
इस यज्ञ के लिए मुग्दल ऋषि को आमंत्रित किया गया। लेकिन मुग्दल ऋषि ने अयोध्या आने के बजाय, भगवान राम और माता सीता को अपने आश्रम में आने का आदेश दिया।
मुग्दल ऋषि ने माता सीता को कार्तिक मास की षष्ठी तिथि पर सूर्य देव की उपासना करने का परामर्श दिया।
ऋषि की आज्ञा का पालन करते हुए, भगवान राम और माता सीता बिहार के मुंगेर स्थित गंगा तट पर पहुंचे और विधि-विधान से सूर्यदेव की पूजा की।
मान्यता है कि यहीं पर दुनिया की पहली छठ पूजा संपन्न हुई थी।
आज भी मुंगेर में उस पूजा के साक्ष्य के रूप में पूजा में इस्तेमाल हुए सूप, डाला (बांस की टोकरी), लोटा और माता सीता के चरण चिन्हों के दर्शन होते हैं, जो इस घटना की पुष्टि करते हैं।
चूंकि माता सीता मिथिला (आधुनिक बिहार) की थीं और भगवान राम सूर्यवंशी थे, इसलिए इस क्षेत्र में सूर्य उपासना की यह परंपरा गहराई से जुड़ गई।
महाभारत काल में द्रौपदी ने भी किया था छठ व्रत
छठ पूजा का संबंध केवल रामायण काल से ही नहीं, बल्कि महाभारत काल से भी है।
एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार, जब पांडव जुए में अपना सारा राजपाट हार गए और 12 वर्ष के वनवास पर चले गए, तब द्रौपदी ने उनकी मुश्किलें दूर करने और राजपाट वापस पाने के लिए सूर्य षष्ठी का महाव्रत रखा था।
कहा जाता है कि इस व्रत के प्रभाव से पांडवों को उनका खोया हुआ राज्य वापस मिल गया और द्रौपदी की सभी मनोकामनाएं पूरी हुईं।
इस कथा से यह स्पष्ट होता है कि छठ पूजा की परंपरा हजारों वर्षों से चली आ रही है और इसे मनोकामना पूर्ति का शक्तिशाली साधन माना जाता है।
क्यों इतना कठिन माना जाता है छठ का व्रत?
छठ का व्रत दुनिया के सबसे कठिन व्रतों में से एक माना जाता है।
इस व्रत को रखने वाले व्यक्ति को ‘व्रती’ कहा जाता है।
यह व्रत सिर्फ शारीरिक तपस्या नहीं, बल्कि मन, वचन और कर्म की पवित्रता की परीक्षा भी है। इसकी कठिनाई के मुख्य पहलू हैं:
- 36 घंटे का निर्जला व्रत: यह छठ व्रत का सबसे कठोर पहलू है। व्रती को लगभग 36 घंटे तक बिना पानी पिए उपवास रखना होता है। यहां तक कि एक बूंद पानी भी ग्रहण नहीं किया जाता।
- ठंडे पानी में अर्घ्य: कार्तिक मास की ठंड में, व्रतियों को डूबते (संध्या अर्घ्य) और उगते सूर्य (उषा अर्घ्य) को अर्घ्य देने के लिए नदी या तालाब के ठंडे पानी में घंटों खड़े रहना पड़ता है।
- सख्त नियम और शुचिता: इस व्रत में एक छोटे से नियम के टूटने पर भी व्रत खंडित माना जाता है। व्रती को पूरे 4 दिनों तक पवित्रता का कड़ाई से पालन करना होता है, जिसमें फर्श पर सोना, सात्विक भोजन ग्रहण करना और मन को नियंत्रण में रखना शामिल है।
- तत्काल फल की मान्यता: लोक मान्यता है कि छठ पूजा में किसी भी प्रकार की भूल-चूक का फल तुरंत मिल जाता है, जो अक्सर नकारात्मक होता है। इसीलिए व्रती और उनके परिवार के सदस्य हर छोटे-बड़े नियम का पालन बेहद सावधानी से करते हैं।
छठ पूजा 2025: तिथि और समय
इस साल 2025 में, छठ पूजा का चार दिवसीय महापर्व 25 अक्टूबर से 28 अक्टूबर तक मनाया जाएगा।
यह पर्व नहाय-खाय के साथ शुरू होगा और उषा अर्घ्य के साथ संपन्न होगा।
पूरा परिवार एक साथ मिलकर घाट पर छठी मैया का पाठ करता है और सूर्य देव से कुशलता, समृद्धि और सुख-शांति की कामना करता है।
छठ पूजा सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि आस्था, संस्कृति और अटूट विश्वास का प्रतीक है। इसकी जड़ें हमारे ग्रंथों की पवित्र कथाओं में समाई हुई हैं।
माता सीता और द्रौपदी से शुरू हुई यह परंपरा आज भी उसी श्रद्धा और निष्ठा के साथ मनाई जाती है।
यह व्रत मनुष्य की इच्छाशक्ति और प्रकृति (सूर्य) के प्रति कृतज्ञता का एक अद्भुत उदाहरण है।


