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जानें कौन हैं छठी मैया: सूर्य देव के साथ क्यों होती हैं पूजा, भगवान शिव से क्या है संबंध?

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Nisha Rai
Nisha Rai
निशा राय, पिछले 13 सालों से मीडिया के क्षेत्र में सक्रिय हैं। इन्होंने दैनिक भास्कर डिजिटल (M.P.), लाइव हिंदुस्तान डिजिटल (दिल्ली), गृहशोभा-सरिता-मनोहर कहानियां डिजिटल (दिल्ली), बंसल न्यूज (M.P.) जैसे संस्थानों में काम किया है। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय (भोपाल) से पढ़ाई कर चुकीं निशा की एंटरटेनमेंट और लाइफस्टाइल बीट पर अच्छी पकड़ है। इन्होंने सोशल मीडिया (ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम) पर भी काफी काम किया है। इनके पास ब्रांड प्रमोशन और टीम मैनेजमेंट का काफी अच्छा अनुभव है।

Who is Chhathi Maiya: छठ महापर्व सूर्योपासना और प्रकृति की आराधना का एक अनूठा त्योहार है।

यह व्रत केवल एक रीति-रिवाज नहीं, बल्कि आस्था, तपस्या और शुद्धता का अद्भुत संगम है।

इस पूजा में सूर्य देव के साथ-साथ छठी मैया की उपासना का विशेष महत्व है।

लेकिन क्या आप जानते हैं कि छठी मैया आखिर कौन हैं? उनका सूर्य देव, भगवान शिव और कार्तिकेय से क्या नाता है?

आइए, इस जानते हैं छठी मैया के स्वरूप, पौराणिक कथाओं और इस पर्व के महत्व के बारे में…

छठी मैया: प्रकृति का छठवां अंश-संतानों की रक्षिका

छठी मैया, जिन्हें षष्ठी देवी के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म में संतानों की रक्षा और पालन-पोषण करने वाली मुख्य देवी मानी जाती हैं।

उनके बारे में विभिन्न पौराणिक मान्यताएं प्रचलित हैं, जो उनके दिव्य स्वरूप को समझने में हमारी मदद करती हैं।

1. ब्रह्मा जी की मानस पुत्री:

मार्कण्डेय पुराण के अनुसार, सृष्टि की रचना के समय देवी प्रकृति ने स्वयं को छह भागों में विभाजित किया।

इनमें से छठा अंश सबसे शक्तिशाली और कल्याणकारी था, जो ‘षष्ठी देवी’ के रूप में प्रकट हुईं।

इसीलिए इन्हें प्रकृति का छठवां रूप माना जाता है।

इन्हें ब्रह्मा जी की मानस पुत्री भी कहा गया है, जो सभी शिशुओं और मातृत्व की अधिष्ठात्री देवी हैं।

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2. सूर्य देव की बहन:

लोक मान्यताओं के अनुसार, छठी मैया सूर्य देव की बहन हैं।

यही कारण है कि छठ पूजा में सूर्य देव और छठी मैया, दोनों की साथ में पूजा-आराधना की जाती है।

जिस प्रकार सूर्य अपनी किरणों से समस्त सृष्टि को जीवन देते हैं, उसी प्रकार छठी मैया नवजात शिशुओं को जीवनदान देती हैं और उनकी रक्षा करती हैं।

3. भगवान कार्तिकेय की पत्नी:

एक अन्य महत्वपूर्ण मान्यता के अनुसार, छठी मैया भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र, कार्तिकेय (जिन्हें स्कंद भी कहा जाता है) की पत्नी हैं।

इस रूप में वह भगवान शिव की पुत्रवधू कहलाती हैं।

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कार्तिक मास में ही क्यों मनाया जाता है छठ पर्व?

छठ पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है।

इसके पीछे खगोलीय और धार्मिक दोनों ही कारण हैं।

खगोलीय दृष्टि से इस समय सूर्य की पराबैंगनी किरणें पृथ्वी पर सबसे कम मात्रा में होती हैं, जिससे सूर्य को अर्घ्य देने का यह समय अत्यंत शुभ और स्वास्थ्यवर्धक माना जाता है।

धार्मिक मान्यता यह है कि इसी दिन छठी मैया का जन्म हुआ था और इसी तिथि पर वह भक्तों को अपना आशीर्वाद प्रदान करने आती हैं।

छठ पर मायके आती हैं छठी मैया 

कहते हैं कि छठ के दिनों में छठी मैया अपने मायके (उत्तर भारत) आती हैं और भक्तों को आशीर्वाद देती हैं।

इसीलिए यह पर्व विशेष रूप से बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है।

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छठ पूजा क्यों मनाई जाती है? 

छठ पर्व मनाने के पीछे कई पौराणिक और ऐतिहासिक कारण हैं, जो इसकी महत्ता को और बढ़ा देते हैं।

1. राजा प्रियंवद और रानी मालिनी की कथा:

सबसे प्रसिद्ध कथा राजा प्रियंवद और रानी मालिनी की है। वे संतान सुख से वंचित थे।

महर्षि कश्यप ने पुत्रेष्टि यज्ञ कराया, जिससे रानी को एक पुत्र तो हुआ, लेकिन वह मृत पैदा हुआ।

इससे दुखी राजा आत्महत्या करने जा रहे थे। तभी आकाश से देवी षष्ठी प्रकट हुईं और उन्हें छठ व्रत का विधान बताया।

राजा-रानी ने विधि-विधान से व्रत रखा और उनके मृत पुत्र में जान आ गई।

तभी से यह व्रत संतान प्राप्ति और उसकी दीर्घायु के लिए किया जाने लगा।

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2. भगवान राम और माता सीता की कथा:

मान्यता है कि त्रेता युग में जब भगवान राम 14 वर्ष का वनवास पूरा कर अयोध्या लौटे, तो उनके राज्याभिषेक के बाद माता सीता ने संतान प्राप्ति और राज्य की समृद्धि के लिए कार्तिक मास में छठ व्रत रखा था।

उन्होंने सूर्य देव की आराधना की थी।

3. द्रौपदी और पांडवों की कथा:

एक अन्य कथा के अनुसार, जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए थे, तब भगवान कृष्ण ने द्रौपदी को छठ व्रत करने की सलाह दी थी।

इस व्रत के प्रभाव से पांडवों को उनका खोया हुआ राज्य वापस मिल गया।

छठ पूजा का महत्व: आस्था और विज्ञान का अनूठा मेल

छठ पूजा का महत्व केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि वैज्ञानिक भी है।

यह व्रत शारीरिक और मानसिक शुद्धता पर जोर देता है।

व्रत के दौरान खाई जाने वाली सामग्री (जैसे गुड़ की चासनी, मौसमी फल) पौष्टिक होती है और सूर्य को अर्घ्य देने की प्रक्रिया शरीर को विटामिन डी प्रदान करती है।

आध्यात्मिक रूप से, यह पर्व अनुशासन, सहनशीलता और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता भाव सिखाता है।

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छठी मैया संतान की रक्षा, परिवार की सुख-समृद्धि और मंगल कामना की प्रतीक हैं।

छठ का यह पावन पर्व हमें प्रकृति, ऊर्जा के स्रोत सूर्य और हमारी सनातन संस्कृति से जुड़ने का एक सुनहरा अवसर प्रदान करता है।

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