Kharna Puja Rules: लोक आस्था के महापर्व छठ की शुरुआत नहाय-खाय के साथ हो चुकी है।
इस चार दिवसीय पर्व का दूसरा और अत्यंत महत्वपूर्ण दिन है ‘खरना’।
खरना न सिर्फ 36 घंटे के निर्जला व्रत की शुरुआत का प्रतीक है, बल्कि यह पवित्रता और आत्मशुद्धि का दिन भी माना जाता है।
इस दिन कुछ ऐसी अनूठी मान्यताएं और नियम जुड़े हैं, जो इस पर्व की विशेषता को और बढ़ा देते हैं, जैसे कि बंद कमरे में पूजा और व्रती के भोजन के दौरान मौन रहना।

आइए, जानते हैं खरना की इन्हीं गहरी मान्यताओं और उन नियमों के बारे में, जिनका पालन करना हर व्रती के लिए अनिवार्य होता है…
खरना क्या है और इसका क्या है महत्व? (What is Kharna and its Importance?)
खरना छठ पूजा का दूसरा दिन है।
इस दिन व्रती महिलाएं और पुरुष पूरे दिन निर्जला व्रत रखते हैं।
दिन भर व्रत रखने के बाद, शाम के समय विशेष पूजा-अर्चना की जाती है और फिर गुड़ की खीर एवं पूड़ी का प्रसाद ग्रहण किया जाता है।

‘खरना’ शब्द का अर्थ है ‘शुद्धता’। यह दिन व्रती की शारीरिक और मानसिक शुद्धि को दर्शाता है।
मान्यता है कि इसी दिन घर में छठी मैया का आगमन होता है और वह इस प्रसाद को ग्रहण करती हैं।
इस प्रसाद को ग्रहण करने के बाद ही व्रती के लिए 36 घंटे के कठोर निर्जला व्रत की शुरुआत हो जाती है।
खरना बंद कमरे में क्यों होता है और व्रती के कानों तक आवाज क्यों नहीं पहुंचनी चाहिए?
इस प्रथा के पीछे गहरी लौकिक और व्यावहारिक मान्यताएं छिपी हैं:
- पूजा में एकाग्रता और शांति: छठ पूजा एक गहन आध्यात्मिक साधना है। बंद कमरे का मुख्य उद्देश्य व्रती को बाहरी दुनिया के शोर-शराबे और नकारात्मक ऊर्जा से अलग करना है। इससे व्रती पूरी तरह से ध्यान लगाकर सूर्य देव और छठी मैया की आराधना कर पाते हैं।
- प्रसाद की पवित्रता की रक्षा: मान्यता है कि बाहरी आवाजों, विशेषकर किसी अशुभ या अपवित्र बात की आवाज, व्रती के कानों तक पहुंचने से प्रसाद अपवित्र हो सकता है। बंद कमरा इस अपवित्रता से बचाव का एक शारीरिक और प्रतीकात्मक तरीका है।
- जीव-जंतुओं के प्रभाव से बचाव: एक लौकिक मान्यता यह भी है कि कोई भी बुरी आत्मा या नकारात्मक शक्ति इस पवित्र प्रसाद पर अपना प्रभाव न डाल सके, इसलिए इस दौरान पूरा वातावरण शांत और नियंत्रित रखा जाता है।

व्रती के खाने के दौरान कोई बोले तो भोजन क्यों छोड़ना पड़ता है?
यह नियम अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है और इसके पीछे की मान्यता बेहद दिलचस्प है:
- भोजन को ‘प्रसाद’ का दर्जा: खरना का भोजन साधारण भोजन नहीं, बल्कि छठी मैया का प्रसाद होता है। इसे देवतुल्य माना जाता है।
- अशुभ आवाज का प्रभाव: मान्यता है कि यदि व्रती प्रसाद ग्रहण कर रहा/रही है और उस दौरान कोई अशुभ, कटु या नकारात्मक बात सुन लेता है, तो वह प्रसाद अपवित्र हो जाता है। ऐसा प्रसाद ग्रहण करना व्रत के नियमों के विपरीत है।
- आध्यात्मिक दृष्टिकोण: जिस प्रकार यज्ञ या हवन के समय मंत्रों का उच्चारण शांत वातावरण में किया जाता है, ठीक उसी प्रकार इस दिव्य प्रसाद के ग्रहण का समय भी एक पवित्र अनुष्ठान है। इसमें किसी भी प्रकार की बाधा व्रत के फल को कम कर सकती है।
इसीलिए, परिवार के सदस्य इस बात का विशेष ध्यान रखते हैं कि व्रती के प्रसाद ग्रहण करते समय आस-पास पूर्ण मौन रहें और कोई अवांछित आवाज न आए।

खरना पूजा में भूलकर भी न करें ये 5 गलतियां (Top 5 Mistakes to Avoid During Kharna Puja)
छठ पूजा की सफलता और व्रत के संपूर्ण फल की प्राप्ति के लिए खरना के दिन कुछ गलतियों से विशेष रूप से बचना चाहिए। इनमें से कोई भी गलती व्रत भंग का कारण बन सकती है।
1. पवित्रता का उल्लंघन करना (Violation of Purity)
- गलती: बिना हाथ-पैर धोए, गंदे कपड़े पहनकर या अशुद्ध स्थान पर बैठकर पूजा की सामग्री या प्रसाद को छूना।
- सही तरीका: प्रसाद बनाने, पूजा सामग्री को छूने या पूजा करने से पहले अच्छी तरह स्नान करके साफ-सुथरे कपड़े पहनें। प्रसाद बनाने का स्थान और चूल्हा (जो अक्सर मिट्टी का होता है) पूरी तरह स्वच्छ होना चाहिए।
2. नमक या मांसाहार का सेवन या स्पर्श (Consumption or Touch of Salt or Non-Veg)
- गलती: नहाय-खाय के बाद से ही व्रती और परिवार के सदस्यों द्वारा नमकीन खाना या मांसाहारी भोजन ग्रहण करना या उसे छूना।
- सही तरीका: खरना के दिन से लेकर छठ पूजा के अंत तक, व्रती के घर में बिल्कुल भी नमक या मांसाहार का प्रयोग नहीं होना चाहिए। प्रसाद और भोजन सात्विक और फलाहारी ही रहता है।
3. प्रसाद को अर्पित करने से पहले बांटना (Distributing Prasad Before Offering)
- गलती: खरना का प्रसाद (खीर-पूड़ी) बनने के बाद सबसे पहले परिवार के सदस्यों या पड़ोसियों में बांट देना।
- सही तरीका: प्रसाद बनने के बाद सबसे पहले उसे छठी मैया और सूर्य देव को अर्पित करें। इसके बाद सबसे पहले व्रती इसे ग्रहण करे और फिर उसके बाद ही इसे परिवार और अन्य लोगों में प्रसाद के रूप में बांटा जाए।
4. पलंग पर सोना (Sleeping on the Bed)
- गलती: खरना के दिन व्रती का पलंग या आरामदायक बिस्तर पर सोना।
- सही तरीका: मान्यता के अनुसार, इस दिन व्रती को सादगी का जीवन अपनाना चाहिए और जमीन पर चटाई बिछाकर सोना चाहिए। यह तप और संयम का प्रतीक है।
5. झूठ, क्रोध या नकारात्मक व्यवहार (Lying, Anger or Negative Behavior)
- गलती: व्रती का झूठ बोलना, किसी से क्रोध करना या किसी भी प्रकार का नकारात्मक व्यवहार करना।
- सही तरीका: छठ व्रत केवल शारीरिक तप नहीं, बल्कि मानसिक शुद्धता का भी व्रत है। व्रती को पूरे चार दिनों तक सत्य बोलना, मन को शांत रखना और सभी के प्रति दयाभाव रखना चाहिए।

छठ पूजा का हर नियम और मान्यता प्रकृति, शुद्धता और आस्था के गहरे विज्ञान पर आधारित है।
बंद कमरे में पूजा और मौन रहने की प्रथा व्रती की आध्यात्मिक यात्रा को निर्बाध और पवित्र बनाए रखने के लिए है।
इन नियमों का सावधानीपूर्वक पालन करके ही भक्त सूर्य देव और छठी मैया की असीम कृपा प्राप्त कर पाते हैं और उनका यह महापर्व सफलतापूर्वक संपन्न होता है।


