Bhalu In Chhattisgarh Mandir: पूरे देश में नवरात्रि की धूम मची हुई है। देशभर के देवी मंदिरों में भक्तों का तांता लगा हुआ है।
लेकिन क्या आपने कभी सुना है कि भालू भी देवी की आरती में शामिल होने आते हैं और प्रसाद खाते हैं।
वैसे तो भालुओं को हिंसक माना जाता है, लेकिन इन मंदिरों में भालू ने आज तक किसी को नुकसान नहीं पहुंचाया है जो अपने आप में एक चमत्कार है।
ये कोई कहानी नहीं बल्कि सच्चाई है वो भी 1 या 2 नहीं बल्कि छत्तीसगढ़ के 3 देवी मंदिरों की, जहां भालू अपने परिवार के साथ आते हैं और भक्तों के हाथों से प्रसाद भी खाते हैं…
आइए आपको बताते हैं इन अनोखे मंदिरों के बारे में…
1. घुचापाली का चंडी माता मंदिर, बागबाहरा (महासमुंद)
महासमुंद के बागबाहरा के पास घुचापाली का चंडी माता का मंदिर है जो काफी प्रसिद्ध है।
यहां रोजाना एक मादा और दो शावक भालू आते हैं और प्रसाद खाकर वापस लौट जाते हैं।
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150 साल पुराना मंदिर, भालू देखने आते हैं भक्त
पहाड़ी पर स्थित माता चंडी का यह मंदिर 150 साल पुराना है। जहां हमेशा श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है।
इन भालुओं को देखने और प्रसाद खिलाने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं।
इसके लिए इन्हें कई बार घंटों इंतजार भी करना पड़ता हैं।
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आरती के समय आते हैं भालू
बताया जाता है कि ये भालू शाम को आरती के समय मंदिर में आते हैं और मूर्ति की परिक्रमा करते हैं।
इसके बाद वह प्रसाद लेते हैं। हैरानी वाली बात यह है कि कभी-कभी पुजारी अपने हाथों से उन्हें प्रसाद खिलाते हैं।
मंदिर में जाने वाले लोगों का कहना है कि मंदिर में आने भालू पालतू लगते हैं। वह बिल्कुल सीधे दिखते हैं और प्रसाद लेकर वापस जंगल में चले जाते हैं।
जामवंत के परिवार के है भालू
ग्रामीण को मानना हैं कि ये भालू जामवंत के परिवार के हैं और देवी के भक्त हैं। इसलिए इन भालुओं ने आज तक किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया है।
माता की 23 फीट ऊंची प्रतिमा, बढ़ती जा रही है ऊंचाई
इस मंदिर में चंडी माता की दक्षिण मुखी प्राकृतिक प्रतिमा है। जो करीब 23 फीट ऊंची है।
लोगों का दावा है कि माता चंडी की ये मूर्ति अपने आप बढ़ती जा रही है।
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मंदिर में होती थी तंत्र साधना
माता का ये मंदिर पहले तंत्र साधना के लिए जाना जाता था, जहां कई साधु संतों का डेरा लगा रहता था।
इसे तंत्र साधना के लिए गुप्त रखा गया था लेकिन 1950 के आस पास इस मंदिर को आम नागरिकों के लिए खोला गया है.
2. चांग देवी मंदिर भरतपुर (मनेंद्रगढ़)
मनेंद्रगढ़ जिले के भरतपुर से 7 किलोमीटर दूर भगवानपुर गांव में मां चांग देवी माता का प्राचीन मंदिर है जो काफी प्रसिद्ध है।
इस मंदिर में दूर-दूर से लोग माता के दर्शन के लिए आते हैं और नवरात्रि पर यहां मेला भी लगता है, जिसमें काफी भीड़ होती है।
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मंदिर परिसर में घूमते हैं भालू
चंडी माता मंदिर की तरह यहां भी भालुओं का आना-जाना लगता रहता है लेकिन इस मंदिर में भालू बैरिकेट्स के बाहर नहीं होते बल्कि मंदिर परिसर में ही घूमते रहते हैं।
मंदिर समिति की तरफ से भी भालू के आने-जाने के लिए पूरी व्यवस्था की गई है।
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लोग मानते हैं देवी का चमत्कार
स्थानीय लोग भालू के मंदिर में आने को देवी मां का चमत्कार मानते हैं क्योंकि ये भालू बिना किसी को नुकसान पहुंचाएं रोजाना मंदिर में देवी मां के दर्शन के लिए आते हैं और प्रसाद खाकर लौट जाते हैं।
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इस मंदिर में पूरी होती है हर प्रार्थना
लोगों का मानना है कि इस मंदिर में माता से जो भी वर मांगा जाता है वो जरूर मिलता है। चांग माता सभी की इच्छाएं पूरी करती हैं।
इसी आस्था और विश्वास के साथ लोग दूर-दूर से इस मंदिर में आते हैं।
लोग मनोकामना पूरी होने के लिए नारियल बांधते और चढ़ाते हैं और मनोकामना पूरी होने पर ज्योति कलश भी जलाते हैं
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पहले पेड़ के नीचे विराजमान थीं माता
मां का ये मंदिर घने जंगलों के बीच बसा हुआ है। कहा जाता है कि चांग माता की मूर्ति राजा मानसिंह साल 1790 में खोहरा पाट से लाए थे।
कई सालों तक तो खदई के पेड़ के नीचे माता विराजमान थीं लेकिन बाद में माता का मंदिर बनवाया गया।
चांगभखार रियासत की कुलदेवी होने के कारण इस मंदिर का नाम चांग देवी मंदिर पड़ा।
स्थानीय लोगों की माने तो चांग माता बालंग राजा की कुलदेवी हैं।
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3. मुंगई माता मंदिर, बावनकेरा (महासमुंद)
महासमुंद जिला मुख्यालय से 35 किलोमीटर दूर पटेवा और झलप के बीच एनएच-53 पर मुंगई माता का मंदिर पहाड़ी पर स्थित है।
यहां पर भी भालुओं का आना-जाना लगा रहता है लेकिन पहले भालू यहां पर नियमित रूप से नहीं आते थे।
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ऐसे शुरू हुआ भालुओं के आने का सिलसिला
दरअसल, जब से मंदिर के पुजारी और आने-वाले भक्तों ने इन्हें खाने-पीने का सामान देना शुरू किया है तभी से भालू यहां रोजाना आने लगे हैं।
मंदिर के पुजारी खुद अपने हाथों से भालुओं को फ्रूटी पिलाते हैं। साथ ही बिस्कुट, मूंगफली और नारियल भी खिलाते हैं।
भालू का परिवार भी बिना किसी दिक्कत के आराम से पुजारी और अन्य लोगों के हाथ से आराम से खाने-पीने की चीजे खाते हैं।