Warning On Poisonous Farming: आदिवासी बाहुल्य उमरिया जिले में स्थित बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में जहरीली कोदो की फसल खाने से 10 हाथियों की मौत हुई थी।
हमारे देश में कोई भी घटना की जांच के बाद उस पर लीपापोती की परंपरा सी बन गई है।
इस मामले में भी यही होने वाला है ये तय मान लीजिए।
वन विभाग, कृषि विभाग और इससे जुड़े सभी सरकारी लोग ने इस मुद्दे को हादसा बताकर ठंडे बस्ते में डाल देंगे।
10 हाथियों की मौत इंसानी बदले की भावना से मौत है यहां तक तो ठीक है।
लेकिन, यदि ये मौत कोदो की फसल खाने से हुई है और ये एक हादसा है, तो ये इंसानों समेत सभी जीवों के भविष्य के लिए अच्छे संकेत नहीं है।
हमारे प्राकृतिक संसाधनों जल, जंगल, जमीन को बचाने के लिए नए सिरे से कदम उठाने की चेतावनी है।
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इंसानों और जीवों के बीच तीसरे तत्व की एंट्री
जीवन की जद्दोजहद में जंगल से सटे खेतों में जंगली हाथी ज्वार बाजरा कोदो-कुटकी समेत अन्य फसलों को कोई आज से उजाड़ या खा नहीं रहे हैं, बल्कि ये सिलसिला वर्षों से चला आ रहा है।
इस कारण से हाथियों को लेकर किसानों में द्वेष बना रहता है, लेकिन बावजूद इसके जीवन आसानी से चलता आ रहा था।
अब इंसानों और जीवों के बीच तीसरे तत्व की एंट्री हो गई है, वो रासायनिक तत्व।
जी हां आज गेहूं, चावल, चना, तुअर, मूंग, मसूर, मक्का, ज्वार, बाजरा, सोयाबीन समेत सभी अनाजों का उत्पादन बढ़ाने रासायनिक खाद या कीटनाशाक के छिंकड़काव से हो रहा है।
ऐसा नहीं है कि कीटनाशक या रासायनिक खाद के उपयोग किए बिना फसलों का उत्पादन नहीं होगा।
लेकिन, जैसे हर इंडस्ट्री पर बाजार हावी है, वैसे ही हमारी खेती बाड़ी पर भी विश्वव्यापी बाजार ने कब्जा जमा लिया है।
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जहर उत्पादन की ये इंडस्ट्रियां खूब फल फूल रही है, लेकिन इसकी कीमत इंसान और जीव जंतु चुका रहे हैं।
कई छोटे पशु-पक्षी इस जहरीले वातावरण के कारण विलुप्त हो गए हैं और कई विलुप्त होने की कगार पर हैं।
इंसान की औसत आयु कम होती जा रही है और तमाम तरह की बीमारियों की गिरफ्त में इंसान घिरता जा रहा है।
बांधवगढ़ में हाथियों की मौत ये बताता है कि संकट कितना गहराता जा रहा है।
यदि इस पर गौर नहीं किया गया तो अब बारी इंसानों की आ गई है।
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आइए आपको बताते हैं कि किस-किस फसल का उत्पादन बढ़ाने कौन-कौन से रासायनिक उर्वरक और कीटनाशकों का उन पर छिड़काव होता है।
Warning On Poisonous Farming: गुणों का भंडार कोदो-कुटकी
मोटे अनाज में शामिल कोदो का इतिहास भारत में वर्षों पुराना है।
एक रिपोर्ट की मानें तो भारत में करीब 3000 साल से कोदो-कुटकी की खेती की जा रही है।
इसका पौधा 60-90 सेमी तक ऊंचा, सीधा और देखने में धान के पौधे की तरह होता है।
इसलिए इसे गरीबों का चावल भी कहा जाता है, इसके बीज चमकीले, छोटे, सफेद और गोल होते हैं।
इसे देशभर में अलग-अलग नामों से जाना जाता है, कोदो को कोदों, कोदरा, हरका, वरगु, अरिकेलु आदि भी कहा जाता है।
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कोदो भले ही देखने में धान की पौधे की तरह लगता है, लेकिन धान से अलग खास बात यह है कि कोदो की खेती में धान से बेहद कम पानी की जरूरत होती है।
कोदो को भारत के कई सारे राज्यों जैसे महाराष्ट्र, उत्तरी कर्नाटक, तमिलनाडु के कुछ भाग, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, बिहार, गुजरात और उत्तर प्रदेश में उगाया जाता है।
इतना ही नहीं देश के अलावा विदेशों में भी इसकी खेती की जाती है, सभी तरह के मिलेट्स हमारी सेहत के लिए काफी फायदेमंद होते हैं।
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कोदो भी अपने औषधीय गुणों की वजह से हमारी सेहत के लिए बेहद गुणकारी है। इसे अपनी डाइट में शामिल करने से कई सारी समस्याओं से निजात मिल सकती है।
प्रोटीन और फाइबर के गुणों से भरपूर कोदो में फैट बिल्कुल नहीं होता है।
इसके अलावा नियासिन, बी सिक्स, फोलिक एसिड समेत कैल्शियम, आयरन, पोटेशियम, मैग्नीशियम, जिंक जैसे कई सारे मिनरल्स भी इसमें पाए जाते हैं।
कोदो में ये खरपतवार नाशक दी जाती है दवा
कोदो की बोनी से पूर्व बीज में मेन्कोजेब या थायरम दवा प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से मिलाया जाता है।
पौधा उगने पर सफेद चींटियां तना छेदक ये कोदो फसल के दो प्रमुख कीट हैं।
इन्हें नियंत्रित करने के लिए बुवाई से पहले मिट्टी में मैलाथियान या मिथाइल पैराथियान धूल डाली जाती है।
Warning On Poisonous Farming: ज्वार-बाजरा
ज्वार भारत की एक मोटे अनाज वाली महत्वपूर्ण फसल है।
वर्षा आधारित कृषि के लिये ज्वार सबसे उपयुक्त फसल है, जिससे दोहरा लाभ होता है।
एक तो मानव आहार के लिये अनाज, दूसरा पशु आहार के लिये कडबी (चारा) भी मिलती है।
ज्वार की फसल कम वर्षा में भी अच्छी उपज देती है।
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एक ओर जहां ज्वार सूखे का सक्षमता से सामना कर सकती है।
दूसरी ओर कुछ समय के लिये भूमि में जलमग्नता भी सहन कर सकती है।
मध्य प्रदेश में ज्वार की खेती लगभग 4 लाख हेक्टेयर भूमि में की जा रही है।
खरगोन, खण्डवा, बड़वानी, छिंदवाड़ा, बैतूल, राजगढ़ और गुना जिलों में मुख्यत इसकी खेती की जाती है।
इसके अलावा ज्वार के दाने का उपयोग उच्च गुणवत्ता वाला अल्कोहल और ईथेनॉल बनाने में इस्तेमाल किया जा रहा है।
ज्वार के कीटनाशक
ज्वार में प्रभावी खरपतवार नियंत्रण हेतु एलाक्लोर दावा अंकुरण से पूर्व मिलाई जाती है।
एट्राजीन, कार्बोफ्यूरान, भुट्टों पर डाइथेन एम 45 और मेलाथियान दवा का छिड़काव किया जाता है।
Warning On Poisonous Farming: गेहूं
भारत का खाद्यान्न उत्पादन 2023-24 फसल वर्ष में रिकॉर्ड 332.22 मिलियन टन पर पहुंच गया है, जो कि गेहूं और चावल के बंपर उत्पादन की वजह से हुआ है ।
गेहूं का उत्पादन लगभग 113.29 मिलियन टन तक पहुंच गया है, जबकि चावल का उत्पादन लगभग 137.82 मिलियन टन तक पहुंच गया है।
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वहीं बात करें मध्य प्रदेश की तो प्रदेश गेहूं उत्पादन में देश में प्रथम स्थान पर है।
प्रदेश में सोयाबीन, मूंग, उड़द, गेहूं, मसूर, मक्का और तिल की फसल का भी मुख्य रूप से उत्पादन किया जाता है।
सम्पूर्ण खाद्यान्न फसलों के उत्पादन में मध्य प्रदेश का देश में तीसरा स्थान है।
गेहूं की फसल के उर्वरक
डी.ए.पी, यूरिया, सिंगल सुपर फास्फेट (राकोड़िया) म्यूरेट ऑफ पोटाश, सल्फर, जिंक सल्फेट, नत्रजन (टॉनिक) दिया जाता है।
Warning On Poisonous Farming: चना
भारत में कुल उगायी जाने वाली दलहन फसलों का उत्पादन लगभग 17 मिलियन टन प्रति वर्ष है।
चने का उत्पादन कुल दलहन फसलों के उत्पादन का लगभग 45 प्रतिशत होता है।
देश में चने का सबसे अधिक उत्पादन मध्य प्रदेश में होता है, जो कुल उत्पादन का 25.3 प्रतिशत है।
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चने की फसल के कीटनाशक
चने की अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए नत्रजन, फास्फोरस, पोटाश का उपयोग किया जाता है।
असिंचित अवस्था में यूरिया या डी.ए.पी भी फसल में फेंका जाता है।
चने की फसल पर इल्ली मारने के लिए क्यूनालफास का छिड़काव किया जाता है।
किसान ट्राइजोफॉस 40 ईसी का भी छिड़काव करते हैं।
Warning On Poisonous Farming: सोयाबीन
मध्य प्रदेश में सोयाबीन का रकबा 2023-24 में 6679 हजार हेक्टेयर हो गया है।
पिछले साल 2022-23 में सोयाबीन उत्पादन 6332 हजार मीट्रिक टन से बढ़कर 2023-24 में 6675 हजार मीट्रिक टन हो गया।
मध्य प्रदेश में सोयाबीन खरीफ की एक प्रमुख फसल है।
देश में सोयाबीन उत्पादन के क्षेत्र में एमपी अग्रणी है, जिसकी हिस्सेदारी 55 से 60 % के मध्य है।
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सोयाबीन की फसल जून से जुलाई के बीच बोई जाती हैं और अक्टूबर से नवंबर तक यह फसल पक कर कटने को तैयार हो जाती हैं।
सोयाबीन में उर्वरक और कीटनाशक
जमीन की भौतिक दशा और गुणों को बनाये रखने के साथ ही उत्पादन वृद्धि के लिए गोबर की खाद या कम्पोस्ट का उपयोग किया जाता है।
जिंक और बोरान तत्व की कमी पाए जाने पर इनका भी उपयोग किया जाता है।
रासायनिक उर्वरकों में डीएपी, फास्फोरस की पूरी मा़त्रा सिंगल सुपर फास्फेट के रूप में दी जाती है।
सोयाबीन की फसल को कीड़ों से बचाने के लिए कीटनाशक सेल्क्रॉन और खरपतवार नाशक दवा के साथ ही पौधों को सुखाने की दवा का भी उपयोग किया जाता है।
Warning On Poisonous Farming: तुअर (अरहर)
भारत में दालें प्रोटीन के रूप में भोजन का एक अभिन्न अंग है।
टिकाऊ कृषि के लिए जमीन की उर्वरा शक्ति में वृद्धि करने सहित आहार और चारे के विभिन्न रूपों में उपयोग आदि दलहनी फसलों के लाभ हैं।
मध्य प्रदेश में दलहनी फसलों के स्थान पर सोयाबीन के क्षेत्रफल में वृद्धि होने से दलहनी फसलों का रकबा घट रहा है।
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साथ-साथ अरहर फसल का क्षेत्र उपजाऊ समतल जमीन से हल्की ढालू, कम उपजाऊ जमीन पर स्थानांतरित हो रहा है, जिससे उत्पादन में भारी कमी हो रही है।
प्रदेश ही नहीं देश में भी निरतंर अरहर दाल का करबा कम होता जा रहा है, इसलिए दालों के लिए विदेशों से आयात पर निर्भरता बढ़ गई है।
जो वित्त वर्ष 2023-24 में लगभग दोगुनी होकर 3.74 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गई है।
आयात में 45 लाख टन से अधिक की वृद्धि का उद्देश्य घरेलू मांग को पूरा करना और कीमतों को नियंत्रित करना है।
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मध्य प्रदेश में अरहर को लगभग 5.3 लाख हेक्टर भूमि में लगाया जाता है।
प्रदेश में अरहर बीज की पारंपरिक प्रजाति के साथ नई प्रजाति जेकेएम प्रचलन में है।
अरहर की कीटनाशक दवा
अरहर की फसल में घास कुल के खर-पतवार नियंत्रण के लिए क्लिजैलोफाप 5 EC 400 Ml का छिड़काव किया जाता है।
अरहर के पौधों पर इंडोक्साकार्ब 14.5 एससी, फेनाज़ाकुईन 10 % ईसी जैसे कीटनाशक दवा पानी में मिलाकर छिड़की जाती है।
Warning On Poisonous Farming: रासायनिक खेती इंसानों में बांट रही कैंसर
अनाज, दालें, फल और हरी सब्जियां अच्छी सेहत के लिए जरूरी हैं।
लेकिन, यही अनाज, सब्जी और फल अगर रासायनिक उर्वरक या कीटनाशक के इस्तेमाल कर उगाई गई हो तो जान लीजिए की इनके सेवन से इंसान दो पीढ़ियों तक बीमारियों की चपेट में आ जाएगा।
हमारे देश में अब यही हो रहा है।
ऊपर लेख में बताई तमाम कीटनाशक दवाई और उर्वरक से फसलों के कीट तो मरते हैं, साथ ही पक्षी, तितलियां फसल और मिट्टी के रक्षक कई अन्य जीव भी नष्ट हो रहे हैं।
कीटनाशकों के अंश अन्न, जल, पशु और हम मनुष्यों में आ गए हैं।
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फसल पर कीटनाशकों के छिड़काव का मानव शरीर पर असर जानने के लिए हुए शोध से पता चला है कि कीटनाशक मनुष्य शरीर में कैंसर रोग को जन्म दे रहे हैं।
यह मानव शरीर में हार्मोन, प्रोटीन सेल और डीएनए तक पर प्रहार कर उन्हें क्षति पहुंचाते हैं और उनका रूपांतरण करते हैं।
इसी का नतीजा है कि शरीर में जल्दी थकावट, संक्रामक बीमारियों का तेजी से फैलना, कम उम्र से पहले बुढ़ापे के लक्षण दिखाई देने लगे हैं।
पूरे लेख का सार ये है कि पूरे प्राकृतिक संसाधनों में ही जहर घुल रहा है तो क्या जीव जंतु, क्या पशु-पक्षी और क्या इंसान, पृथ्वी पर पाए जाने वाले सभी जीवों का जीवन अब संकट में है।
इसके खिलाफ देश ही नहीं पूरी दुनिया में आवाज उठाने की जरूरत है।
नोट- इस लेख में लेखक के अपने निजी विचार हैं।