Dev Deepawali 2025: कार्तिक पूर्णिमा इस साल 5 नवंबर, बुधवार को है।
इसी दिन देव दीपावली या देवताओं की दिवाली मनाई जाती है।
मान्यता है कि इस दिन स्वयं देवता धरती पर उतरकर गंगा घाटों पर दीप जलाते हैं।
आइए जानते हैं इस पर्व की पौराणिक कथा, धार्मिक महत्व और उसकी पूजन विधि के बारे में।

देव दीपावली क्यों मनाई जाती है? जानें पौराणिक कथा
देव दीपावली मनाने का सबसे बड़ा कारण भगवान शिव द्वारा त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध है।
इसी जीत की खुशी में देवताओं ने पहली बार दीप जलाकर उत्सव मनाया था, जिसे आज हम देव दीपावली के नाम से जानते हैं।
त्रिपुरासुर वध की पूरी कहानी
त्रिपुरासुर का उदय:
कथा महाभारत के कर्णपर्व में मिलती है। तारकासुर नामक एक शक्तिशाली राक्षस के तीन पुत्र थे – तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली।
इन तीनों को एक साथ ‘त्रिपुरासुर’ कहा जाता था। जब भगवान कार्तिकेय ने तारकासुर का वध किया, तो उसके इन तीनों पुत्रों ने देवताओं से बदला लेने की ठानी।

अमरता का वरदान:
तीनों भाइयों ने कठोर तपस्या कर ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया। उन्होंने ब्रह्मा जी से अमरता का वरदान मांगा।
जब ब्रह्मा जी ने अमरता देने से मना कर दिया, तो उन्होंने एक चालाक वरदान मांगा।
उन्होंने कहा, “हमारे लिए तीन अलग-अलग उड़ने वाले महल (पुर) बनाए जाएं – एक सोने का, एक चांदी का और एक लोहे का।
हज़ार वर्ष बाद जब ये तीनों महल एक सीध में आएं, और उस समय अभिजीत नक्षत्र हो, तब कोई एक ही बाण से हम तीनों का वध कर सके, तभी हमारी मृत्यु हो।”
ब्रह्मा जी ने ‘तथास्तु’ कह दिया।
त्रिलोक में आतंक:
मय दानव ने उनके लिए तीन दिव्य और अजेय पुर (महल) बनाए। इस वरदान के बल पर त्रिपुरासुर ने तीनों लोकों में हाहाकार मचा दिया।
देवता, ऋषि-मुनि और मनुष्य सभी उनके आतंक से त्रस्त हो गए।

शिवजी ने ली वध की जिम्मेदारी:
सभी देवता मदद के लिए भगवान शिव के पास पहुंचे। भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का वध करने का संकल्प लिया। एक विशाल दिव्य रथ का निर्माण किया गया, जिसमें:
- पृथ्वी रथ बनी।
- सूर्य और चंद्रमा रथ के पहिए बने।
- मेरु पर्वत धनुष बना।
- वासुकी नाग धनुष की डोरी बना।
- स्वयं भगवान विष्णु बाण बने।
त्रिपुरासुर का अंत:
हज़ार वर्ष बाद ठीक वही समय आया जब तीनों महल एक सीध में आ गए और अभिजीत नक्षत्र का योग बना।
भगवान शिव ने तब अपना विशाल धनुष चढ़ाया और भगवान विष्णु रूपी एक ही बाण से तीनों पुरों को भस्म कर दिया।

इस तरह त्रिपुरासुर का वध हुआ और तीनों लोकों को उनके आतंक से मुक्ति मिली।
देवताओं ने मनाई दिवाली:
इस विजय से प्रसन्न होकर देवताओं ने आनंदोत्सव मनाया और काशी के घाटों पर दीप जलाकर भगवान शिव का स्वागत किया।
क्योंकि यह दीपावली देवताओं द्वारा मनाई गई थी, इसलिए इसे ‘देव दीपावली’ या ‘देव दिवाली’ कहा जाने लगा।
भगवान शिव के ‘त्रिपुरारी’ (त्रिपुर के शत्रु) नाम से प्रसिद्ध होने के कारण इस दिन को ‘त्रिपुरारी पूर्णिमा’ भी कहते हैं।

कार्तिक पूर्णिमा और देव दीपावली का धार्मिक महत्व
कार्तिक पूर्णिमा हिंदू धर्म के सबसे पवित्र दिनों में से एक मानी जाती है। इस दिन का विशेष महत्व इसलिए है क्योंकि:
- पापों से मुक्ति: मान्यता है कि इस दिन गंगा में स्नान करने से सारे पाप धुल जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
- तीर्थ स्नान का फल: जो लोग गंगा तक नहीं पहुंच पाते, वे घर में ही गंगाजल मिलाकर स्नान करके तीर्थ स्नान का समान पुण्य प्राप्त कर सकते हैं।
- दान-पुण्य का विशेष फल: इस दिन किए गए दान-पुण्य का हज़ार गुना फल मिलता है। गरीबों को अनाज, वस्त्र, दीपक आदि दान करना शुभ माना जाता है।
- व्रत और उपवास: कई लोग इस दिन व्रत रखते हैं और फलाहार ग्रहण करते हैं।

देव दीपावली 2025 पर क्या करें? पूजन विधि
इस पवित्र दिन पर इन धार्मिक कार्यों को करना अत्यंत फलदायी माना गया है:
- स्नान और सूर्यार्घ्य: सुबह जल्दी उठकर गंगा या किसी अन्य पवित्र नदी में स्नान करें। यदि संभव न हो तो घर के पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करें। स्नान के बाद सूर्यदेव को जल अर्पित करें।
- दान: जरूरतमंदों को भोजन, कपड़े, अनाज, दीपक आदि का दान अवश्य करें।
- दीपदान: सूर्यास्त के बाद दीपदान का विशेष महत्व है। आटे या मिट्टी का दीपक लें, उसमें घी या तिल का तेल डालकर दो बाती रखें। एक बाती ईश्वर के प्रति कृतज्ञता के लिए और दूसरी आत्मशुद्धि के लिए। फिर इसे नदी, तालाब के किनारे या घर के मंदिर/आंगन में रखें। दीप जलाते समय भगवान विष्णु और शिव का ध्यान करें।
- पूजा-अर्चना: इस दिन भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी, भगवान शिव और गुरु नानक देव जी की पूजा की जाती है। शिवलिंग पर जल, दूध और बेलपत्र चढ़ाएं।

देव दीपावली 2025 का शुभ मुहूर्त
इस बार देव दीपावली के दिन कई शुभ योग बन रहे हैं:
- कार्तिक पूर्णिमा तिथि: 5 नवंबर, बुधवार
- सिद्धि योग: सुबह 11:28 बजे तक रहेगा, जो किसी भी शुभ कार्य के लिए उत्तम है।
- शिववास योग: इस योग में की गई आरती और पूजा विशेष फलदायी मानी जाती है।
- दीपदान का समय: सूर्यास्त के बाद का समय सर्वाधिक शुभ माना जाता है।
नोट: अगर आप वाराणसी या गंगा घाट तक नहीं पहुंच पा रहे हैं, तो निराश न हों।
श्रद्धा और भावना से अपने नजदीकी नदी, तालाब या कुएं पर दीपदान करने का भी उतना ही पुण्य प्राप्त होता है।
देव दीपावली का संदेश स्पष्ट है – अंधकार पर प्रकाश, बुराई पर अच्छाई और अधर्म पर धर्म की जीत।
यह पर्व हमें आंतरिक प्रकाश और सद्भावना के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।


