Dev Uthani Ekadashi 2025: हिंदू धर्म में देवउठनी एकादशी, जिसे देव प्रबोधिनी एकादशी या देव उत्थान एकादशी के नाम से भी जाना जाता है, का विशेष महत्व है।
मान्यता है कि इसी दिन भगवान विष्णु चार महीने की योग निद्रा से जागते हैं और इसके साथ ही सभी तरह के मांगलिक कार्यों पर लगा विराम समाप्त हो जाता है।
इस साल 2025 में यह पर्व 1 नवंबर, शनिवार को मनाया जा रहा है।
आइए, जानते हैं इस पर्व का महत्व, भगवान विष्णु के चार मास सोने की कथा, पूजन की सही विधि और इसके बाद शुरू होने वाले शुभ मुहूर्तों के बारे में।
क्यों चार महीने सोते हैं भगवान विष्णु? पौराणिक कथा
पुराणों में एक रोचक कथा मिलती है कि एक बार देवी लक्ष्मी ने भगवान विष्णु से निवेदन किया, “हे नाथ! आप या तो लंबे समय तक जागते रहते हैं या फिर लाखों-करोड़ों वर्षों के लिए सो जाते हैं। जब आप सोते हैं तो असुरी शक्तियाँ पृथ्वी पर अत्याचार करने लगती हैं। क्या आप प्रतिवर्ष एक निश्चित अवधि के लिए विश्राम नहीं कर सकते? इससे मुझे भी सेवा से कुछ विश्राम मिल सकेगा।”
भगवान विष्णु देवी लक्ष्मी की इस बात से सहमत हुए और उन्होंने कहा, “तुमने ठीक कहा, देवी। आज से मैं प्रतिवर्ष वर्षा ऋतु में चार मास (चातुर्मास) के लिए योग निद्रा में रहूंगा। यह मेरी अल्प निद्रा होगी, जो मेरे भक्तों के लिए परम मंगलकारी और पुण्यदायी सिद्ध होगी। इस दौरान जो भक्त मेरी पूजा और उत्सव मनाएंगे, मैं तुम्हारे साथ उनके घर में निवास करूंगा।”
और इस प्रकार चातुर्मास की परंपरा शुरू हुई, जिसका समापन कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी, यानी देवउठनी एकादशी को होता है।
देवउठनी एकादशी 2025: शुभ मुहूर्त
वैदिक पंचांग के अनुसार:
- एकादशी तिथि प्रारंभ: 1 नवंबर, सुबह 09:11 बजे
- एकादशी तिथि समाप्त: 2 नवंबर, सुबह 07:31 बजे
- व्रत पारण का समय: 2 नवंबर, दोपहर 01:31 बजे से 03:46 बजे तक
चूंकि एकादशी तिथि 1 नवंबर को सूर्योदय के समय प्रारंभ है, इसलिए इस साल देवउठनी एकादशी का व्रत 1 नवंबर, शनिवार को रखा जाएगा।
विष्णु जी को ऐसे जगाएं: पूजन की संपूर्ण विधि
देवउठनी एकादशी पर भगवान विष्णु को योग निद्रा से जगाने की एक खास विधि होती है। इन steps को follow करके आप भी घर पर पूजन कर सकते हैं:
- सुबह जल्दी उठकर स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- पूजा स्थल को साफ करके गंगाजल या स्वच्छ जल का छिड़काव करें।
- घर के आंगन में चावल के आटे या रोली से भगवान विष्णु के पदचिह्न (पैरों के निशान) बनाएं। इन्हें फूलों से ढक दें।
- एक चौकी पर पीला या लाल कपड़ा बिछाकर भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
- भगवान विष्णु को फल, सिंघाड़े, गन्ना, आलू, मूली, तिल आदि का भोग लगाएं। उन्हें नए वस्त्र और जनेऊ भी अर्पित करें।
- रात के समय 11 दीपक जलाएं और शंख, घंटी बजाते हुए भगवान विष्णु को जगाएं। इस दौरात “उठिए भगवान, संसार का कल्याण करिए” जैसे मंत्र बोलें और भजन-कीर्तन करें।
- देवउठनी एकादशी की कथा जरूर सुनें या पढ़ें।
- अगले दिन, यानी द्वादशी को निर्धारित समय पर व्रत का पारण करें।
देवउठनी एकादशी का महत्व और परंपराएं
- मंगल कार्यों की शुरुआत: इस दिन के बाद से ही शादी-विवाह, गृहप्रवेश, नामकरण जैसे सभी शुभ कार्य फिर से शुरू हो जाते हैं।
- तुलसी विवाह: इसी दिन से तुलसी विवाह का पर्व भी शुरू होता है। कार्तिक पूर्णिमा तक तुलसी जी का विवाह भगवान विष्णु के शालिग्राम स्वरूप से कराया जाता है।
- अबूझ मुहूर्त: इस दिन को अबूझ मुहूर्त माना जाता है, यानी बिना पंचांग देखे भी कोई भी शुभ कार्य किया जा सकता है।
- पुण्य लाभ: इस दिन पवित्र नदियों में स्नान, दान-पुण्य और दीपदान का विशेष महत्व है। ऐसा माना जाता है कि इससे भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
देवउठनी एकादशी के बाद शादी के शुभ मुहूर्त (नवंबर-दिसंबर 2025)
देवउठनी एकादशी के साथ ही विवाह सीजन की शुरुआत हो जाती है।
जो जोड़े इस साल शादी की योजना बना रहे हैं, उनके लिए नवंबर और दिसंबर महीने में कई शुभ मुहूर्त हैं।
पंचांग के अनुसार, नवंबर में लगभग 14 और दिसंबर में 2 शुभ विवाह मुहूर्त हैं।
इसके बाद खरमास (पौष मास) और शुक्र अस्त के कारण लगभग डेढ़ महीने तक शुभ कार्य वर्जित रहेंगे।
अगला अच्छा समय फरवरी 2026 से ही मिलेगा।
इसलिए, जो लोग इस साल विवाह करना चाहते हैं, उनके लिए नवंबर-दिसंबर का समय अंतिम अवसर है।


