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Ekadashi Vrat 2024: 4 तरीकों से रखा जा सकता है एकादशी व्रत, जानें नियम

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Nisha Rai
Nisha Rai
निशा राय, पिछले 12 सालों से मीडिया के क्षेत्र में सक्रिय हैं। इन्होंने दैनिक भास्कर डिजिटल (M.P.), लाइव हिंदुस्तान डिजिटल (दिल्ली), गृहशोभा-सरिता-मनोहर कहानियां डिजिटल (दिल्ली), बंसल न्यूज (M.P.) जैसे संस्थानों में काम किया है। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय (भोपाल) से पढ़ाई कर चुकीं निशा की एंटरटेनमेंट और लाइफस्टाइल बीट पर अच्छी पकड़ है। इन्होंने सोशल मीडिया (ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम) पर भी काफी काम किया है। इनके पास ब्रांड प्रमोशन और टीम मैनेजमेंट का काफी अच्छा अनुभव है।
Ekadashi Vrat 2024: एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है इस दिन लोग व्रत रखकर विष्णु भगवान की पूजा अराधना करते हैं।
कहते हैं कि जो व्यक्ति एकादशी का व्रत पूरे नियमों के साथ रखता है उसके सारे संकट दूर हो जाते हैं और परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है।
ऐसे व्यक्ति के घर धन और अन्न की भी कोई कमी नहीं रहती है।
साल में 24 एकादशी व्रत आते हैं जिसमें अधिक मास होने पर 26 एकादशी आती है।
हर महीने 2 एकादशी आती है। ये व्रत रखने के अलग-अलग तरीके भी है, जिन्हें आप अपने हिसाब से अपना सकते हैं।

आइए जानते हैं एकादशी का व्रत कितने प्रकार से रखा जा सकता है…..

1. जलहर एकादशी व्रत

शास्त्रों के अनुसार जलाहारी या निर्जला व्रत के दौरान व्यक्ति सिर्फ जल पीकर ही एकादशी का व्रत रखता है।
एक बार जलाहारी व्रत का संकल्प लेने के बाद उसे पूरा किया जाता है।
ज्यादातर लोग निर्जला एकादशी के दिन बिना पानी पिए व्रत रखते हैं
लेकिन किसी भी एकादशी के दिन निर्जला व्रत रखा जा सकता है।

2. क्षीरभोजी एकादशी व्रत

क्षीरभोजी एकादशी व्रत यानी दूध या दूध से बने उत्पादों का सेवन करके किया जाता है।
इस दौरान लोग दूध या दूध से बनी चीजों का ही सेवन करते हैं।

3. फलाहारी एकादशी व्रत

फलाहारी एकादशी के दौरान व्यक्ति फल जैसे सेब, केला, संतरा, आम आदि खा कर एकादशी का व्रत करता है
इस दौरान अन्न खाना वर्जित होता है।
अगर किसी व्यक्ति फलाहार खाने का संकल्प लिया है तो उसे पूरा करना होता है।

4. नक्तभोजी एकादशी व्रत

नक्तभोजी एकादशी का अर्थ है दिन में सूर्यास्त के पहले एक समय भोजन करना।
इस एकादशी का व्रत रखने वाले लोग दिन में एक बार भोजन करते हैं।
इस दौरान साबूदाना, कुट्टू, सिंघाड़ा, शकरकंद, आलू जैसे व्रत का भोजन किया जा सकता है। इस दौरान अन्न जैसे दाल, चावल, रोटी आदि नहीं खाते।
आप किसी भी तरह से एकादशी का व्रत कर सकते हैं, लेकिन जिस व्रत का संकल्प लिया हो उसे पूरा जरूर करना चाहिए।
एकादशी व्रत रखने के कुछ अहम नियम भी है, जिनका पालन करना बेहद जरूरी है।
आइए जानते हैं इन नियमों के बारे में…

एकादशी के दिन क्या करें और क्या न करें

1. एकादशी के दिन क्रोध न करते हुए मधुर वचन बोलना चाहिए।

2. एकादशी का व्रत-उपवास करने वालों को दशमी के दिन मांस, लहसुन, प्याज, मसूर की दाल आदि निषेध वस्तुओं का सेवन नहीं करना चाहिए।

3. रात्रि को पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए तथा भोग-विलास से दूर रहना चाहिए।

4. एकादशी के दिन प्रात: लकड़ी का दातुन न करें, नींबू, जामुन या आम के पत्ते लेकर चबा लें और अंगुली से कंठ साफ कर लें, वृक्ष से पत्ता तोड़ना भी वर्जित है। अत: स्वयं गिरा हुआ पत्ता लेकर सेवन करें।

5. यदि यह संभव न हो तो पानी से बारह बार कुल्ले कर लें। फिर स्नानादि कर मंदिर में जाकर गीता पाठ करें या पुरोहितजी से गीता पाठ का श्रवण करें।

6. फिर प्रभु के सामने इस प्रकार प्रण करना चाहिए कि आज मैं चोर, पाखंडी़ और दुराचारी मनुष्यों से बात नहीं करूंगा और न ही किसी का दिल दुखाऊंगा। रात्रि को जागरण कर कीर्तन करूंगा।

7. इसके बाद ऊं नमो भगवते वासुदेवाय इस द्वादश मंत्र का जाप करें। राम, कृष्ण, नारायण आदि विष्णु के सहस्रनाम का पाठ करें।

8. भगवान विष्णु का स्मरण कर प्रार्थना करें और कहे कि- हे त्रिलोकीनाथ! मेरी लाज आपके हाथ है, अत: मुझे इस प्रण को पूरा करने की शक्ति प्रदान करना।

9. यदि भूलवश किसी निंदक से बात कर भी ली तो भगवान सूर्यनारायण के दर्शन कर धूप-दीप से श्रीहरि की पूजा कर क्षमा मांग लेना चाहिए।

10. एकादशी के दिन घर में झाड़ू नहीं लगाना चाहिए, क्योंकि चींटी आदि सूक्ष्म जीवों की मृत्यु का भय रहता है।

11. इस दिन बाल नहीं कटवाना चाहिए।

12. अधिक नहीं बोलना चाहिए। अधिक बोलने से मुख से न बोलने वाले शब्द भी निकल जाते हैं।

13. इस दिन यथाशक्ति दान करना चाहिए। किंतु स्वयं किसी का दिया हुआ अन्न आदि कदापि ग्रहण न करें। दशमी के साथ मिली हुई एकादशी वृद्ध मानी जाती है।

14. वैष्णवों को योग्य द्वादशी मिली हुई एकादशी का व्रत करना चाहिए। त्रयोदशी आने से पूर्व व्रत का पारण करें।

15. एकादशी (ग्यारस) के दिन व्रतधारी व्यक्ति को गाजर, शलजम, गोभी, पालक, इत्यादि का सेवन नहीं करना चाहिए।

16. केला, आम, अंगूर, बादाम, पिस्ता इत्यादि अमृत फलों का सेवन करें।

17. प्रत्येक वस्तु प्रभु को भोग लगाकर तथा तुलसीदल छोड़कर ग्रहण करना चाहिए।

18. द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को मिष्ठान्न, दक्षिणा देना चाहिए।

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