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गुरु नानक देव की 556वीं जयंती: जानें प्रकाश पर्व का इतिहास और लंगर का महत्व

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Nisha Rai
Nisha Rai
निशा राय, पिछले 13 सालों से मीडिया के क्षेत्र में सक्रिय हैं। इन्होंने दैनिक भास्कर डिजिटल (M.P.), लाइव हिंदुस्तान डिजिटल (दिल्ली), गृहशोभा-सरिता-मनोहर कहानियां डिजिटल (दिल्ली), बंसल न्यूज (M.P.) जैसे संस्थानों में काम किया है। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय (भोपाल) से पढ़ाई कर चुकीं निशा की एंटरटेनमेंट और लाइफस्टाइल बीट पर अच्छी पकड़ है। इन्होंने सोशल मीडिया (ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम) पर भी काफी काम किया है। इनके पास ब्रांड प्रमोशन और टीम मैनेजमेंट का काफी अच्छा अनुभव है।

गुरु नानक जयंती 2025: गुरु नानक जयंती, जिसे ‘प्रकाश पर्व’ या ‘गुरुपर्व’ भी कहा जाता है, सिख धर्म का सबसे पवित्र और महत्वपूर्ण त्योहार है।

यह पर्व सिख धर्म के संस्थापक और पहले गुरु, गुरु नानक देव जी के जन्मदिन के उपलक्ष्य में पूरे विश्वभर में बड़े ही उल्लास और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है।

वर्ष 2025 में, यह पावन पर्व 5 नवंबर, बुधवार को मनाया जाएगा।

खास बात यह है कि यह गुरु नानक देव जी की 556वीं जन्म वर्षगांठ होगी।

Guru nanak jayant Katha

इस दिन देश-विदेश के सभी गुरुद्वारे विशेष रूप से सजाए जाते हैं और भव्य आयोजन किए जाते हैं।

गुरु नानक जयंती क्यों मनाई जाती है? इतिहास और महत्व

गुरु नानक जयंती मनाने का प्रमुख कारण सिख समुदाय के प्रथम गुरु, गुरु नानक देव जी का अवतरण दिवस है।

उनका जन्म 1469 ईस्वी में तलवंडी नामक स्थान पर हुआ था, जो अब पाकिस्तान के शेखूपुरा जिले में है और इसे ननकाना साहिब के नाम से जाना जाता है।

उनका जन्म कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को हुआ था, इसीलिए हर साल इसी तिथि के अनुसार गुरुपर्ब मनाया जाता है।

Guru nanak jayant Katha

क्यों कहते हैं प्रकाश पर्व’

इस पर्व को ‘प्रकाश पर्व’ इसलिए कहा जाता है क्योंकि गुरु नानक देव जी का जन्म इस संसार में अज्ञान के अंधकार को मिटाकर ज्ञान और सत्य का प्रकाश फैलाने के लिए हुआ था।

उन्होंने अपना पूरा जीवन मानवता को सही मार्ग दिखाने, समाज में फैली कुरीतियों और भेदभाव को दूर करने में लगा दिया।

इसलिए, यह दिन सिर्फ एक जन्मदिन का उत्सव नहीं, बल्कि उनकी शिक्षाओं और दर्शन को आत्मसात करने का दिन है।

गुरु नानक जयंती का महत्व:

  • आध्यात्मिक जागरण: यह पर्व आत्मिक शुद्धि और ईश्वर के प्रति प्रेम को बढ़ावा देता है।
  • सामाजिक समरसता: गुरु नानक देव जी ने समानता और भाईचारे का संदेश दिया। यह पर्व उन्हीं मूल्यों की याद दिलाता है।
  • सेवा और त्याग: लंगर और निशुल्क सेवा के माध्यम से इस दिन स्वार्थरहित सेवा का महत्व समझाया जाता है।

गुरुपर्व कैसे मनाया जाता है? जानिए पूरे उत्सव की रस्में

गुरु नानक जयंती की तैयारियां दो-तीन दिन पहले से ही शुरू हो जाती हैं। उत्सव की विशेष रस्में इस प्रकार हैं:

1. अखंड पाठ:

गुरुपुरब से दो दिन पहले, यानी 3 नवंबर से ही गुरुद्वारों में 48 घंटे का अखंड पाठ शुरू हो जाता है।

इसमें गुरु ग्रंथ साहिब के सभी पन्नों का निरंतर पाठ किया जाता है।

यह पाठ बिना किसी रुकावट के चलता रहता है, जिसमें संगत (श्रद्धालु) बड़ी संख्या में शामिल होती है।

2. नगर कीर्तन और प्रभात फेरी:

गुरुपर्ब से एक दिन पहले यानी 4 नवंबर को एक भव्य नगर कीर्तन निकाला जाता है।

इसमें गुरु ग्रंथ साहिब की पालकी (पवित्र ग्रंथ) को फूलों से सजे हुए एक रथ पर रखा जाता है।

इस जुलूस में बच्चे, बूढ़े और जवान सभी शामिल होते हैं।

लोग कीर्तन गाते, ढोल-नगाड़े बजाते और पंजाबी मार्शल आर्ट ‘गत्का’ का प्रदर्शन करते हुए शहर के मुख्य मार्गों से गुजरते हैं।

गुरुपुरब की सुबह प्रभात फेरी निकाली जाती है, जिसमें भक्त सुबह-सवेरे ही कीर्तन करते हुए गुरुद्वारे पहुंचते हैं।

3. गुरुद्वारों की सजावट:

इस दिन सभी गुरुद्वारों को विशेष रूप से सजाया जाता है। फूल, रोशनी और रंगीन बल्बों से गुरुद्वारे और आसपास का इलाका जगमगा उठता है।

स्वर्ण मंदिर (अमृतसर) समेत सभी गुरुद्वारों की छटा देखते ही बनती है।

4. विशेष कीर्तन और अरदास:

गुरुपुरब के दिन गुरुद्वारों में विशेष कीर्तन दरबार सजता है। रागी (गायक) गुरु नानक देव जी और अन्य गुरुओं के रचे पवित्र शब्द और शबद गाते हैं।

दिन के अंत में, एक सामूहिक अरदास (प्रार्थना) का आयोजन किया जाता है।

5. गुरु का लंगर:

यह गुरुपुरब का सबसे महत्वपूर्ण और हृदयस्पर्शी हिस्सा है।

इस दिन गुरुद्वारों में विशाल लंगर का आयोजन किया जाता है, जहां हजारों-लाखों लोग बिना किसी भेदभाव के एक साथ बैठकर भोजन करते हैं।

लंगर तैयार करने और परोसने का काम स्वयंसेवक (सेवादार) करते हैं।

लंगर का महत्व? समानता का प्रतीक

लंगर सिर्फ एक निशुल्क भोजनालय नहीं है, बल्कि यह सिख धर्म के मूल सिद्धांतों का जीवंत प्रतीक है। गुरु नानक देव जी ने ही 1500 के दशक में इसकी नींव रखी थी, जब समाज जाति और ऊंच-नीच की दीवारों में बंटा हुआ था।

  • समानता का पाठ: लंगर में हर व्यक्ति, चाहे वह किसी भी धर्म, जाति, लिंग या आर्थिक स्थिति का हो, एक ही पंक्ति में बैठकर एक ही प्रकार का भोजन ग्रहण करता है। यह सामाजिक समानता का सबसे बड़ा उदाहरण है।
  • सेवा और त्याग: लंगर में सेवा करना एक पवित्र कार्य माना जाता है। इसमें सब्जी काटने, रोटी बनाने, बर्तन साफ करने जैसे सभी काम श्रद्धालु स्वेच्छा से करते हैं। इससे व्यक्ति का अहंकार समाप्त होता है और समाज के प्रति प्रेम की भावना जागृत होती है।
  • वंड छकना: गुरु नानक देव जी की शिक्षा ‘वंड छकना’ यानी अपनी कमाई में से जरूरतमंदों के साथ बांटने का सिद्धांत लंगर के माध्यम से ही साकार होता है।

गुरु नानक देव जी की मुख्य शिक्षाएं: एक ओंकार का संदेश

गुरु नानक देव जी की शिक्षाएं आज भी पूरी मानवजाति के लिए मार्गदर्शक हैं। उनके मूल उपदेश इस प्रकार हैं:

  1. एक ओंकार सतनाम: उनका मुख्य संदेश था कि ईश्वर एक है। उसका नाम सत्य है और वह सर्वत्र विद्यमान है। उन्होंने ‘एक ओंकार’ का मंत्र दिया।
  2. किरत करनी: उन्होंने ईमानदारी और मेहनत से जीविका कमाने पर जोर दिया। बिना मेहनत की कमाई को नापसंद किया।
  3. नाम जपना: उनका मानना था कि ईश्वर के नाम का स्मरण और श्रद्धा भाव से कीर्तन करने से मन शांत होता है और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है।
  4. समानता: उन्होंने जाति, धर्म और लिंग के आधार पर होने वाले भेदभाव का सख्त विरोध किया और सभी मनुष्यों को समान बताया।
  5. वंड छकना (बांटना): उन्होंने सिखाया कि अपनी आय का कुछ हिस्सा जरूरतमंदों के साथ जरूर बांटना चाहिए। यही सच्ची मानवता है।

गुरु नानक जयंती का पर्व हमें सिर्फ रीति-रिवाजों तक सीमित न रहकर, गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं को अपने जीवन में उतारने की प्रेरणा देता है।

यह हमें एकता, शांति, सेवा और प्रेम के मार्ग पर चलने का आह्वान करता है।

5 नवंबर 2025 को इस पावन पर्व पर आइए, हम सभी उनके संदेशों को अपनाने और एक बेहतर समाज बनाने का संकल्प लें।

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