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वैकुंठ चतुर्दशी: इस दिन महादेव को चढ़ाई जाती है तुलसी, भगवान विष्णु को अर्पित किए जाते हैं बेलपत्र

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Nisha Rai
Nisha Rai
निशा राय, पिछले 13 सालों से मीडिया के क्षेत्र में सक्रिय हैं। इन्होंने दैनिक भास्कर डिजिटल (M.P.), लाइव हिंदुस्तान डिजिटल (दिल्ली), गृहशोभा-सरिता-मनोहर कहानियां डिजिटल (दिल्ली), बंसल न्यूज (M.P.) जैसे संस्थानों में काम किया है। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय (भोपाल) से पढ़ाई कर चुकीं निशा की एंटरटेनमेंट और लाइफस्टाइल बीट पर अच्छी पकड़ है। इन्होंने सोशल मीडिया (ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम) पर भी काफी काम किया है। इनके पास ब्रांड प्रमोशन और टीम मैनेजमेंट का काफी अच्छा अनुभव है।

Hari Har Milan 2025: हिंदू धर्म में कार्तिक मास का विशेष महत्व माना गया है।

इस पवित्र महीने में मनाए जाने वाले एक खास पर्व को हरि-हर मिलन या बैकुंठ चतुर्दशी के नाम से जाना जाता है।

यह वह अद्भुत दिन है जब भगवान विष्णु (हरि) और भगवान शिव (हर) एक साथ पूजे जाते हैं और उनके बीच एक दिव्य मिलन होता है।

आइए जानते हैं 2025 में इस पर्व की तारीख, इसके पीछे की मान्यताएं और इसे मनाने के तरीके।

हरि-हर मिलन 2025: तिथि और शुभ मुहूर्त

2025 में, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि 4 नवंबर, मंगलवार को पड़ रही है।

इसी दिन को हरि-हर मिलन के रूप में मनाया जाएगा।

इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में पवित्र नदियों में स्नान करना अत्यंत शुभ और पुण्यदायी माना गया है।

हरि-हर मिलन का क्या है महत्व?

हरि-हर मिलन का सबसे बड़ा महत्व यह है कि यह दिन भगवान विष्णु और भगवान शिव की एकसाथ पूजा का अवसर देता है, जो आमतौर पर अलग-अलग होती है।

इस दिन की सबसे खास और अनोखी परंपरा है तुलसी और बेलपत्र का आदान-प्रदान

सामान्य तौर पर तुलसी भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय हैं और बेलपत्र भगवान शिव को।

लेकिन हरि-हर मिलन के दिन यह नियम बदल जाता है।

इस दिन भगवान शिव को तुलसी अर्पित की जाती है और भगवान विष्णु को बेलपत्र चढ़ाए जाते हैं।

यह दोनों देवताओं के बीच के गहरे आपसी प्रेम और सद्भाव का प्रतीक है।

हरि-हर मिलन की पौराणिक कथा

इस पर्व के पीछे एक रोचक पौराणिक कथा प्रचलित है।

मान्यता है कि चार महीने के चातुर्मास के दौरान भगवान विष्णु योगनिद्रा में लीन होकर पाताल लोक में विश्राम करते हैं और इस दौरान सारे संसार का संचालन भगवान शिव के हाथों में होता है।

जब देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु निद्रा से जागते हैं, तो भगवान शिव स्वयं उनसे मिलने जाते हैं और सृष्टि के संचालन का भार पुनः उन्हें सौंप देते हैं।

दोनों देवताओं के इसी दिव्य मिलन को हरि-हर मिलन के रूप में मनाया जाता है।

एक अन्य कथा के अनुसार, इसी दिन भगवान विष्णु ने भगवान शिव को हज़ार कमल अर्पित किए थे।

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कहां और कैसे मनाया जाता है यह उत्सव?

हरि-हर मिलन का सबसे भव्य और प्रसिद्ध आयोजन मध्य प्रदेश के उज्जैन नगरी में होता है।

यहां, महाकालेश्वर मंदिर से भगवान महाकाल की एक भव्य शोभायात्रा (जुलूस) निकलती है जो गोपाल मंदिर (भगवान विष्णु का मंदिर) तक जाती है।

इस शोभायात्रा में भजन-कीर्तन, शंख और घंटों की ध्वनि पूरे वातावरण को भक्तिमय बना देती है।

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मध्यरात्रि में दोनों मंदिरों के प्रतिनिधि तुलसी और बेलपत्र की मालाओं का आदान-प्रदान करते हैं, जो इस पर्व का मुख्य आकर्षण होता है।

इसके अलावा, वाराणसी (काशी) में काशी विश्वनाथ मंदिर और मणिकर्णिका घाट पर विशेष पूजा-अर्चना और दीपदान का आयोजन किया जाता है।

महाराष्ट्र, ऋषिकेश और केदारनाथ जैसे तीर्थ स्थलों पर भी इस दिन को बड़ी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है।

हरि-हर मिलन के दिन क्या करें?

  • सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर पवित्र नदी या घर पर स्नान करें।
  • भगवान विष्णु और शिव की संयुक्त रूप से पूजा करें।
  • शिवजी को तुलसी दल और विष्णु जी को बेलपत्र अर्पित करने की विशेष परंपरा का पालन करें।
  • ‘ॐ नमः शिवाय’ और ‘ॐ नमो नारायणाय’ मंत्र का जप करें।
  • रात्रि में दीपदान करें और भजन-कीर्तन में भाग लें।

हरि-हर मिलन का पर्व हमें सिखाता है कि ईश्वर भले ही अलग-अलग रूपों में पूजे जाते हों, लेकिन वास्तविकता में वे एक ही परम सत्ता के विभिन्न स्वरूप हैं।

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