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हरतालिका तीज व्रत कथा: शिव को पाने के लिए पार्वती ने की थी कठिन तपस्या, जानें क्यों कहते हैं हरतालिका

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Nisha Rai
Nisha Rai
निशा राय, पिछले 12 सालों से मीडिया के क्षेत्र में सक्रिय हैं। इन्होंने दैनिक भास्कर डिजिटल (M.P.), लाइव हिंदुस्तान डिजिटल (दिल्ली), गृहशोभा-सरिता-मनोहर कहानियां डिजिटल (दिल्ली), बंसल न्यूज (M.P.) जैसे संस्थानों में काम किया है। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय (भोपाल) से पढ़ाई कर चुकीं निशा की एंटरटेनमेंट और लाइफस्टाइल बीट पर अच्छी पकड़ है। इन्होंने सोशल मीडिया (ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम) पर भी काफी काम किया है। इनके पास ब्रांड प्रमोशन और टीम मैनेजमेंट का काफी अच्छा अनुभव है।

Hartalika Teej Vrat Katha: 6 सितंबर को हरतालिका तीज का व्रत मनाया जा रहा है। इस दिन सुहागन महिलाएं अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए व्रत करती है।

वहीं कन्याएं शिव जैसा पति पाने के लिए इस व्रत को रखती है।

तीज का व्रत बेहद मुश्किल होता है। क्योंकि 24 घंटे से भी ज्यादा समय तक बिना खाए-पिए रहना पड़ता है।

इस व्रत को पूरे विधि-विधान से करना बेहद जरूरी है। तभी भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है।

कथा के बिना अधूरा है हरतालिका तीज व्रत

हरतालिका तीज का व्रत इसकी कथा के बिना अधूरा माना जाता है, इसलिए इस दिन हरतालिका तीज व्रत कथा जरूर पढ़ें और सुने।

ये तो सभी जानते हैं कि हरतालिका तीज व्रत देवी पार्वती ने महादेव शिव को पति रूप में पाने के लिए किया था।

लेकिन इसकी पूरी कहानी देवी पार्वती के पिछले जन्म से जुड़ी हुई है।

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जानिए संपूर्ण तीज व्रत कथा

कथा के अनुसार शिव जी ने कैलास पर्वत पर माता पार्वती जी को इस व्रत के बारे में बताया था।

पौराणिक कथा के अनुसार, देह त्यागने के बाद माता सती ने पार्वती के रूप में हिमालय राज के परिवार में पुनः जन्म लिया।

बचपन से ही माता पार्वती भगवान शिव को पति के रूप में पाना चाहती थीं। जिसके लिए उन्होंने 12 सालों तक कठोर तपस्या भी की।

विष्णु जी से शादी करवाना चाहते थे पिता

हिमालय राज अपनी पुत्री पार्वती की शादी भगवान विष्णु से कराने का निर्णय कर लिया था।

लेकिन पूर्वजन्म के प्रभाव की वजह से देवी पार्वती, महादेव को अपने पति के रूप में स्वीकार कर चुकी थीं।

लेकिन माता सती की मृत्यु के बाद भगवान शिव तपस्या में लीन थे, जिसकी वजह से वह तपस्वी बन गए थे।

माता पार्वती को जब अपने पिता के फैसले के बारे में पता चला तो उन्होंने अपनी सखियों से अनुरोध कर उसे किसी एकांत गुप्त स्थान पर ले जाने को कहा।

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सहेलियों ने माता को जंगल में छुपा दिया

माता पार्वती की इच्छानुसार उनके पिता महाराज हिमालय की नजरों से बचाकर उनकी सखियां माता पार्वती को घने सुनसान जंगल में स्थित एक गुफा में छोड़ आईं।

यहीं रहकर उन्होंने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तप शुरू किया जिसके लिए उन्होंने रेत के शिवलिंग की स्थापना की।

संयोग से हस्त नक्षत्र में भाद्रपद शुक्ल तृतीया का वह दिन था जब माता पार्वती ने शिवलिंग की स्थापना की इस दिन निर्जला उपवास रखते हुए उन्होंने रात्रि में जागरण भी किया।

पार्वती जी ने बारह वर्ष तक के महीने में जल में रहकर तथा वैशाख मास में अग्नि में प्रवेश करके तप किया।

श्रावण के महीने में बाहर खुले मास की हस्त नक्षत्र युक्त तृतीया के दिन तुमने मेरा विधि विधान से पूजन किया तथा रात्रि को गीत गाते हुए जागरण किया।

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पार्वती के तप से डोलने लगा शिव का आसन

पार्वती जी के महाव्रत के प्रभाव से शिव का आसन डोलने लगा और वो उसी स्थान पर प्रकट हुए जहां माता पार्वती पूजा कर रही थी।

शिव जी ने पार्वती से कहा- हे वरानने, मैं तुमसे प्रसन्न हूं, मांगों, तुम मुझसे वरदान में क्या मांगना चाहती हो।

तब पार्वती ने कहा कि हे देव, यदि आप मुझसे प्रसन्न हैं तो आप मेरे पति हों। –

शिव ‘तथास्तु’ कहकर कैलाश पर्वत पर चले गए और पार्वती ने सुबह होते ही रेत के शिवलिंग को नदी में विसर्जित कर दिया।

पिता ने मान ली पार्वती जी की बात

इतने में उनके पिता हिमालय राज भी उन्हें ढूंढते हुए उस घने जंगल में आ पहुंचे और अपनी पुत्री को हृदय से लगाकर रोने लगे और बोले- बेटी तुम इस भयानक जंगल में क्यों चली आई?

तब पार्वती ने कहा हे पिता, मैंने पहले ही अपना शरीर शंकर जी को समर्पित कर दिया था, लेकिन आपने मेरा विवाह किसी और के साथ तय कर दिया। इसलिए मैं जंगल में चली आई।

ऐसा सुनकर हिमालय राज ने कहा कि मैं तुम्हारी इच्छा के विरुद्ध यह कार्य नहीं करूंगा और वे पार्वती को लेकर वापस लौट आए और फिर धूमधाम से शिव-पार्वती का विवाह किया।

इसी व्रत के प्रभाव से माता पार्वती को भगवान शिव का अर्द्धासन प्राप्त हुआ।

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कैसे पड़ा हरतालिका नाम

इस कथा में भगवान शिव ने यह भी बताया कि इस व्रत का नाम हरतालिका तीज क्यों पड़ा?

शिव जी ने कहा- क्योंकि पार्वती की सखी उनका हरण (अपहरण) करके जंगल में ले गई थी, इसलिए इसका नाम हरतालिका पड़ा।

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