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भैरव अष्टमी 2025: शिव के गुस्से से हुआ काल भैरव का जन्म, इस वजह से काटा था ब्रह्माजी का पांचवां सिर?

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Nisha Rai
Nisha Rai
निशा राय, पिछले 13 सालों से मीडिया के क्षेत्र में सक्रिय हैं। इन्होंने दैनिक भास्कर डिजिटल (M.P.), लाइव हिंदुस्तान डिजिटल (दिल्ली), गृहशोभा-सरिता-मनोहर कहानियां डिजिटल (दिल्ली), बंसल न्यूज (M.P.) जैसे संस्थानों में काम किया है। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय (भोपाल) से पढ़ाई कर चुकीं निशा की एंटरटेनमेंट और लाइफस्टाइल बीट पर अच्छी पकड़ है। इन्होंने सोशल मीडिया (ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम) पर भी काफी काम किया है। इनके पास ब्रांड प्रमोशन और टीम मैनेजमेंट का काफी अच्छा अनुभव है।

Kaal Bhairav ​​Ashtami 2025: हिंदू धर्म में काल भैरव अष्टमी का विशेष महत्व है।

यह वह दिन है जब भगवान शिव के रौद्र अवतार काल भैरव ने जन्म लिया था।

मान्यता है कि इस दिन काल भैरव की विधि-विधान से पूजा करने और व्रत रखने से भक्तों के सभी कष्ट दूर होते हैं और मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

आइए, जानते हैं काल भैरव की जन्म कथा, महत्व और पूजन विधि के बारे में…

काल भैरव अष्टमी तिथि

इस साल 2025 में, काल भैरव अष्टमी 12 नवंबर, बुधवार को मनाई जाएगी।

मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि का प्रारंभ 11 नवंबर की रात 11 बजकर 9 मिनट से होगा और इसका समापन 12 नवंबर की रात 10 बजकर 58 मिनट पर होगा।

चूंकि काल भैरव की पूजा रात्रि में की जाती है, इसलिए 12 नवंबर को ही अष्टमी का व्रत व पूजन किया जाएगा।

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शुभ मुहूर्त और दुर्लभ संयोग

इस बार का दिन और भी खास है क्योंकि इस दिन कई दुर्लभ ग्रहीय योग बन रहे हैं:

  • शुक्ल योग: सुबह 08:02 बजे तक रहेगा, जो मन को पवित्र और सकारात्मक बनाता है।
  • ब्रह्म योग: पूरे दिन रहेगा, जो ज्ञान, ध्यान और साधना के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है।
  • आश्लेषा नक्षत्र: शाम 06:35 बजे तक सक्रिय रहेगा, जो तांत्रिक साधनाओं और भैरव उपासना के लिए आदर्श माना जाता है।

इन शुभ योगों के संयोग से यह दिन आध्यात्मिक सिद्धि प्राप्ति के लिए अद्वितीय बन गया है।

कैसे हुआ काल भैरव का जन्म? 

काल भैरव के जन्म की कथा बहुत ही रोचक और प्रसिद्ध है। पुराणों में वर्णित कथा के अनुसार:

एक बार सृष्टि के आरंभ में ब्रह्मा और विष्णु जी के बीच इस बात को लेकर विवाद हो गया कि सर्वश्रेष्ठ कौन है।

इस विवाद को सुलझाने के लिए सभी देवता भगवान शिव के पास पहुंचे।

शिवजी ने सभी से ही इस प्रश्न का उत्तर देने को कहा।

सभी देवताओं और ऋषि-मुनियों ने विचार-विमर्श के बाद यह निष्कर्ष निकाला कि त्रिदेवों में भगवान शिव ही सर्वश्रेष्ठ हैं।

भगवान विष्णु ने यह बात सहर्ष स्वीकार कर ली, लेकिन ब्रह्मा जी को यह मान्यता स्वीकार नहीं हुई।

उनका अहंकार जाग उठा और उन्होंने भगवान शिव के बारे में अपमानजनक शब्द कह दिए।

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शिव के क्रोध से जन्मे काल भैरव

ब्रह्मा जी के इस व्यवहार से भगवान शिव को अत्यंत क्रोध आया।

उनके इस अगाध क्रोध से एक तेजोमय पिंड प्रकट हुआ, जिससे एक विकराल रूप धारण करने वाले देवता प्रकट हुए।

यह कोई और नहीं बल्कि भगवान शिव का ही रौद्र अवतार, काल भैरव थे।

काल भैरव का स्वरूप अत्यंत भयानक था। उनके हाथ में एक दंड (लाठी) थी।

उन्हें देखकर सभी देवता भयभीत हो गए।

शिवजी के आदेश पर, काल भैरव ने ब्रह्मा जी के पांच सिरों में से उस सिर को अपने नाखून से काट दिया, जिसने शिव का अपमान किया था।

इस प्रकार ब्रह्मा जी पंचमुखी से चतुर्मुख हो गए।

इस घटना के बाद ब्रह्मा जी को अपनी गलती का अहसास हुआ और उन्होंने काल भैरव से क्षमा याचना की।

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ब्रह्म हत्या का पाप और काशी के कोतवाल बनने की कहानी

ब्रह्मा जी का सिर काटने के कारण काल भैरव पर ब्रह्म हत्या का पाप लग गया।

यह पाप एक खोपड़ी (ब्रह्मा जी के सिर) के रूप में उनके साथ चिपक गया और उन्हें इस पाप से मुक्ति पाने के लिए दंड स्वरूप एक भिखारी के रूप में भटकना पड़ा। इसीलिए उनका एक नाम ‘दंडपाणी’ भी है।

कई वर्षों तक भटकने के बाद, जब वह काशी (वाराणसी) पहुंचे, तब जाकर उन्हें ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति मिली।

काशी की महिमा से प्रभावित होकर काल भैरव वहीं बस गए।

भगवान शंकर, जो काशी के राजा हैं, उन्होंने काल भैरव को काशी का कोतवाल (संरक्षक) नियुक्त कर दिया।

आज भी काशी में श्री काल भैरव मंदिर है और मान्यता है कि काशी में प्रवेश करने से पहले हर व्यक्ति को काल भैरव की अनुमति लेनी होती है।

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काल भैरव की पूजा विधि और महत्व

काल भैरव अष्टमी के दिन विशेष पूजा-अर्चना का विधान है। यहां बताई गई विधि से आप पूजन कर सकते हैं:

  1. सुबह जल्दी उठकर स्नान करें। इस दिन दांतों की सफाई और शरीर की शुद्धता का विशेष ध्यान रखें।
  2. व्रत का संकल्प: भगवान काल भैरव के सामने दीपक जलाकर व्रत का संकल्प लें।
  3. पूजन सामग्री: काले तिल, सरसों का तेल, उड़द की दाल, मूंग की दाल, नारियल, इमरती, कचौड़ी, फल-फूल आदि तैयार रखें।
  4. मंत्र जाप: रात्रि के समय काल भैरव की प्रतिमा या चित्र के सामने सरसों के तेल का दीपक जलाएं और ‘ॐ काल भैरवाय नमः’ मंत्र का जाप करें। आप चाहें तो काल भैरव अष्टक या भैरव चालीसा का पाठ भी कर सकते हैं।
  5. कुत्ते को भोजन: काल भैरव का वाहन कुत्ता है, इसलिए इस दिन कुत्तों को भरपेट भोजन कराना अत्यंत शुभ और फलदायी माना गया है। ऐसा करने से भैरवनाथ शीघ्र प्रसन्न होते हैं।
  6. भोग लगाएं: भैरव जी को हनुमान जी की तरह सिंदूर चढ़ाएं और उड़द-मूंग की दाल के मंगौड़े, इमरती और कचौड़ी का भोग लगाएं।

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पूजा के लाभ:

  • अकाल मृत्यु का भय दूर होता है।
  • शनि दोष, साढ़ेसाती और ढैय्या से मुक्ति मिलती है।
  • सुख-समृद्धि और धन लाभ होता है।
  • सभी प्रकार के भय और नकारात्मक शक्तियों से रक्षा होती है।
  • मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।

ध्यान रखें: इस दिन जुआ, सट्टा, शराब और किसी भी प्रकार के अनैतिक कार्यों से दूर रहें। पवित्रता बनाए रखें।

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