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भैरव अष्टमी: शिवजी के गुस्से से हुआ जन्म फिर ऐसे बने काशी के कोतवाल

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Nisha Rai
Nisha Rai
निशा राय, पिछले 12 सालों से मीडिया के क्षेत्र में सक्रिय हैं। इन्होंने दैनिक भास्कर डिजिटल (M.P.), लाइव हिंदुस्तान डिजिटल (दिल्ली), गृहशोभा-सरिता-मनोहर कहानियां डिजिटल (दिल्ली), बंसल न्यूज (M.P.) जैसे संस्थानों में काम किया है। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय (भोपाल) से पढ़ाई कर चुकीं निशा की एंटरटेनमेंट और लाइफस्टाइल बीट पर अच्छी पकड़ है। इन्होंने सोशल मीडिया (ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम) पर भी काफी काम किया है। इनके पास ब्रांड प्रमोशन और टीम मैनेजमेंट का काफी अच्छा अनुभव है।

Kaal Bhairav Ashtami: मार्गशीर्ष या अगहन माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को भगवान काल भैरव का जन्म हुआ था। इसलिए इस दिन को काल भैरव अष्टमी के रूप में मनाया जाता है।

इस साल ये तिथि 22 नवबंर को है। इस दिन काल भैरव की विशेष पूजा होती है।

माना जाता है कि काल भैरव की पूजा-अर्चना करने और व्रत रखने से व्यक्ति के सभी कार्य सिद्ध होते हैं।

काल भैरव को भगवान शिव का रौद्र अवतार माना जाता है।

भैरव शब्द के तीन अक्षरों में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों की शक्तियां समाहित हैं, भैरव को महादेव का गण और पार्वती का अनुयायी माना जाता है।

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आइए जानते हैं उनकी जन्म कथा और अन्य मान्यताएं…

शिव के गुस्से से हुआ काल भैरव का जन्म

पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार ब्रह्मा और विष्णु के बीच इस बात को लेकर विवाद हुआ था कि सभी देवों में कौन सर्वश्रेष्ण है।

विवाद को सुलझाने के लिए ब्रह्मा, विष्णु और अन्य सभी देवी-देवता और ऋषि-मुनि भगवान शिव के पास गए।

भगवान शिव ने सभी से पूछा कि आप ही बताइए सबसे श्रेष्ण कौन हैं। ऐसे में सभी ने विचार-विमर्श करते ये निष्कर्श निकाला कि भगवान शिव ही श्रेष्ण है।

भगवान विष्णु ने यह बात स्वीकार कर ली और लेकिन ब्रह्माजी को यह अच्छा नहीं लगा और उन्होंने भगवान शिव को अपशब्द कह दिए।

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ब्रह्माजी के अपशब्द कहे जाने पर शिवजी को क्रोध आ गया और इसी क्रोध से कालभैरव का जन्म हुआ।

काल भैरव ने काटा ब्रह्माजी का पांचवां मुख

शिवजी के इस रूप को देख सभी देवी-देवता घबरा गए।

इसके बाद काल भैरव ने क्रोध में ब्रह्माजी के पांच मुखों में से एक मुख को काट दिया, तब ही से ब्रह्मा पंचमुख से चतुर्मुख हो गए।

इसके बाद ब्रह्मा जी को अपनी गलती का अहसास हुआ और उन्होंने शिव के इस रौद्र अवतार से क्षमा मांगी, जिसके बाद वे शांत हुए।

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ब्रह्म हत्या की वजह से बने भिखारी

ब्रह्माजी का सिर काटने के कारण भैरव जी पर ब्रह्म हत्या का पाप लगा, जिसका दंड भोगने के लिए उन्हें कई साल तक धरती पर भिखारी का रूप धारण कर भटकना पड़ा।

आखिरकार काशी (वाराणसी) पहुंचकर उनका यह दंड समाप्त हुआ। इसलिए काल भैरव का एक नाम दंडपाणी भी है।

ऐसे बने काशी के कोतवाल

काल भैरव को शिव की नगरी काशी इतनी अच्छी लगी कि वे हमेशा के लिए काशी में ही बस गए।

भगवान शंकर काशी के राजा है, ऐसे में उन्होंने भैरव को काशी का महापौर यानी कोतवाल नियुक्त कर दिया।

आज भी काल भैरव को काशी का संरक्षक माना जाता हैं और काशी में उनका काल भैरव मंदिर भी है।

काल भैरवी हैं पत्नी

मान्यता है कि भैरव जी की पत्नी भैरवी, देवी पार्वती का ही अवतार हैं।

जब भगवान शिव ने अपने अंश से भैरव को प्रकट किया तो उन्होंने माता पार्वती से भी एक ऐसी शक्ति उत्पन्न करने को कहा जो भैरव की पत्नी बन सके।

तब माता पार्वती ने अपने अंश से देवी भैरवी को प्रकट किया जो शिव के अवतार भैरव की पत्नी हैं।

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हनुमान जी की तरह चढ़ता है चोला

हनुमान जी की तरह भैरवजी की प्रतिमा पर भी सिंदूर का चोला अर्पित किया जाता है।

मूंग और उड़द की दाल के मंगौड़े, इमरती, कचौड़ी का भोग विशेष अर्पित होता है।

भैरव अष्टमी के साथ 56 भोग व भंडारों का भी आयोजन किया जाएगा।

कालाष्टमी भैरव अष्टमी शुभ मुहूर्त

पंचांग के अनुसार, मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 22 नवंबर को शाम 6 बजकर सात मिनट पर शुरू होगी।

तिथि का समापन 23 नवंबर को शाम सात बजकर 56 मिनट पर होगा।

काल भैरव देव की पूजा निशा काल में होती है। इसलिए 22 नवंबर को कालाष्टमी मनाई जाएगी।

इस दिन मासिक कृष्ण जन्माष्टमी भी मनाई जाएगी।

कालाष्टमी पर शुभ योग

इस दिन ब्रह्म योग के साथ ही इंद्र योग का निर्माण होगा। इसके अलावा, रवि योग भी बनेगा।

इन योग में काल भैरव देव की पूजा करने से साधक को सभी प्रकार के शारीरिक और मानसिक कष्टों से मुक्ति मिलेगी।

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भैरवनाथ की पूजा का महत्व

भगवान काल भैरव की पूजा से सुख-समृद्धि आती है. वहीं

शास्त्रों में बताया गया है कि, काल भैरव असीम शक्तियों के देवता हैं, इसलिए इनकी पूजा से अकाल मृत्यु का भय भी दूर हो जाता है।

भैरवनाथ की पूजा करने मात्र से शनि का प्रकोप शांत हो जाता है। साथ ही जातक को साढ़ेसाती, ढैय्या से राहत मिलती है।

भैरव आराधना का खास दिन रविवार और मंगलवार हैं।

भैरव पूजा करने से पहले यह जान लें कि आपको कुत्ते को डांटना नहीं है और उसे भरपेट खाना खिलाना है।

जुआ, सट्टा, शराब, सूदखोरी, अनैतिक कार्य आदि से दूर रहकर भैरव की आराधना करें।

अपने दांतों को भी साफ रखें।

पवित्रीकरण के बाद ही भैरवनाथ की सात्विक पूजा करें, भैरव पूजा में अपवित्रता वर्जित है।

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ऐसे करें कालभैरव को प्रसन्न

अगर आप कालभैरव अष्टकम का जाप करते हैं तो भगवान कालभैरव दरिद्रता को दूर कर, दुःख-दर्द, नफरत और अन्य बुरी आत्माओं को आपसे दूर रखते हैं।

2. काल भैरव की पूजा या अनुष्ठान के लिए ॐ काल भैरवाय नम: मंत्र का जाप करें। इससे भगवान कालभैरव प्रसन्न होते हैं और सभी तरह मनोकामनाएं पूरी करते हैं.

3. काल भैरव जयंती के दिन रात 12 बजे भैरव मंदिर जाएं और सरसों के तेल का दीया जलाएं और भगवान भैरव को नीले फूल अर्पित करें।

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