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करवा चौथ की पूजा में क्या है छलनी का महत्व, क्यों देखते हैं इससे पति का चेहरा?

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Nisha Rai
Nisha Rai
निशा राय, पिछले 13 सालों से मीडिया के क्षेत्र में सक्रिय हैं। इन्होंने दैनिक भास्कर डिजिटल (M.P.), लाइव हिंदुस्तान डिजिटल (दिल्ली), गृहशोभा-सरिता-मनोहर कहानियां डिजिटल (दिल्ली), बंसल न्यूज (M.P.) जैसे संस्थानों में काम किया है। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय (भोपाल) से पढ़ाई कर चुकीं निशा की एंटरटेनमेंट और लाइफस्टाइल बीट पर अच्छी पकड़ है। इन्होंने सोशल मीडिया (ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम) पर भी काफी काम किया है। इनके पास ब्रांड प्रमोशन और टीम मैनेजमेंट का काफी अच्छा अनुभव है।

Karwa Chauth Fast 2025: करवा चौथ का त्यौहार हिंदू धर्म में सुहागिनों के लिए अटूट प्रेम, अगाध विश्वास और अपार समर्पण का प्रतीक है।

यह वह दिन है जब पत्नियां निर्जला व्रत रखकर अपने पति की लंबी आयु और सुख-समृद्धि के लिए ईश्वर से प्रार्थना करती हैं।

साल 2025 में करवा चौथ का यह शुभ व्रत 10 अक्टूबर, शुक्रवार को मनाया जा रहा है।

इस व्रत की सबसे खास और अनोखी रस्म है चंद्रमा को देखने के बाद छलनी से अपने पति के चेहरे को देखना।

लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर यह परंपरा क्यों शुरू हुई?

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इस लेख में हम आपको इसके पीछे छिपे पौराणिक रहस्य और वैज्ञानिक व ज्योतिषीय कारणों के बारे में बताएंगे…

करवा चौथ में छलनी का क्या है महत्व?

करवा चौथ की रस्मों में छलनी सबसे अहम भूमिका निभाती है। यह कोई साधारण रस्म नहीं, बल्कि गहरी आस्था और प्रेम से भरी हुई है।

  1. दीर्घायु का प्रतीक: छन्नी में अनेक छोटे-छोटे छेद होते हैं। जब व्रती स्त्री इसके माध्यम से चंद्रमा को देखती है तो चंद्रमा की रोशनी कई टुकड़ों में बंट जाती है और अनेक प्रतिबिंब दिखाई देते हैं। ऐसी मान्यता है कि छन्नी में जितने अधिक प्रतिबिंब दिखेंगे, पति की आयु उतनी ही लंबी होगी। यह पत्नी की पति के दीर्घ जीवन की कामना का एक सजीव प्रतीक है।
  2. जीवन की बाधाओं को छानना: छन्नी का मुख्य काम छानना है। ठीक उसी तरह, यह रस्म इस बात का प्रतीक है कि पति-पत्नी के वैवाहिक जीवन में आने वाली सभी बाधाएं, नकारात्मक ऊर्जा और कलह इस छन्नी की तरह छन-छन कर दूर हो जाएं और उनका संबंध प्रेम और विश्वास से परिपूर्ण रहे।
  3. चंद्र दोष से बचाव: इस परंपरा का सबसे महत्वपूर्ण पौराणिक कारण चंद्र दोष से बचना है। पुराणों में वर्णित एक कथा के अनुसार, चंद्रदेव ने एक बार भगवान गणेश का रूप-रंग देखकर उनका मजाक उड़ाया था। इससे नाराज होकर गणेश जी ने चंद्रदेव को श्राप दिया कि जो भी मनुष्य उन्हें सीधे देखेगा, उस पर चंद्र दोष लगेगा। बाद में, चंद्रदेव की क्षमा याचना पर गणेश जी ने श्राप को कम जरूर किया, लेकिन खासकर चतुर्थी तिथि (जिस दिन करवा चौथ पड़ता है) पर सीधे चंद्रमा को देखना अशुभ माना गया। इसी डर के कारण छन्नी की आड़ लेकर चंद्र दर्शन किए जाते हैं, ताकि व्रत का पुण्य सुरक्षित रहे।

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चंद्र दर्शन के बाद छन्नी से ही पति का चेहरा क्यों देखते हैं?

चंद्रमा को देखने के बाद की जाने वाली यह रस्म सबसे मार्मिक और भावपूर्ण होती है। इसके पीछे कई कारण हैं:

  • प्रतिबिंबित सौभाग्य: जिस प्रकार छन्नी से चंद्रमा के अनेक प्रतिबिंब दिखते हैं, ठीक उसी प्रकार पति का चेहरा देखने का अर्थ है कि चंद्रदेव के आशीर्वाद स्वरूप पति का सौभाग्य, स्वास्थ्य और आयु उसी तरह बढ़े और चमके जैसे चंद्रमा के कई प्रतिबिंब दिख रहे हैं।
  • व्रत का समर्पण: यह क्रिया पत्नी के समर्पण को दर्शाती है। वह यह संदेश देती है कि उसका यह कठिन व्रत और तपस्या पूरी तरह से उसके पति के लिए है। चंद्रदेव को अर्घ्य देने के बाद, देवता के प्रतीक के रूप में वह सबसे पहले अपने पति का ही चेहरा देखती है।
  • अमरता का आशीर्वाद: चंद्रमा को अमरता का प्रतीक माना जाता है। छलनी से चंद्रमा देखने के बाद पति का चेहरा देखना, एक प्रकार से पति के जीवन में भी चंद्रमा जैसी स्थिरता और दीर्घायु का आशीर्वाद लेना है।

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छलनी पर दीपक रखने का विशेष महत्व

इस रस्म के दौरान छन्नी के आगे की ओर एक छोटा दीया (दीपक) भी रखा जाता है। यह परंपरा भी बहुत महत्व रखती है:

  • नकारात्मक ऊर्जा का नाश: दीपक की पवित्र अग्नि को नकारात्मक शक्तियों और बुरी नजर को दूर करने वाला माना जाता है। यह चंद्र दर्शन से जुड़े किसी भी संभावित दोष को समाप्त करने का काम करता है।
  • ज्ञान और आत्मबल का प्रतीक: दीपक का प्रकाश अंधकार को मिटाता है। यह पति-पत्नी के जीवन में ज्ञान, प्रेम और आपसी विश्वास के प्रकाश को दर्शाता है, जो हर मुश्किल का सामना करने का साहस देता है।

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अनजाने में करवा चौथ का व्रत टूट जाए तो क्या करें? 

व्रत रखते समय कभी-कभी अनजाने में कोई गलती हो जाती है, जैसे पानी पी लेना या चंद्रमा निकलने से पहले ही कुछ खा लेना।

ऐसी स्थिति में घबराने की आवश्यकता नहीं है। आइए जानते हैं शास्त्र इसे लेकर क्या कहता है?

  1. क्षमा याचना करें: सबसे पहले माता पार्वती और भगवान शिव से क्षमा मांगें। आप यह मंत्र बोल सकती हैं: “हे माता पार्वती, मेरे से अनजाने में हुई इस भूल के लिए कृपया मुझे क्षमा करें।”
  2. मौन रहकर संकल्प दोहराएं: कुछ देर मौन रहकर अपने मन में व्रत के मूल उद्देश्य पति की दीर्घायु और सुख को याद करें और फिर से संकल्प लें।
  3. दान-पुण्य करें: अगर संभव हो, तो अगले दिन किसी जरूरतमंद सुहागन या कन्या को मिठाई, फल, वस्त्र या सुहाग की कोई वस्तु दान दें। इससे आपके मन की शांति मिलेगी।
  4. याद रखें भावना सर्वोपरि है: करवा चौथ का सार नियमों की कठोरता नहीं, बल्कि पति के प्रति समर्पण और शुद्ध भावना है। मान्यता है कि देवी पार्वती भक्ति के भाव को देखती हैं, न कि अनजाने में हुई त्रुटियों को। इसलिए पछतावे में समय बर्बाद न करें, बल्कि अपना प्रेम और विश्वास बनाए रखें।

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भूलकर भी न करें ये 3 गलतियां: व्रत रह सकता है अधूरा

करवा चौथ का व्रत नियम और श्रद्धा का संगम है। कुछ गलतियां ऐसी हैं जिनसे बचना अत्यंत आवश्यक है:

  1. चांद देखे बिना व्रत तोड़ना: कभी-कभी लंबे इंतजार के बाद भी अगर चांद न दिखे या थकान के कारण महिलाएं बिना चंद्र दर्शन के ही व्रत खोल देती हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार, चंद्रमा को देखकर और अर्घ्य देकर ही व्रत का पारण पूर्ण माना जाता है। बिना चंद्र दर्शन के व्रत खोलना अशुभ माना जाता है।
  2. शुभ रंगों का न पहनना: इस दिन लाल या अन्य शुभ रंगों के वस्त्र पहनना बहुत महत्व रखता है, क्योंकि ये रंग सुहाग और समृद्धि के प्रतीक हैं। वहीं, काले या सफेद रंग के वस्त्र इस दिन धारण नहीं करने चाहिए, क्योंकि इन्हें अशुभ और उदासी का प्रतीक माना जाता है।
  3. सिलाई-कढ़ाई या कैंची का प्रयोग: व्रत के दिन सिलाई, कढ़ाई का काम करना या कैंची का इस्तेमाल करना वर्जित माना गया है। मान्यता है कि ऐसा करने से वैवाहिक जीवन में कटुता आ सकती है और व्रत का पुण्य फल प्रभावित हो सकता है।
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