Kharmas 2025: खरमास, जिसे अधिकमास या मलमास भी कहते हैं, हिंदू पंचांग का एक विशेष महीना माना जाता है।
साल 2025 में यह 16 दिसंबर से शुरू होकर 14 जनवरी 2026 (मकर संक्रांति) तक रहेगा।
‘खर’ का अर्थ होता है ‘गधा’ और ‘मास’ का अर्थ ‘महीना’। यानी, ‘गधों का महीना’।
लेकिन सवाल उठता है कि आखिर इतना पवित्र माना जाने वाला यह महीना गधों से क्यों जुड़ा है?
इसके पीछे एक दिलचस्प पौराणिक कथा है, जो सूर्यदेव के रथ से जुड़ी हुई है।

दो गधों की वजह से शुरू हुई खरमास की परंपरा?
पुराणों में वर्णित एक कथा के अनुसार, एक बार सूर्यदेव अपने सात घोड़ों वाले रथ पर सवार होकर ब्रह्मांड की परिक्रमा कर रहे थे।
लंबे समय तक लगातार दौड़ने से उनके घोड़े बहुत थक गए और कमजोर होने लगे।
सूर्यदेव को उन पर दया आई और वे उन्हें आराम देना चाहते थे।
वे एक तालाब के पास पहुंचे, लेकिन एक समस्या थी सूर्य का रथ रुक नहीं सकता था, क्योंकि उसके रुकने से पृथ्वी पर जीवन ठहर जाता।
तभी सूर्यदेव की नजर तालाब के पास खड़े दो गधों पर पड़ी। उन्होंने तुरंत उन दोनों गधों को अपने रथ में जोत दिया।

घोड़ों की तुलना में गधों की गति धीमी होती है। इस वजह से सूर्य का रथ पूरे एक महीने तक धीमी गति से चला।
सूर्य की यह धीमी गति वाला यह समय ही ‘खरमास’ कहलाया।
इस पूरे महीने सूर्यदेव के असली घोड़े आराम करते हैं और उनकी जगह रथ गधे खींचते हैं।
मान्यता है कि इस दौरान सूर्य का तेज और ऊर्जा पृथ्वी पर कम हो जाती है, जिसके कारण शुभ कार्य वर्जित माने गए।
खरमास के दौरान शुभ कार्य क्यों होते हैं वर्जित?
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, सूर्य को ग्रहों का राजा और पिता तुल्य माना जाता है।
खरमास के समय सूर्य की शक्ति कमजोर पड़ने लगती है, ठीक वैसे ही जैसे किसी परिवार का मुखिया अस्वस्थ या कमजोर हो।
जिस प्रकार मुखिया की अनुपस्थिति या कमजोरी में परिवार के बड़े फैसले और शुभ कार्य टाल दिए जाते हैं, उसी प्रकार सूर्य के ‘कमजोर’ होने के इस समय में भी शुभ कार्य नहीं किए जाते।

इसलिए इस पूरे महीने विवाह, गृहप्रवेश, मुंडन, नामकरण, नई वस्तु की खरीदारी या कोई नया व्यवसाय शुरू करना अशुभ माना जाता है।
यह समय आत्मचिंतन, धार्मिक अनुष्ठान और पूजा-पाठ के लिए निर्धारित है।
मकर संक्रांति के साथ होता है खरमास का अंत?
खरमास की अवधि मकर संक्रांति के दिन आकर समाप्त हो जाती है।
पौराणिक कथा के अनुसार, मकर संक्रांति के दिन सूर्यदेव ने उन दोनों गधों (खरों) को वापस तालाब के किनारे छोड़ दिया और अपने घोड़ों को पुनः रथ में जोत लिया।
इसके साथ ही सूर्य की गति और तेज फिर से सामान्य हो जाता है।
इसीलिए मकर संक्रांति को बहुत शुभ माना जाता है और इस दिन से सभी शुभ कार्यों की शुरुआत फिर से हो जाती है।
इस दिन से मौसम में बदलाव भी शुरू हो जाता है।

खरमास में क्या करें और क्या न करें?
क्या करें (शुभ उपाय):
- दान-पुण्य: इस मास में दान का विशेष महत्व है। काले तिल, गुड़, लाल या पीले वस्त्र, कंबल, अन्न आदि का दान करना चाहिए। सूर्य की कृपा के लिए पीली वस्तुएं जैसे केसर, पीली दाल, हल्दी का दान शुभ माना जाता है।
- पूजा-पाठ: भगवान विष्णु और सूर्यदेव की पूजा पर विशेष ध्यान दें। प्रतिदिन सुबह सूर्य को जल अर्पित करें। ‘ॐ गृहिणी सूर्याय नमः’ मंत्र का जाप फलदायी है।
- धार्मिक ग्रंथों का पाठ: इस समय में श्रीमद्भागवत गीता, रामचरितमानस, शिव पुराण या सत्यनारायण कथा का पाठ या श्रवण करना लाभकारी होता है। इससे मन को शांति और आत्मबल मिलता है।
- तीर्थ स्नान: यदि संभव हो तो पवित्र नदियों में स्नान करना पुण्यदायी माना गया है।

क्या न करें (सावधानियां):
- किसी भी प्रकार के मांगलिक कार्य जैसे शादी-विवाह, घर की नींव रखना, गृहप्रवेश आदि न करें।
- नया घर, वाहन या बड़ी संपत्ति खरीदने से बचें।
- नया व्यवसाय शुरू करना या नई नौकरी की शुरुआत इस समय टाल देनी चाहिए।


