God of Wealth Kuber Story: हिंदू धर्म में दिवाली के त्योहार का विशेष महत्व है।
इस पावन अवसर पर माता लक्ष्मी के साथ-साथ भगवान कुबेर की पूजा भी की जाती है।
कुबेर को धन का देवता माना जाता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि वह हमेशा से देवता नहीं थे?
उनका जीवन एक चोर के रूप में शुरू हुआ था और फिर एक चमत्कारिक घटना ने उन्हें धन का स्वामी बना दिया।
आइए जानते हैं भगवान कुबेर के बारे में…
कुबेर कौन हैं? धन के रक्षक और देवताओं के कोषाध्यक्ष
कुबेर हिंदू धर्म के प्रमुख देवताओं में से एक हैं जिन्हें ‘धनाधिपति’, ‘यक्षराज’ और ‘लोकपाल’ के नाम से भी जाना जाता है।
उन्हें संपूर्ण ब्रह्मांड का धन, ऐश्वर्य और समृद्धि का स्वामी माना जाता है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, कुबेर न केवल धन के देवता हैं बल्कि वह यक्षों के राजा भी हैं और पृथ्वी के भीतर छिपे हुए सभी खजानों की रक्षा का दायित्व भी उन्हीं पर है।
कहां रहते हैं कुबेर
- कुबेर का निवास स्थान कैलाश पर्वत पर स्थित अलकापुरी बताया जाता है।
- वहां वह एक सोने के सिंहासन पर विराजमान रहते हैं।
- उनके शरीर का रंग सुनहरा पीला माना जाता है और वे राजसी आभूषणों और मुकुट से सुशोभित रहते हैं।
- उनके एक हाथ में गदा है तो दूसरा हाथ वरद मुद्रा में रहता है, जो भक्तों को धन-संपदा प्रदान करता है।
- उनका मुख्य वाहन पुष्पक विमान है, जिसकी चर्चा रामायण में भी मिलती है।
- मान्यता है कि गंधमादन पर्वत पर स्थित संपत्ति का चौथा भाग कुबेर के नियंत्रण में है, जिसमें से सोलहवां भाग ही मनुष्यों के लिए निर्धारित है।
- इसके अलावा, कुबेर नौ निधियों के अधिपति भी हैं, जिनमें पद्म, महापद्म, शंख, मकर, कच्छप, मुकुंद, कुंद, नील और वर्चस निधियां शामिल हैं।
पूर्व जन्म का पाप: कैसे बदला कुबेर का भाग्य
कुबेर के देवता बनने की कहानी उनके पूर्व जन्म से जुड़ी हुई है।
स्कंद पुराण के अनुसार, कुबेर का पूर्वजन्म में नाम गुणनिधि था और उनका जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था।
दुर्भाग्यवश, गुणनिधि को बचपन से ही चोरी करने की बुरी आदत थी।
वह लगातार चोरी करता रहा और एक दिन जब इस बात का पता उसके पिता को चला, तो उन्होंने क्रोध में आकर गुणनिधि को घर से निकाल दिया।
भटकते हुए गुणनिधि एक शिव मंदिर के पास पहुंचा। उसकी नजर मंदिर में रखे प्रसाद और मूल्यवान सामग्री पर पड़ी।
रात के अंधेरे का फायदा उठाकर वह मंदिर में चोरी करने घुस गया। उस समय मंदिर का पुजारी वहीं सो रहा था।
पुजारी की नजर बचाने के लिए गुणनिधि ने एक योजना बनाई।
उसने मंदिर के दीपक के सामने अपना अंगोछा इस तरह फैला दिया ताकि दीपक की लौ हिलने से पुजारी की नींद न खुल जाए।
लेकिन दुर्भाग्य से, पुजारी की नींद खुल गई और उसने गुणनिधि को चोरी करते हुए पकड़ लिया।
दोनों के बीच हुई हाथापाई में गुणनिधि की मृत्यु हो गई। मृत्यु के बाद जब यमदूत उसकी आत्मा को लेने आए, तभी भगवान शिव के दूत भी वहां पहुंचे।
शिव के दूतों ने कहा, “गुणनिधि, तुमने अपने जीवन में बहुत पाप किए हैं, लेकिन धन त्रयोदशी के दिन तुमने अनजाने में ही सही, मंदिर के दीपक को बुझने से बचाया है। इस पुण्य के कारण भगवान शिव तुम्हें अगले जन्म में धन का राजा बनाना चाहते हैं।”
इस प्रकार, एक छोटे से पुण्य ने गुणनिधि के सारे पापों को धो डाला और अगले जन्म में वह कुबेर के रूप में धन के देवता बने।
कुरूप स्वरूप
कुबेर के बारे में एक रोचक तथ्य यह है कि उनका स्वरूप अन्य देवताओं की तरह आकर्षक नहीं था।
पुराणों में उनके स्वरूप का वर्णन तीन पैरों और आठ दांतों वाले एक स्थूल शरीर के रूप में मिलता है।
शतपथ ब्राह्मण में तो उन्हें राक्षस कहा गया है। इसका अर्थ यह है कि धन का राजा होने के बावजूद उनका व्यक्तित्व सुंदर नहीं था।
रावण थे कुबेर के सौतेले भाई
कुबेर के पिता महर्षि विश्रवा और माता देववर्णिनी थीं।
रावण के पिता भी महर्षि विश्रवा ही थे, जबकि उनकी माता कैकसी थीं।
इस प्रकार कुबेर, रावण के सौतेले बड़े भाई थे।
मान्यता है कि कुबेर ने ही अपने तपोबल से सोने की लंका का निर्माण किया था, लेकिन बाद में अपने पिता के कहने पर उन्होंने यह लंका रावण को दे दी और स्वयं कैलाश पर्वत पर अलकापुरी बसाकर वहां रहने लगे।
रावण की मृत्यु के बाद कुबेर को असुरों का नया सम्राट बनाया गया।
भगवान विष्णु ने लिया था कुबेर से कर्ज
एक रोचक कथा के अनुसार, भगवान विष्णु ने देवी लक्ष्मी से विवाह करने के लिए कुबेर से कर्ज लिया था।
कहानी यह है कि जब भगवान विष्णु ने अपने वेंकटेश्वर अवतार में देवी पद्मावती (लक्ष्मी जी का अंश) से विवाह करने का निर्णय लिया, तो उन्हें विवाह के खर्चे के लिए एक बड़ी राशि की आवश्यकता थी।
इस आवश्यकता को पूरा करने के लिए भगवान विष्णु ने कुबेर से कर्ज मांगा।
कुबेर ने खुशी-खुशी विष्णु को धन उपलब्ध कराया।
कहा जाता है कि विष्णु ने कुबेर से वादा किया था कि कलियुग के अंत तक वह सारा कर्ज ब्याज सहित चुका देंगे।
इसी मान्यता के कारण आज भी तिरुपति बालाजी के मंदिर में भक्त बड़ी मात्रा में सोना-चांदी, हीरे-मोती और गहने चढ़ाते हैं, ताकि भगवान विष्णु कुबेर का कर्ज चुका सकें।
कुबेर यंत्र और पूजा विधि: कैसे पाएं धन-समृद्धि का आशीर्वाद
अधिकांश घरों में कुबेर की मूर्ति के बजाय उनके यंत्र की पूजा की जाती है।
कुबेर यंत्र को बेहद शक्तिशाली माना जाता है और यह सुख-समृद्धि का प्रतीक है।
आइए जानते हैं कुबेर यंत्र की पूजा कैसे करें:
- सही दिशा में स्थापना: घर की उत्तर-पूर्व दिशा (ईशान कोण) को कुबेर की दिशा माना जाता है। कुबेर यंत्र को हमेशा इसी दिशा में स्थापित करें।
- शुभ दिन: शुक्रवार का दिन कुबेर पूजा के लिए सबसे शुभ माना जाता है।
- तिजोरी का स्थान: धन की तिजोरी या लॉकर को हमेशा घर की दक्षिण-पश्चिम दिशा (नैऋत्य कोण) में रखना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि इससे माता लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और धन में वृद्धि होती है।
- मंत्र जाप: कुबेर के इस मंत्र का जाप करना चाहिए – “ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं क्लीं वित्तेश्वराय नमः॥” शुक्रवार की रात इस मंत्र का जाप करने से विशेष लाभ मिलता है। ऐसा लगातार 3 महीने तक करने की सलाह दी जाती है।
कुबेर का एकमात्र मंदिर: उत्तराखंड की पवित्र भूमि में
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि भारत में कुबेर का एकमात्र मंदिर उत्तराखंड राज्य के अल्मोड़ा जिले में जागेश्वर महादेव मंदिर परिसर में स्थित है। इस मंदिर की मान्यता बहुत अधिक है।
कहा जाता है कि कोई भी व्यक्ति इस मंदिर से एक सिक्का ले जाकर अपने घर में रखता है और नियमित रूप से उसकी पूजा करता है, तो उसके घर में माता लक्ष्मी का स्थायी निवास होता है और कभी धन की कमी नहीं होती।
कुबेर की कहानी हमें सिखाती है कि मनुष्य के जीवन में पाप और पुण्य दोनों होते हैं, लेकिन एक छोटा सा पुण्य भी व्यक्ति के भाग्य को बदल सकता है।
एक चोर से धन के देवता बनने तक के उनके सफर में जीवन के गहरे रहस्य छिपे हैं।
धनतेरस और दिवाली जैसे शुभ अवसरों पर कुबेर की पूजा करने से जीवन में धन-धान्य की कभी कमी नहीं होती और सुख-समृद्धि का वास होता है।


