Maa Bamleshwari Mandir Chhattisgarh: मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में मां दुर्गा के ऐसे कई मंदिर हैं, जिनकी ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई है।
ऐसा ही एक मंदिर है छत्तीसगढ़ का मां बमलेश्वरी देवी मंदिर जो डोंगरगढ़ की पहाड़ी पर स्थित है।
वैसे तो यहां साल भर ही भक्तों का तांता लगा रहता है, लेकिन नवरात्रि में यहां भक्तों की भीड़ उमड़ती है।
आइए जानते हैं इस मंदिर की प्राचीन कथा और इससे जुड़ी मान्यताओं के बारे में…
1600 फीट ऊंची पहाड़ी, 1000 सीढ़ियां
मां बमलेश्वरी का मंदिर डोंगरगढ़ की खूबसूरत हरी-भरी घाटियों और झील के किनारे स्थित है और प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है।
ये मंदिर 1600 फीट ऊपर पहाड़ पर स्थित है, जहां तक पहुंचने के लिए भक्तों को 1000 सीढ़िया चढ़नी पड़ती हैं।
हालांकि, यहां रोपवे की भी व्यवस्था है ताकि बुजुर्ग और बच्चे बिना किसी परेशानी के मां के दर्शन कर सकें।
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बगलामुखी देवी का स्वरूप, मां बमलेश्वरी के दो मंदिर
बमलेश्वरी शक्ति पीठ का इतिहास करीब 2000 वर्ष पुराना है।
मान्यता है कि माता बमलेश्वरी 10 महाविद्याओं में से एक बगलामुखी देवी का ही स्वरूप हैं।
डोंगरगढ़ में मां बमलेश्वरी के दो मंदिर हैं। ऊपर पहाड़ों पर मां बड़ी बमलेश्वरी विराजमान हैं, तो वहीं, नीचे मां छोटी बमलेश्वरी का मंदिर है।
नवरात्र पर यहां लाखों भक्त माता के दर्शन के लिए पहुंचते हैं।
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जागृत अवस्था में मां, दर्शन मात्र से दूर होते हैं कष्ट
मान्यता है कि मां बमलेश्वरी देवी यहां जागृत अवस्था में है, जिस वजह से मां के दर्शन मात्र से ही भक्तों के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं।
जो भी भक्त मां बमलेश्वरी के मंदिर में जाकर सच्चे मन से प्रार्थना करते हैं, मां उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं।
मां बमलेश्वरी के दरबार में दिन में दो बार आरती की जाती है।
राजा विक्रमादित्य की कुलदेवी
मां बमलेश्वरी को मध्य प्रदेश के उज्जैन के राजा विक्रमादित्य की कुलदेवी भी कहा जाता है।
इतिहासकारों ने इस क्षेत्र को कल्चुरी काल का पाया है।
मंदिर की अधिष्ठात्री देवी मां बगलामुखी हैं और यहां मां बमलेश्वरी के रूप में उनकी पूजा की जाती है।
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2000 साल पुराना है इतिहास
प्राचीन समय में डोंगरगढ़ को कामाख्या नगरी के नाम से जाना जाता था।
मान्यता है कि राजा वीर सेन ने माता बमलेश्वरी मंदिर की स्थापना की गई थी।
राजा ने मां बगलामुखी को अपने तपोबल से प्रसन्न कर पहाड़ों पर विराजमान होने की विनती की थी।
इसके बाद मां बगलामुखी, मां बमलेश्वरी के रूप में डोंगरगढ़ के पहाड़ों पर विराजमान हुईं।
कुछ इतिहासकारों का मानना है कि राजा विक्रमादित्य भी यहां के शासक रहे थे और वे भी देवी बगलामुखी के उपासक थे।
इसलिए इसका इतिहास उज्जैन से भी जुड़ा हुआ है।
श्रद्धालुओं के लिए व्यवस्था
मंदिर में रुकने की भी अच्छी व्यवस्था है। जिस वजह से दूर-दूर से भक्त माता के दर्शन के लिए आते हैं।
भक्तों की सुविधा के लिए रास्ते में बैठने की व्यवस्था भी की गई है। माता के मंदिर के रास्ते में एक बाजार भी है।
ऊपर पेयजल की व्यवस्था, विश्रामालयों के अलावा भोजनालय और धार्मिक सामग्री खरीदने की सुविधा है।
पहाड़ी के नीचे 24 घंटे भोजन और भंडारे की व्यवस्था।
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नवरात्रि के दौरान विशेष व्यवस्था
नवरात्रि के दौरान श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए मंदिर ट्रस्ट विशेष व्यवस्था करता है ताकि दर्शन में किसी तरह की परेशानी न हो।
श्रद्धालुओं के लिए चिकित्सा सुविधाओं की भी पूरी व्यवस्था रहती है।
यहां नवरात्रि पर मेले का भी आयोजन होता है जिसमें 10 लाख से ज्यादा श्रद्धालु आते हैं।
दूसरे राज्यों से भी आते हैं भक्त
मां बमलेश्वरी के दरबार में छत्तीसगढ़ ही नहीं बल्कि पूरे देश से भक्त दर्शन करने आते हैं।
कैसे जाएं रायपुर
मां बमलेश्वरी देवी का मंदिर रायपुर से 100 किमी और नागपुर से 190 किमी की दूरी पर स्थित है और मुंबई-हावड़ा रेल मार्ग के अंतर्गत आता है।
आप यहां सीधे ट्रेन और बस से भी पहुंच सकते हैं।
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