Mahashivratri 2025: देशभर में बड़े ही शुभ योग में धूम-धाम से साथ महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जा रहा है।
शिवालयों में भक्तगण अपनी मनोकामना पूर्ण करने के लिए भगवान शिव की अराधना कर रहें है।
आज ही के दिन भागवान शिव और माता पार्वती का विवाह उत्सव मनाया जाता है।
लेकिन क्या आप जानतें है कि महाशिवरात्रि और शिवरात्रि में क्या अंतर है?
शिवलिंग की आधी परिक्रमा क्यों की जाती है?
शिवलिंग पर जल और बेलपत्र क्यों चढ़ाई जाती है?
भगवान शिव को भस्म क्यों प्रिय है?
आईए महाशिवरात्रि के इस पर्व पर जानतें है पूजा की विधि के पीछे छिपे पौराणिक महत्व के बारे में
Mahashivratri 2025: शिवरात्रि और महाशिवरात्रि में क्या है अंतर ?
सनातन धर्म में महाशिवरात्रि पर्व का विशेष महत्व होता है।
इस पर्व पर पूरे दिन व्रत रखते हुए शिव मंदिरों में जलाभिषेक और विशेष धार्मिक आयोजन किए जातें हैं।
शिवभक्त इस दिन भोलेनाथ की उपासना कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

हर महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को शिवरात्रि मनाई जाती है।
इसे मासिक शिवरात्रि के नाम से जाना जाता है।
इस तरह से एक साल में 12 शिवरात्रि होती है।
वहीं हिंदू पंचांग के मुताबिक फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को आने वाली शिवरात्रि को महाशिवरात्रि कहा जाता है।

सालभर आने वाली सभी शिवरात्रियों में इसका महत्व सबसे ज्यादा होता है, इसलिए इस महाशिवरात्रि कहा जाता है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इसी तिथि पर भगवान भोलेनाथ ने वैराग्य त्यागकर देवी पार्वती से विवाह किया था।
Mahashivratri 2025: क्यों करतें हैं शिवलिंग की आधी परिक्रमा ?
सभी शिवभक्त महाशिवरात्रि के मौके पर भोलेभंडारी की पूजा-अर्चना में भक्ति भाव से लीन हैं।
ग्रंथों में शिवलिंग की पूजा और परिक्रमा के कुछ नियम बताए गए हैं।
जिससे भगवान जल्दी प्रसन्न होते हैं और यदि नियमों का उल्लंघन किया जाए तो पूजा का फल नहीं मिलते और भोलेनाथ भी रुष्ट हो जाते हैं।
ऐसा ही एक नियम यह है कि कभी भी शिवलिंग की परिक्रमा पूरी नहीं की जाती है।

शिवलिंग की परिक्रमा हमेशा आधी करनी चाहिए और परिक्रमा करते समय दिशा का भी ध्यान रखना चाहिए।
शिवलिंग की परिक्रमा बाईं ओर से की जाती है, साथ ही जलहरी तक जाकर वापस लौट कर दूसरी ओर से परिक्रमा होती है।
शिवलिंग दो हिस्सों में बना होता है, एक लिंग और दूसरा जलाधारी।
शिवलिंग के नीचे का भाग जहां से शिवलिंग पर चढ़ाया गया जल बाहर आता है वह पार्वती भाग माना जाता है।
शिवलिंग की जलाधारी को ऊर्जा और शक्ति का स्त्रोत माना गया है।
इसलिए पौराणिक मान्यता के अनुसार शिवलिंग की जलाधारी को भूल कर भी नहीं लांघना चाहिए, ऐसा करना अशुभ माना जाता है।
Mahashivratri 2025: शिवलिंग पर जल और दूध चढ़ाने की परंपरा का महत्व
शिवजी को प्रसन्न करने के लिए शिवलिंग पर मात्र एक लोटा जल ही काफी होता है।
पूजा-आराधना और उपासना में शिवलिंग पर जल और दूध चढ़ाने की परंपरा है।

दरअसल पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जब समुद्र मंथन के हलाहल से विष निकला था, तो इस विष के प्रभाव से पूरी सृष्टि में प्रलय मच गया था।
तब इस विष को शिवजी ने अपने कंठ में धारण कर लिया था।
विष के दुष्प्रभाव के कारण शिवजी के शरीर का ताप बहुत अधिक बढ़ गया था।

तब शिवजी के शरीर का ताप कम करने के लिए सभी देवताओं ने मिलकर जल और दूध की धारा चढ़ाई।
इसी कारण से शिवलिंग पर दूध, दही, शहद और जल से शिवलिंग का अभिषेक किया जाता है।
Mahashivratri 2025: भगवान भोलेनाथ को क्यों प्रिय है भस्म ?
भगवान भोलेनाथ की पूजा-आराधना और उपासना में शिवलिंग पर जल और दूध चढ़ाने की परंपरा के साथ भस्म भी चढ़ाई जाती है।
लेकिन भगवान भोलेनाथ को भस्म क्यों प्रिय है ?
शिव पुराण के अनुसार भस्म धारण करने मात्र से ही सभी प्रकार के पापों का नाश हो जाता है।

भस्म को शिव जी का ही स्वरूप माना गया है।
मान्यता है कि जो मनुष्य पवित्रता पूर्वक भस्म धारण करता है और शिव जी का गुणगान करता है उसे शिवलोक का सुख प्राप्त होता है।
Mahashivratri 2025: भगवान शिव को क्यों चढ़ाया जाता है बेलपत्र ?
भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए हम दूध, दही, शहद, घी, भांग, धतूरा, पुष्प, फल और बेलपत्र आदि चीजें अर्पित करते हैं।
लेकिन, शास्त्रों में बेलपत्र अर्पित करने का बहुत महत्व बताया गया है।
भगवान भोलेनाथ को बेलपत्र बहुत ही प्रिय है।

माना जाता है कि शिवजी को बेलपत्र चढ़ाने से दरिद्रता दूर होती है और व्यक्ति सौभाग्यशाली बनता है।
शास्त्रों में बेलवृक्ष की महिमा और इसको चढ़ाने के भी नियम है।
शिवपुराण के अनुसार बेलवृक्ष शिवजी का ही रूप है।
देवताओं ने भी इस शिवस्वरूप वृक्ष की स्तुति की है।

कहा जाता है जो इस वृक्ष की जड़ के पास जल से अपने मस्तक को सींचता है, वह सम्पूर्ण तीर्थों में स्नान का फल पा लेता है।
वहीं पुराणों के अनुसार भगवान शिव को एक साथ जुड़ी हुई तीन पत्तियों वाली बेलपत्र ही चढ़ाना चाहिए और पत्तियां कहीं से भी कटी-फटी न हो।