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Roop Chaudas: रूप चौदस के दिन क्यों लगाते हैं उबटन, कैसे शुरू हुई ये परंपरा?

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Nisha Rai
Nisha Rai
निशा राय, पिछले 12 सालों से मीडिया के क्षेत्र में सक्रिय हैं। इन्होंने दैनिक भास्कर डिजिटल (M.P.), लाइव हिंदुस्तान डिजिटल (दिल्ली), गृहशोभा-सरिता-मनोहर कहानियां डिजिटल (दिल्ली), बंसल न्यूज (M.P.) जैसे संस्थानों में काम किया है। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय (भोपाल) से पढ़ाई कर चुकीं निशा की एंटरटेनमेंट और लाइफस्टाइल बीट पर अच्छी पकड़ है। इन्होंने सोशल मीडिया (ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम) पर भी काफी काम किया है। इनके पास ब्रांड प्रमोशन और टीम मैनेजमेंट का काफी अच्छा अनुभव है।

Roop Chaudas: दिवाली से एक दिन पहले रूप चौदस का पर्व मनाया जाता है, जिसमें सूर्य उदय से पहले उठकर अभ्यंग स्नान किया जाता है।

इसमें पूरे शरीर पर तिल के तेल की मसाज की जाती है और हल्दी का उबटन लगाया जाता है।

ये परंपरा सदियों से चली आ रही है लेकिन क्या आपको पता है कि इसकी प्राचीन कथा पता है?

अगर नहीं तो हम आपको बताएंगे रूप चौदस की प्राचीन कथा, इसका महत्व और इसे मनाने का तरीका…

रूप चौदस के अलग-अलग नाम

रूप चौदस को रूप चतुर्दशी, नरक चौदस, नरक चतुर्दशी और काली चौदस भी कहते हैं।

ये पर्व दिवाली से एक दिन पहले मनाया जाता है इसलिए इसे छोटी दिवाली भी कहते हैं।

इस दिन मृत्यु के देवता यमराज की भी पूजा होती है।

रूप चौदस के दिन अभ्यंग स्नान और मान्यताएं

रूप चौदस के दिन अभ्यंग स्नान को लेकर कई प्राचीन कथाएं और मान्यताएं हैं, जिसके बारे में हम आपको बताएंगे।

1. देवी लक्ष्मी होती हैं प्रसन्न

मां लक्ष्मी जी उसी घर में रहती हैं जहां सुंदरता और पवित्रता होती है।

देवी लक्ष्मी धन की प्रतीक हैं लेकिन धन का अर्थ केवल पैसा नहीं होता बल्कि तन-मन की स्वच्छता और स्वस्थता भी धन का कारक है।

ऐसे में घर की सफाई के बाद महिलाओं को अपने रूप-सौन्दर्य को बढ़ाने और शरीर की गंदगी हटाने के लिए ब्रह्म मुहूर्त में हल्दी, चंदन और सरसों का तेल उबटन लगाकर स्नान करना चाहिए।

धन के नौ प्रकार बताए गए हैं- प्रकृति, पर्यावरण, गोधन, धातु, तन, मन, आरोग्यता, सुख, शांति और समृद्धि।

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रूप चौदस पर व्रत करने से मिलता है सौंदर्य का वरदान

रूप चौदस पर व्रत रखने का भी अपना महत्व है। मान्यता है कि रूप चौदस पर व्रत रखने से भगवान श्रीकृष्ण व्यक्ति को सौंदर्य प्रदान करते हैं।

रूप चतुदर्शी के दिन सूर्योदय से पहले उठकर तिल के तेल की मालिश और पानी में चिरचिरी के पत्ते डालकर नहाना चाहिए।

इसके बाद भगवान विष्णु और भगवान कृष्ण के दर्शन करने चाहिए। ऐसा करने से पापों का नाश होता है और सौंदर्य हासिल होता है।

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हिरण्यगभ राजा ने शुरू की रूप चौदस की परंपरा

एक अन्य मान्यता के अनुसार प्राचीन काल में हिरण्यगभ नाम के राजा ने अपना राज-पाट छोड़कर तप करने का फैसला किया।

कई वर्षों तक तपस्या करने की वजह से उनके शरीर में कीड़े पड़ गए। इस बात से दुखी होकर हिरण्यगभ ने नारद मुनि से अपनी पीड़ा कही।

नारद मुनि ने राजा से कहा कि कार्तिक मास कृष्ण पक्ष चतुर्दशी के दिन शरीर पर लेप लगाकर सूर्योदय से पूर्व स्नान करने के बाद रूप के देवता श्री कृष्ण की पूजा करें।

ऐसा करने से फिर से सौन्दर्य की प्राप्ति होगी। राजा ने नारद मुनि के कहे अनुसार सभी चीजें की जिससे श्रीकृष्ण राजा से प्रसन्न हुए और राजा फिर से पहले की तरह रूपवान हो गए।

इस दिन से रूप चौदस मनाने की शुरुआत हुई।

श्री कृष्ण ने उबटन से हटाया था नरकासुर का रक्त

एक अन्य मान्यता ये है कि नरकासुर का वध करने के बाद श्री कृष्ण के शरीर पर नरकासुर का ढेर सारा खून लग गया था जिसे साफ करने के लिए उन्हें उबटन लगाया गया था।

तभी से इस दिन उबटन लगाने की परंपरा शुरू हो गई।

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क्यों कहते हैं काली चौदस

नरक चौदस बंगाल में मां काली के प्राकट्य दिवस के रूप में भी मनाया जाता है, जिसके कारण इस दिन को काली चौदस कहा जाता है।

इस दिन मां काली की आराधना का विशेष महत्व होता है। काली मां के आशीर्वाद से शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने में सफलता मिलती है।

हनुमान जी का जन्म

माना जाता है कि महाबली हनुमान का जन्म रूप चौदस के दिन हुआ था। इसीलिए बजरंग बली की भी विशेष पूजा की जाती है।

नरक चौदस की कथा

अब जानते हैं रूप चौदस को नरक चौदस कहने की कथा।

मान्यता है कि इस दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करने से लोगों को नरक की यातनाऐं नहीं भोगनी पड़ती है।

श्रीकृष्ण और नरकासुर की कथा

नरक चतुर्दशी के दिन ही श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध किया था और 16 हजार कन्याओं को मुक्ति दिलाई थी।

इसके बाद उनका सम्मान बनाए रखने के लिए श्रीकृष्ण ने सभी से शादी की थी। इस वजह से इस दिन दियों की बारात सजाई जाती है।

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मृत्यु के देवता यमराज की पूजा

इस दिन मां लक्ष्मी, धन के देवता कुबेर और मृत्यु के देवता यमराज की पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस दिन घर के मुख्य द्वार पर यम के नाम का दीपक जलाया जाता है।

ऐसा करने से परिवार में अकाल मृत्यु का भय दूर होता है और सभी तरह के पापों से और नरक गमन से भी मुक्ति मिलती है।

यम दीप दान का शुभ मुहुर्त

इस साल नरक चतुर्दशी तिथि की शुरुआत 30 अक्टूबर को दोपहर 1.15 बजे होगी, जो अगले दिन 31 अक्टूबर को दोपहर 3.52 बजे तक रहेगी।

अभ्यंग स्नान के लिए शुभ मुहूर्त 31 को सुबह 5.20 से 6.32 बजे तक, यानी करीब एक घंटे, 13 मिनट तक रहेगा।

चतुर्दशी तिथि प्रदोषकाल में 30 को रहेगी। इसके कारण 30 को सूर्यास्त के बाद यम दीपक जलाया जाएगा।

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यम पूजा विधि और चौमुखी दिया

सूर्योदय से पहले स्नान करने के बाद दक्षिण मुख करके हाथ जोड़कर यमराज से प्रार्थना करें। ऐसा करने से व्यक्ति के द्वारा किये गये वर्ष भर के पापों का नाश होता है।

एक थाली में चौमुख दिया जलाए और 14 छोटे दीप जलाएं, इसके बाद रोली, खीर, गुड़, अबीर, गुलाल और फूल से भगवान की पूजा करें। इसके बाद अपने कार्य स्थान की पूजा करें।

पूजा के बाद सभी दियों को घर के अलग-अलग स्थानों पर रख दें और गणेश-लक्ष्मी के आगे धूप-दीप जलाएं।

इसके बाद शाम के समय किसी नदी या तालाब में यम के नाम से दीपदान करें।

माना जाता हैं कि जो व्यक्ति नरक चतुर्दशी के दिन सूर्य के उदय होने के बाद नहाता हैं, उसके द्वारा साल भर किए गए शुभ कार्यों के फल की प्राप्ति नहीं होती।

खराब सामान मतलब नरक

इस दिन घर की सफाई के बाद हर तरह का टूटा-फूटा सामान फेंक देना चाहिए।

घर में रखे खाली डिब्बे, रद्दी, टूटे-फूटे कांच या धातु के बर्तन, किसी प्रकार का टूटा हुआ सामान, बेकार पड़ा फर्नीचर और दूसरी इस्तेमाल में न आने वाली चीजों को यमराज का नरक माना जाता है।

इसलिए ऐसी बेकार चीजों को घर से हटा देना चाहिए। (All Image Credit Freepik)

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