Naina Devi Temple: नैनीताल नाम सुनते ही दिमाग में झील के शांत पानी और हरियाली से घिरे पहाड़ों की तस्वीर उभर आती है।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस खूबसूरत शहर का नाम और अस्तित्व एक प्राचीन और अत्यंत पवित्र मंदिर से जुड़ा है?
यह मंदिर है श्री नैना देवी मंदिर, जो न केवल पर्यटकों बल्कि करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है।
आइए जानते हैं इसके बारे में…
माता सती के नेत्र से जन्मा एक शहर: नैनीताल और नैना देवी का ऐतिहासिक संबंध
नैनीताल शहर और यहां की विश्वप्रसिद्ध झील, दोनों का नाम ‘नैना’ यानी ‘आंख’ से पड़ा है।
इसकी वजह है नैनी झील के उत्तरी किनारे पर स्थित नैना देवी मंदिर।
एक प्राचीन मान्यता के अनुसार, जब अत्री, पुलस्त्य और पुलह जैसे महान ऋषियों को इस क्षेत्र में पीने का पानी नहीं मिला, तो उन्होंने एक गड्ढा खोदकर उसमें मानसरोवर झील से पानी लाकर भर दिया।
यही स्थान आगे चलकर नैनी झील के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
मान्यता है कि इस झील में स्नान करने से कैलाश के मानसरोवर में स्नान के बराबर पुण्य की प्राप्ति होती है।
लेकिन इस झील और शहर के नाम की असली कहानी एक पौराणिक घटना से जुड़ी है, जो इस मंदिर को दुनिया के 51 शक्तिपीठों में से एक बनाती है।
पौराणिक कथा: कैसे शिव के क्रोध से अस्तित्व में आया नैना देवी मंदिर
मान्यता है कि दक्ष प्रजापति की पुत्री सती का विवाह भगवान शंकर से हुआ था, लेकिन दक्ष प्रजापति शिव को पसंद नहीं करते थे।
एक बार दक्ष ने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया, लेकिन उन्होंने शिव और सती को आमंत्रित नहीं किया।
सती बिना बुलाए यज्ञ में पहुंच गईं, जहाँ दक्ष प्रजापति ने खुलकर भगवान शिव का अपमान किया।
इस अपमान से दुखी होकर सती ने यज्ञ की अग्नि में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए।
जब भगवान शिव को इस बात का पता चला तो उन्हें गहरा क्रोध और दुख हुआ।
उन्होंने सती के जले हुए शरीर को अपने कंधे पर उठा लिया और तांडव करते हुए पूरे ब्रह्मांड में घूमने लगे।
भगवान शिव के इस क्रोध से पूरी सृष्टि में हाहाकार मच गया।
इस संकट को टालने के लिए भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिए।
जहां-जहां पर माता सती के अंग के टुकड़े गिरे, वहाँ-वहाँ शक्तिपीठों की स्थापना हुई।
मान्यता है कि इसी दौरान माता सती की एक आंख (नैना) यहां नैनीताल में गिरीं।
इसीलिए इस स्थान को ‘नैना देवी’ के नाम से जाना गया और यह एक प्रमुख शक्तिपीठ बना।
एक अन्य मान्यता के अनुसार माता की दूसरी आंख हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर में गिरी, जहां एक और प्रसिद्ध नैना देवी मंदिर है।
स्थानीय लोग मां नैना देवी को ‘नंदा देवी’ या ‘नंदामाता’ के नाम से भी पूजते हैं।
नैना देवी मंदिर साल भर श्रद्धालुओं से भरा रहता है, लेकिन यहां कुछ विशेष आयोजनों का अपना ही महत्व है।
नंदा देवी महोत्सव:
यह सबसे बड़ा और सबसे महत्वपूर्ण उत्सव है।
कहा जाता है कि सन 1880 में एक भयानक भूकंप में यह पूरा क्षेत्र ध्वस्त हो गया था।
उसके बाद खुदाई के दौरान इसी स्थान पर पूजन सामग्री और एक शंख मिला, जिसके बाद मंदिर की फिर से स्थापना की गई।
सन 1903 से नंदाष्टमी के अवसर पर भव्य आयोजन की शुरुआत हुई।
तब से हर साल भाद्रपद मास की पंचमी से यह महोत्सव शुरू होता है।
षष्ठमी को केले के तनों की पूजा की जाती है, सप्तमी को इन्हीं से मां नंदा की मूर्तियाँ बनाई जाती हैं, और अष्टमी के दिन मंदिर में उनकी प्राण-प्रतिष्ठा की जाती है।
दशमी के दिन माँ नंदा के डोले के साथ नगर में एक विशाल और भव्य शोभायात्रा निकाली जाती है, जिसमें हजारों लोग शामिल होते हैं।
मंदिर की विशेषता
मंदिर बाँज और ओक के घने पेड़ों से घिरी एक पहाड़ी की तलहटी में स्थित है।
इसके पुरातन शैली में बने डिजाइन की तुलना अक्सर हिमाचल प्रदेश के नैना देवी मंदिर से की जाती है।
‘अमर उदय ट्रस्ट’ द्वारा मंदिर परिसर का विस्तार करते हुए एक ‘बारह अवतार मंदिर’ भी बनाया गया है, जिससे परिसर की सुंदरता और बढ़ गई है।
माता की कृपा से दूर होते हैं नेत्र दोष
इस मंदिर की सबसे प्रसिद्ध मान्यता यह है कि यहां सच्चे मन से पूजा-अर्चना करने पर भक्तों के नेत्र रोग (आँखों की बीमारियाँ) दूर हो जाती हैं।
नवरात्रि और नंदाष्टमी जैसे शुभ अवसरों पर यहां आने वाले भक्तों की मान्यता है कि मां का आशीर्वाद उनकी दृष्टि संबंधी समस्याओं को हल कर देता है।
इसी विश्वास के चलते दूर-दूर से श्रद्धालु अपनी आँखों की सेहत की कामना लेकर यहाँ आते हैं।
मंदिर के मुख्य पुजारी श्री बसंत बल्लभ पांडे के अनुसार, “नैना देवी मंदिर करोड़ों भक्तों की आस्था का केंद्र है। यहां आकर सच्चे मन से मन्नत माँगने वाले भक्तों की हर मनोकामना मां पूरी करती हैं।”
मंदिर के विकास की कहानी
शुरुआत में, इस पवित्र स्थान पर स्थानीय लोगों ने एक छोटी सी वेदी बनाकर पूजा शुरू की।
समय बीतता गया और भक्तों की आस्था बढ़ती गई। धीरे-धीरे एक छोटे मंदिर का निर्माण हुआ।
आज का मां नैना देवी मंदिर बेहद आकर्षक और भव्य है। मंदिर का शिखर (छज्जा) सुंदर नक्काशी से सजा हुआ है।
मंदिर का प्रांगण काफी विशाल है, जहां एक साथ सैकड़ों भक्त खड़े हो सकते हैं।
मुख्य मंदिर में मां नैना देवी की मूर्ति स्थापित है, जिनके दो नेत्र (आंखें) उनके प्रमुख प्रतीक के रूप में दर्शाए गए हैं।
मंदिर परिसर में भगवान गणेश और मां काली की मूर्तियां भी हैं, जो इसकी पवित्रता को और बढ़ाती हैं।
मंदिर का स्थान झील के किनारे होने के कारण यहां से नैनी झील का मनमोहक नजारा दिखाई देता है, जो भक्ति भाव को और गहरा कर देता है।
देवी का स्वरूप और उनकी महिमा
मां नैना देवी का ये स्वरूप भक्तों को यह संदेश देता है कि मां की दृष्टि हमेशा अपने भक्तों पर बनी रहती है।
वह न सिर्फ उनकी रक्षा करती हैं, बल्कि उनके दुखों को दूर करके मनवांछित फल भी प्रदान करती हैं।
स्थानीय लोगों की गहरी आस्था है कि मां नैना देवी पूरे नैनीताल शहर की संरक्षिका हैं।
ऐसा विश्वास है कि जब तक मां की कृपा इस शहर पर बनी हुई है, तब तक यहां कोई बड़ा संकट नहीं आ सकता।
नैनीताल के अधिकतर लोग कोई भी नया काम, चाहे वह व्यापार की शुरुआत हो, विवाह हो या नया घर बनाना हो, मां के दर्शन किए बिना शुरू नहीं करते।
व्यापारी वर्ग के लोग रोजाना अपनी दुकान खोलने से पहले मंदिर में आशीर्वाद लेने आते हैं।
नवरात्रि में मंदिर का नजारा
शारदीय (शरद ऋतु में) और चैत्र (वसंत ऋतु में) नवरात्रि के दिनों में यहां भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है।
अष्टमी और नवमी के दिन विशेष रूप से कन्या पूजन का आयोजन किया जाता है।
नवरात्रि का पर्व यहां बहुत ही धूमधाम और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है।
इन नौ दिनों में मंदिर को फूलों और रोशनी से सजाया जाता है। दूर-दूर से श्रद्धालु यहां आते हैं।
मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना, हवन और कीर्तन का आयोजन किया जाता है।
पूरे परिसर में मां के जयकारों और मंत्रों की गूंज सुनाई देती है।
भक्तों का मानना है कि नवरात्रि के दिनों में मां की शक्ति पूरी तरह से जागृत हो जाती है और उनकी कृपा सीधे भक्तों पर बरसती है।
इन दिनों में मंदिर में अखंड ज्योति जलाई जाती है और कन्या पूजन का भी विशेष महत्व होता है।
नैनी झील और मंदिर का गहरा संबंध
नैना देवी मंदिर और नैनी झील का आपस में गहरा संबंध है।
किंवदंती है कि जब माता सती की आंखें इस स्थान पर गिरीं, तो वहां एक विशाल गड्ढा बन गया और बाद में वही स्थान झील में तब्दील हो गया। इसीलिए झील को भी अत्यंत पवित्र माना जाता है।
कई भक्त मंदिर में दर्शन करने के बाद झील में दीपदान भी करते हैं।
झील की शांति और मंदिर की आध्यात्मिक ऊर्जा मिलकर एक अद्भुत वातावरण बनाती है, जो हर श्रद्धालु और पर्यटक के मन को शांति से भर देती है।
मंदिर तक कैसे पहुंचे?
मां नैना देवी मंदिर तक पहुंचना बहुत आसान है क्योंकि यह नैनीताल शहर के बिल्कुल केंद्र में स्थित है।
- हवाई मार्ग से: नैनीताल का नजदीकी हवाई अड्डा पंतनगर एयरपोर्ट है, जो लगभग 70 किलोमीटर दूर है। पंतनगर से आप टैक्सी किराए पर लेकर सीधे नैनीताल पहुंच सकते हैं। दूसरा बड़ा हवाई अड्डा दिल्ली का इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट है।
- रेल मार्ग से: नैनीताल का अपना रेलवे स्टेशन नहीं है। सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन काठगोदाम है, जो लगभग 35 किलोमीटर की दूरी पर है। काठगोदाम देश के बड़े शहरों जैसे दिल्ली, कोलकाता, लखनऊ आदि से रेल मार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है। काठगोदाम से नैनीताल के लिए टैक्सी और बसें आसानी से मिल जाती हैं।
- सड़क मार्ग से: उत्तराखंड और पड़ोसी राज्यों के सभी प्रमुख शहरों से नैनीताल के लिए बस और टैक्सी की अच्छी सुविधा उपलब्ध है। सड़क मार्ग से यात्रा करना एक सुखद अनुभव है क्योंकि रास्ते में पहाड़ों के खूबसूरत नजारे दिखाई देते हैं।
नैनीताल शहर के अंदर:
एक बार जब आप नैनीताल पहुंच जाएं, तो मंदिर तक पहुंचना बहुत सरल है।
यह मल्लीताल (तलहटी का इलाका) में नैनी झील के किनारे स्थित है।
आप मुख्य बाजार से आराम से पैदल चलकर मंदिर पहुंच सकते हैं। इसके अलावा, ऑटो-रिक्शा या टैक्सी भी उपलब्ध हैं।
मां नैना देवी मंदिर सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि नैनीताल की आत्मा है।
यह मंदिर सदियों से लोगों की आस्था का केंद्र रहा है।
चाहे कोई भक्ति भाव से आए या फिर शांति की तलाश में, मां के दरबार में सबको सुकून मिलता है।
नैनीताल की सैर पर आने वाला हर पर्यटक, चाहे वह साधारण हो या विशिष्ट, इस मंदिर में माथा टेकना नहीं भूलता।
यह मंदिर न केवल शहर की धार्मिक पहचान है, बल्कि इसके इतिहास और संस्कृति का एक अटूट हिस्सा भी है।